स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: राजीव रंजन सिंह) ने 2022 तक 175 गिगावॉट (GW) रीन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा) के लक्ष्य प्राप्ति की कार्य योजना पर मार्च 2021 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। भारत ने जलवायु प्रतिज्ञा के रूप में 2022 तक 175 गिगावॉट रीन्यूएबल एनर्जी क्षमता को इंस्टॉल करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसमें 100 गिगावॉट की सोलर एनर्जी, 60 गिगावॉट की विंड एनर्जी, 10 गिगावॉट की बायोमास एनर्जी और 5 गिगावॉट का छोटा हाइड्रो पावर शामिल हैं।
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सोलर एनर्जी: देश में सोलर पावर को बढ़ावा देने के लिए 2010 में राष्ट्रीय सोलर मिशन को शुरू किया गया था। इसके अंतर्गत केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि 2022 तक 100 गिगावॉट की ग्रिड कनेक्टेड सोलर एनर्जी हासिल की जाए। कमिटी ने कहा कि इसकी शुरुआत के एक दशक बीत जाने के बावजूद देश में सिर्फ 39 गिगावॉट की सोलर एनर्जी क्षमता इंस्टॉल की जा सकी। 36 गिगावॉट के सोलर एनर्जी प्रॉजेक्ट्स चालू हैं। उसने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को इस प्रक्रिया को तेज करने के लिए रणनीतिक योजनाएं बनानी चाहिए ताकि एक निश्चित समय सीमा में इस लक्ष्य को हासिल किया जा सके।
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रूफटॉप सोलर प्रोग्राम को फरवरी 2019 में शुरू किया गया था। इसका लक्ष्य 2022 तक रूफटॉप सोलर प्रॉजेक्ट्स से 40,000 मेगावॉट (MW) हासिल करना था। कमिटी ने कहा कि 2019-20 में 3,000 मेगावॉट के लक्ष्य के मुकाबले सिर्फ 472 मेगावॉट क्षमता हासिल की गई। उसने यह भी कहा कि 2022 तक 40 गिगावॉट की सोलर एनर्जी क्षमता का लक्ष्य हासिल करने की संभावना कम ही है। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि इस प्रोग्राम को लेकर लोगों में जागरूकता की कमी ही उन मुख्य कारणों में से एक है जिनके चलते प्रोग्राम की प्रगति की गति धीमी है। उसने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) केंद्र सरकार को रूफटॉप सोलर पावर सिस्टम के लाभों का व्यापक रूप से प्रचार करना चाहिए और लोगों को बताना चाहिए कि इसके लिए सरकार की तरफ से क्या इनसेंटिव दिए जा रहे हैं, (ii) केंद्र सरकार को जिला स्तर पर सिंगल विंडो सिस्टम शुरू करना चाहिए ताकि ग्राहकों के लिए रूफटॉप सोलर सिस्टम लगाना आसान हो, और (iii) सरकार निम्न आय वर्ग के ग्राहकों को अधिक सबसिडी की पेशकश कर सकती है।
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कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि मंत्रालय को देश में घरेलू सोलर मैन्यूफैक्चरिंग क्षमताओं को विकसित और आसान बनाने के लिए दीर्घकालीन नीति बनानी चाहिए। इससे उपकरणों के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा और रोजगार पैदा होगा।
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विंड एनर्जी: कमिटी ने गौर किया कि 2017-18 से मंत्रालय ने विंड एनर्जी के अपने वार्षिक लक्ष्य को हासिल नहीं किया है। कमिटी ने कहा कि 36 गिगावॉट और 32 गिगावॉट की ओफशोर विंड पावर क्षमता गुजरात और तमिलनाडु के तट के पास मौजूद है। उसने सुझाव दिया कि मंत्रालय को अन्य तटीय राज्यों में विंड पावर क्षमता की खोज करनी चाहिए।
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रीन्यूएबल पर्चेज ऑब्लिगेशन: बिजली एक्ट, 2003 में अनिवार्य किया गया है कि लाइसेंसी अपनी बिजली की कुछ न्यूनतम मात्रा रीन्यूएबल सोर्स से उत्पादित करें या खरीदें। इसे रीन्यूएबल पावर ऑब्लिगेशन (आरपीओ) कहा जाता है। कमिटी ने कहा कि भारत भर में आरपीओ का अनुपालन अलग-अलग है। मणिपुर में यह 3.7% है तो कर्नाटक में 250%। कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्य रेगुलेटरी आयोगों को डीफॉल्ट करने वाली संस्थाओं के खिलाफ जुर्माना लगाकर आरपीओ अनुपालन को सुनिश्चित करना चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि आरपीओ के कैरी फॉरवर्डिंग या छूट की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
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ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर: ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर प्रॉजेक्ट का लक्ष्य ग्रिड में परंपरागत पावर स्टेशंस के साथ रीन्यूएबल सोर्सेज़ से बिजली को सिंक्रोनाइज करना है। 2015-16 में प्रॉजेक्ट के शुरू होने के बाद से 7,365 सर्किट किलोमीटर (ckm) की ट्रांसमिशन लाइन्स बनाई गईं और 9,976 MVA क्षमता के सब-स्टेशंस कमीशन किए गए (31 दिसंबर, 2020 तक)। कमिटी ने गौर किया कि यह 9,700 ckm की ट्रांसमिशन लाइन्स और 22,600 MVA सब-स्टेशन की क्षमता के लक्ष्य से कम है। कमिटी ने कहा कि लक्ष्यों को पूरी तरह से हासिल न करने की मुख्य वजह यह है कि नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय ने प्रॉजेक्ट की पर्याप्त निगरानी नहीं की और उसे प्राथमिकता नहीं दी। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर प्रॉजेक्ट के अंतर्गत लक्ष्यों की समय पर प्राप्ति के लिए कार्य करना चाहिए।
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प्रॉजेक्ट्स का वित्त पोषण: कमिटी ने कहा कि अगले दो वर्षों में 58 गिगावॉट रीन्यूएबल प्रॉजेक्ट्स को लगाने के लिए 2.6 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी। उसने कहा कि इस निवेश को आकर्षित करना आसान नहीं होगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय को आगामी रीन्यूएबल प्रॉजेक्ट्स के लिए लॉग टर्म लोन्स जुटाने चाहिए।
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इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि भारतीय रीन्यूएबल एनर्जी विकास अथॉरिटी (आईआरईडीए) द्वारा वित्त पोषित 86 रीन्यूएबल प्रॉजेक्ट्स नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) बन गए हैं और कुल 2,111 करोड़ रुपए का लोन बकाया है (31 मार्च, 2020 तक)। कमिटी ने सुझाव दिया कि आईआरईडीए को ऋण अदायगी के लिए अपनी प्रॉजेक्ट एप्रेजल प्रक्रिया की समीक्षा करनी चाहिए ताकि एनपीए के निर्माण से बचा जा सके। इसके अतिरिक्त कानूनी तरीकों (जैसे एसेट्स की नीलामी) का इस्तेमाल करके जल्द से जल्द बकाया ऋण को रिकवर किया जाना चाहिए।
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