कैग की रिपोर्ट का सारांश
- भारतीय नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने 10 अगस्त, 2017 को ‘ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड (आरईसी) और विद्युत वित्त निगम लिमिटेड (पीएफसी) द्वारा स्वतंत्र बिजली उत्पादकों (आईपीपीज़) को लोन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस ऑडिट में 2013-14 और 2015-16 के बीच आईपीपीज़ को दिए गए लोन्स को कवर किया गया है। इस अवधि में आरईसी और पीएफसी ने आईपीपीज़ को 47,707 करोड़ रुपए मूल्य के लोन दिए। आईपीपीज़ को दिए गए लोन्स का एक बड़ा हिस्सा स्ट्रेस्ड लोन बन गया या नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीएज़) में बदल गया। इन स्वतंत्र बिजली उत्पादकों को दिए जाने वाले लोन्स की समीक्षा करने, उन्हें मंजूरी देने और उनके संवितरण के लिए आरईसी और पीएफसी ने जो प्रक्रियाएं अपनाईं, उनकी समीक्षा इस ऑडिट में की गई। ऑडिट रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- लोन प्रस्तावों की समीक्षा : कैग ने गौर किया कि आरईसी और पीएफसी ने लोन का आवेदन करने वालों की ऋण पात्रता (क्रेडिट वर्दीनेस) की जांच के दौरान जरूरी तत्परता नहीं दिखाई। दोनों ने अपने आंतरिक दिशानिर्देशों के साथ-साथ ऋण की समीक्षा पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के दिशानिर्देशों का भी अनुपालन नहीं किया। इसके अतिरिक्त इस बात की निष्पक्ष तरीके से समीक्षा नहीं की गई कि प्रमोटरों/उधार लेने वालों के पास प्रॉजेक्ट्स को विकसित करने का अनुभव और क्षमता है अथवा नहीं। यह टिप्पणी भी की गई कि उन प्रमोटरों को लोन मंजूर किए गए जिनके पास संबंधित क्षेत्र का अनुभव नहीं था और उनकी वित्तीय स्थिति कमजोर थी। इसके कारण प्रॉजेक्ट्स के पूरा होने में विलंब हुआ और परिणामस्वरूप लागत बढ़ गई।
- प्रमोटर की वित्तीय क्षमता : प्रतिस्पर्धात्मक मांग के मद्देनजर प्रॉजेक्ट के लिए इक्विटी लाने की प्रमोटर की वित्तीय क्षमता का पर्याप्त आकलन नहीं किया गया। उदाहरण के लिए नौ प्रॉजेक्ट्स को कई बार रीस्ट्रक्चर किया गया। इससे लोन के छह मामलों में निर्माण के दौरान ब्याज 13,313 करोड़ रुपए तक बढ़ गया और लोन के तीन मामलों में 3,44 करोड़ रुपए का एनपीए हो गया।
- कैग ने सुझाव दिया कि लोन के प्रस्ताव की समीक्षा, उनकी मंजूरी और संवितरण की प्रक्रिया को मजबूत किया जा सकता है। प्रमोटरों की वित्तीय और तकनीकी क्षमताओं के आकलन के लिए निष्पक्ष दिशानिर्देशों को तैयार करने के लिए मौजूदा नियमों पर दोबारा गौर किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त लोन की समीक्षा, मंजूरी और संवितरण के प्रत्येक चरण में आंतरिक दिशानिर्देशों और आरबीआई नियमों के अनुपालन को सुनिश्चित किया जा सकता है। प्रमोटर/उधार लेने वाले की वित्तीय क्षमता का उचित तरीके से मूल्यांकन करने के लिए स्वतंत्र क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों से प्राप्त सूचनाओं पर भी विचार किया जा सकता है।
- प्रॉजेक्ट्स की व्यावहारिकता (वायबिलिटी) : सामान्य तौर पर बिजली खरीद समझौतों (पावर परचेज एग्रीमेंट्स- पीपीएज़) में उपयुक्त टैरिफ विनिर्दिष्ट किया जाता है जोकि प्रॉजेक्ट्स को व्यावहारिक बनाता है। कैग ने टिप्पणी की कि आरईसी और पीएफसी के आंतरिक दिशानिर्देशों में ऐसे मामलों में उपयुक्त टैरिफ तक पहुंचने के तरीके को विर्निदिष्ट नहीं किया गया है, जिन मामलों में पीपीए साइन नहीं किए जाते (आम तौर पर पीपीए आईपीपीज़ और डिस्कॉम के बीच साइन किए जाते हैं)। लोन के प्रस्तावों की समीक्षा के समय आरईसी और पीएफसी ने ऊंचे टैरिफ का आकलन किया, जिसके परिणामस्वरूप छह मामलों में 8,662 करोड़ रुपए मूल्य के लोन्स को मंजूरी दी गई। हालांकि इन सभी मामलों में जनरेशन की लागत वास्तविक टैरिफ से अधिक थी। इससे प्रॉजेक्ट्स की व्यावहारिकता संदेह उत्पन्न करती थी। इसके अतिरिक्त आरईसी और पीएफसी द्वारा सात प्रॉजेक्ट्स को अतिरिक्त लोन मंजूर किए गए जबकि लोन को रीस्ट्रक्चर करते समय ये प्रॉजेक्ट वित्तीय रूप से व्यावहारिक नहीं थे।
- लोन से पहले की शर्तें : कॉमन लोन एग्रीमेंट (आईपीपीज़ और आरईसी/पीएफसी के बीच) के अनुसार, लोन एग्रीमेंट में उल्लिखित संवितरण पूर्व शर्तों को पूरा करने के बाद ही लोन फंड्स दिए जाते हैं। इससे समीक्षा के समय कथित जोखिमों को कम करने में मदद मिलती है। हालांकि यह गौर किया गया कि लोन के पांच मामलों में आरईसी और पीएफसी ने इन शर्तों में ढिलाई बरती।
- लोन्स का समायोजन (एडजस्टमेंट) : कैग ने गौर किया कि कुछ मामलों में, जिनमें लोन की राशि 3,294 करोड़ रुपए थी, आरईसी ने निर्माण के दौरान 496 करोड़ रुपए के ब्याज का समायोजन कर दिया। इसके अतिरिक्त, हालांकि उधार लेने वालों ने लोन सर्विसिंग शेड्यूल के अनुसार कोई रीपेमेंट नहीं किया था, पर इस बात की जानकारी लोन अकाउंट में नहीं थी। अगर इन लोन्स को समायोजित नहीं किया जाता, तो ये लोन अकाउंट 2013 में ही एनपीए में बदल जाते। यह आरईसी के आंतरिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन भी था। 2015-16 के अंत तक, आरईसी और पीएफसी, दोनों की एकाउंट बुक्स में यह स्वीकार किया गया था कि आईपीपी को दिए गए लोन्स, 11,763 करोड़ रुपए मूल्य के सकल एनपीएज़ में बदल चुके हैं।
- कैग ने सुझाव दिया कि लोन मॉनिटरिंग मैकेनिज्म को मजबूत किया जा सकता है, ताकि निम्नलिखित को सुनिश्चित किया जा सके : (i) लोन्स संवितरण को उन विशिष्ट उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जा रहा है, जिनके लिए उन्हें मंजूरी दी गई थी, और (ii) लोन फंड्स को किसी दूसरे काम के लिए उपयोग करने की परंपरा धीरे-धीरे खत्म हो गई है।
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