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पीडीएफ

5जी के लिए भारत की तैयारी

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (विभागीय) ने फरवरी 2021 में 5जी के लिए भारत की तैयारी पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • 5जी नेटवर्क की स्थिति: कमिटी ने कहा कि 59 देशों (यूएसए, चीन और यूके सहित) में 118 ऑपरेटर्स ने 5जी नेटवर्क को शुरू किया है। अब तक इसे ज्यादातर सीमित स्तर पर शुरू किया गया है। भारत में कमर्शियल स्तर पर 5जी को शुरू करना अभी बाकी है। जनवरी 2021 तक दूरसंचार विभाग ने टेलीकॉम सर्विस प्रोवाइडर्स (टीएसपीज़) को 5जी के ट्रायल्स के लिए मंजूरी नहीं दी है। कमिटी ने कहा कि भारत में 5जी सेवा को शुरू करने के लिए पर्याप्त तैयारी नहीं की गई है। उसने 5जी सेवा के इस्तेमाल से जुड़ी निम्नलिखित चुनौतियों का उल्लेख किया: (i) स्पेक्ट्रम की अपर्याप्त उपलब्धता, (ii) स्पेक्ट्रम की उच्च कीमत, (iii) विभिन्न क्षेत्रों में 5जी की उपयोगिता का आकलन न कर पाना, (iv) फाइब्रेशन कम होना (ऑप्टिकल फाइबर के साथ कनेक्टिविटी), और (v) बैकहॉल क्षमता का कम होना।
     
  • 5जी के लिए स्पेक्ट्रम का आबंटन: 5जी को शुरू करने के लिए स्पेक्ट्रम के नए बैंड्स का आबंटन महत्वपूर्ण है। हालांकि 5जी स्पेक्ट्रम की नीलामी अभी भी लंबित है। कमिटी ने टेलीकॉम कंपनियों की इस चिंता पर गौर किया कि 5जी स्पेक्ट्रम के लिए टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने जो रिजर्व प्राइज़ तय किया है (492 करोड़ रुपए प्रति मेगाहर्ट्ज (MHz)), वह काफी ज्यादा है। कमिटी ने कहा कि क्षेत्र के वित्तीय दबाव को देखते हुए, और यह देखते हुए कि 5जी इकोसिस्टम अभी विकसित किया जाना है, अधिक रिजर्व प्राइज़ से 5जी को शुरू करने की सर्विस प्रोवाइडर्स की क्षमता पर बुरा असर पड़ सकता है। 
     
  • कमिटी ने यह भी कहा कि स्पेक्ट्रम की मौजूदा उपलब्धता के आधार पर हर ऑपरेटर के लिए लगभग 50 मेगाहर्ट्ज को सुनिश्चित किया जा सकता है। यह 100 मेगाहर्ट्ज़ प्रति ऑपरेटर के विश्व औसत से काफी कम है। कमिटी ने कहा कि 4जी के मामले में भी भारत में औसत स्पेक्ट्रम प्रति ऑपरेटर विश्व औसत का लगभग एक चौथाई है। कमिटी ने कहा कि कम उपयोग का पता लगाने के लिए सभी आबंटित स्पेक्ट्रम का तत्काल ऑडिट किया जाना चाहिए और इस प्रकार स्पेक्ट्रम के आबंटन को रैशनलाइज किया जा सकता है।
     
  • कमिटी ने कहा कि मोबाइल ब्रॉडबैंड को बढ़ाने के अलावा ऐसी उम्मीद है कि इंडस्ट्री 4.0 के जरिए 5जी के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलेगा। इंडस्ट्री 4.0 (चौथी औद्योगिक क्रांति) इनफॉरमेशन और कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके मैन्यूफैक्चरिंग की प्रक्रिया के ऑटोमेशन और डिजिटलीकरण की प्रवृत्ति को कहते हैं। कमिटी ने कहा कि उद्योग के लिए स्पेक्ट्रम की लाइसेंस नीति और कैप्टिव यूजेज़ को व्यवस्थित किए जाने की जरूरत है। इससे मैन्यूफैक्चरर्स भारत में बेस लगाने के लिए आकर्षित होंगे।
     
  • 5जी स्टैंडर्ड्स: भारत में 5जी के ग्लोबल स्टैंडर्ड के वेरिएंट (3जीपीपी) को विकसित किया गया है जिसे टीडीएसआई-आरआईटी कहा जाता है। टीडीएसआई-आरआईटी से ग्रामीण कवरेज बढ़ सकता है और एक विशिष्ट क्षेत्र को कवर करने की लागत कम हो सकती है। कमिटी ने कहा कि स्टेकहोल्डर्स की चिंता यह है कि टीडीएसआई-आरआईटी स्टैंडर्ड्स विश्व स्तर से मेल नहीं खाते। इससे नेटवर्क और कस्टमर डिवाइस की लागत बढ़ सकती है और इंटरऑपरेबिलिटी से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।  
     
  • घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग और देसी तकनीक को बढ़ावा: कमिटी ने कहा कि भारत टेलीकॉम उपकरणों के आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। 5जी से घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही 3जी और 4जी की तुलना में नेटवर्क कंपोनेंट्स की अलग प्रकृति के कारण देसी तकनीक को भी प्रोत्साहन मिलेगा। हर जगह नेटवर्क मिले, इसके लिए टेलीकॉम उपकरणों की मांग कई गुना बढ़ेगी। इसके अलावा 5जी के नेटवर्क कंपोनेंट्स के सॉफ्टवेयराइजेशन (ऑफ-द-शेल्फ हार्डवेयर पर चलने वाले सॉफ्टवेयर) पर ध्यान केंद्रित करने से सॉफ्टवेयर  क्षेत्र में भारत की क्षमता भी बढ़ेगी। यह देखा गया कि भारत में टेलीकॉम मैन्यूफैक्चरिंग की सफलता के लिए अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना जरूरी है। एक ऐसा इकोसिस्टम बनाया जाना चाहिए जहां सिर्फ एसेंबलिंग न हो, पूरी तरह से मैन्यूफैक्चरिंग की जाए। चूंकि मैन्यूफैक्चरिंग में उच्च स्तर का मूल्य संवर्धन होता है।
     
  • फाइबर एक राष्ट्रीय परिसंपत्ति: कमिटी ने कहा कि फाइबर के जरिए कनेक्टिविटी 5जी सेवाओं के रोलआउट के लिए बहुत जरूरी है। हालांकि सिर्फ 30% टावर्स फाइबराइज्ड हैं और 7% से भी कम घर फाइबर से कनेक्टेड हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि फाइबर को अनिवार्य राष्ट्रीय अवसंरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) का दर्जा दिया जाए। उसने कहा कि राइट ऑफ वे की मंजूरियों  में देरी और उससे जुड़ी लागत को कम किया जाना चाहिए ताकि फाइबरेशन में मदद मिले। सरकारी और निजी कंपनियों के बीच फाइबर इंफ्रास्ट्रक्चर को शेयर किया जाना चाहिए। फाइबर बिछाने की मंजूरी के लिए एक सिंगल विंडो क्लीयरेंस पर विचार किया जाना चाहिए।
     
  • 5जी यूज़ केस लैब्स बनाना: कमिटी ने कहा कि भारत में 5जी यूज़ केस को विकसित नहीं किया गया है। उसने सुझाव दिया कि यूज़ केस लैब्स के विकास को रफ्तार दी जानी चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि नीति आयोग जैसी क्रॉस सेक्टोरल एंटिटी को विभिन्न क्षेत्रों के डिजिटल रेडिनेस का निरीक्षण करना चाहिए। 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है। 

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