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पीडीएफ

हाइड्रो पावर

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. कंभमपति हरिबाबू) ने 4 जनवरी, 2019 को ‘हाइड्रो पावर’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
     
  • रीन्यूएबल एनर्जी सोर्स के तौर पर हाइड्रो पावर: वर्तमान में 25 मेगावॉट तक की क्षमता वाले हाइड्रो पावर प्लांट्स को रीन्यूएबल एनर्जी सोर्स माना जाता है और वे नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के दायरे में आते हैं। 25 मेगावॉट से अधिक की क्षमता वाले हाइड्रो प्लांट्स को परंपरागत ऊर्जा स्रोत माना जाता है और वे ऊर्जा मंत्रालय के दायरे में आते हैं। कमिटी ने कहा कि हाइड्रो पावर को क्षमता के आधार पर रीन्यूएबल और परंपरागत ऊर्जा में बांटने का कोई तर्क नहीं है। हाइड्रो पावर से 4-10 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड प्रति किलोवॉट घंटा (CO2/kWh) ग्रीन हाउस गैस उत्पन्न होती है। इसके मुकाबले सौर ऊर्जा से 38 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड प्रति किलोवॉट घंटा और कोयला आधारित थर्मल पावर से 957 ग्राम कार्बन डाई ऑक्साइड प्रति किलोवॉट घंटा ग्रीन हाउस गैस उत्पन्न होती है, जोकि हाइड्रो पावर से अधिक है। यह सुझाव दिया गया कि सभी हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स को रीन्यूएबल एनर्जी सोर्स के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।
     
  • मंजूरी संबंधी समस्याएं: कमिटी ने कहा कि हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट्स को भूमि अधिग्रहण की समस्या से लगातार जूझना पड़ता है। इसके कारण प्रॉजेक्ट्स में देरी होती है और कीमतें भी बढ़ती जाती हैं। यह पाया गया कि असल समस्या भूमि अधिग्रहण को अमल में लाने और पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास योजनाओं को लागू करने में है जिसके लिए जिला प्रशासन जिम्मेदार है। जिला प्रशासकों के पास कम समय होता है, चूंकि उनके पास बहुत अधिक कार्य होता है। इसके अतिरिक्त भूमि संबंधी मामलों की जटिलता के कारण भूमि अधिग्रहण और पुनर्स्थापन प्रकिया में देरी होती है और हल न होने वाली समस्याएं देखने को मिलती हैं। यह सुझाव दिया गया कि जिला प्रशासन को केंद्र एवं राज्य सरकारों तथा प्रॉजेक्ट डेवलपर्स के सहयोग से ऐसे मामलों को जल्द से जल्द सुलझाना चाहिए।
     
  • कमिटी ने यह भी कहा कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के तीन विभिन्न प्रभागों से तीन प्रकार की मंजूरियां लेना अनिवार्य है। इससे यह प्रक्रिया और जटिल होती है। ये हैं: (i) एक्सपर्ट अप्रेजल कमिटी से पर्यावरण संबंधी मंजूरी, (ii) फॉरेस्ट एडवाइजरी कमिटी से वन संबंधी मंजूरियां, और (iii) राष्ट्रीय वन्य जीवन बोर्ड से वन्यजीवन मंजूरियां। कमिटी ने सुझाव दिया कि पर्यावरण पर प्रभाव के लिहाज से हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट्स को मंजूरी दी जानी चाहिए, साथ ही इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि पर्यावरण पर उनका वास्तविक प्रभाव क्या होगा। वातावरण के प्रति हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स का असर हमेशा सकारात्मक होता है, खास तौर से उनके कारण भूजल पुनर्भरण होता है, वनस्पति एवं जीव जगत फलता-फूलता है, बाढ़ की आशंका कम होती है और विभिन्न जरूरतों के लिए पानी उपलब्ध होता है।
     
  • कमिटी ने गौर किया कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अरुणाचल प्रदेश के मुख्य जल क्षेत्रों और हिमाचल प्रदेश के चेनाब क्षेत्र का अध्ययन किया है। कमिटी ने सुझाव दिया कि कुछ राज्यों में नदियों की पारिस्थितिकी और उनके प्राकृतिक प्रवाह से जुड़ी समस्याएं सामने आई हैं। ऐसी समस्याओं से बचने के लिए यह जरूरी है कि हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट्स को चिन्हित किया जाए और ऐसे अध्ययनों के आधार पर उनकी योजना तैयार की जाए, बजाय इसके कि ऐसे प्रॉजेक्ट्स को अध्ययन के बिना किसी भी राज्य में शुरू कर दिया जाए।
     
  • वित्तीय समस्याएं: कमिटी ने कहा कि आम तौर पर हाइड्रो स्टेशन को 70:30 के ऋण-इक्विटी अनुपात के आधार पर वित्त पोषित किया जाता है। कमिटी के अनुसार हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट्स लंबी अवधि के होते हैं लेकिन उन्हें अल्पावधि के ऋण दिए जाते हैं। चूंकि ये ऋण 10-12 वर्षों के दौरान चुकाए जाते हैं, इसलिए शुरुआती वर्षों के दौरान टैरिफ में काफी बढ़ोतरी होती है। इसके अतिरिक्त हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट्स के विकास से जुड़ी अनिश्चितताओं के कारण बैंक या वित्तीय संस्थान ऐसे प्रॉजेक्ट्स को वित्त पोषित करने के इच्छुक नहीं होते। वर्तमान में 16 में से दस हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स वित्तीय समस्याओं के कारण ठप्प पड़े हैं। फिर ऋण पर उच्च ब्याज दर से हाइड्रो पावर के महंगे होने की समस्या और बढ़ती है। कमिटी ने कहा कि हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स को आर्थिक रूप से अधिक व्यवहार्य बनाने के लिए सस्ती दर पर ऋण मुहैय्या करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसलिए सस्ती ब्याज दर पर दीर्घावधि के ऋणों से प्रॉजेक्ट्स को अधिक व्यावहारिक बनाने में मदद मिलेगी।
     
  • इनसेंटिव्स: कमिटी ने गौर किया कि हाइड्रो पावर के शुल्क के अधिक होने के कारण डेवलपर्स को पावर परचेज़ एग्रीमेंट्स (पीपीए) करने में परेशानियां आती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि हाइड्रो पावर परचेज़ ऑब्लिगेशंस के जरिए हाइड्रो पावर को भी सोलर पावर की तरह बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
     
  • पानी पर सेस: कमिटी ने कहा कि कुछ राज्य हाइड्रो पावर प्लांट द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले प्रत्येक क्यूबिक मीटर पानी पर सेस वसूलते हैं। हालांकि ऐसे सेस लगाने का कोई तर्क नहीं है क्योंकि इन प्लांट्स द्वारा जितने पानी का इस्तेमाल किया जाता है, वह दोबारा नदी में पहुंच जाता है। इससे पहले से स्ट्रेस का दबाव झेलने वाले हाइड्रो सेक्टर पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है। कमिटी ने सुझाव दिया है कि ऐसे सेस की वसूली पर विचार किया जाए। इसके अतिरिक्त पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को राज्यों से ऐसे सेस न वसूलने का आग्रह करना चाहिए।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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