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पीडीएफ

बीसीसीई बनाम सूचना का अधिकार एक्ट, 2005

लॉ कमीशन की रिपोर्ट का सारांश

  • भारतीय लॉ कमीशन (चेयर: जस्टिस बी.एस.चौहान) ने 18 अप्रैल, 2018 को अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें कमीशन ने इस बात की जांच की कि क्या बीसीसीआई (बोर्ड ऑफ कंट्रोल फॉर क्रिकेट इन इंडिया) सूचना का अधिकार एक्ट, 2005 के दायरे में आता है। बीसीसीआई एक रजिस्टर्ड सोसायटी है। यह भारत में क्रिकेट को रेगुलेट करने वाली एक केंद्रीय गवर्निंग बॉडी है जो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंट्स के लिए राष्ट्रीय टीम का चयन भी करती है। जुलाई 2016 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद इस रिपोर्ट को तैयार किया गया। इस आदेश में न्यायालय ने कहा था कि बीसीसीआई सार्वजनिक कार्य करता है और कमीशन से कहा गया था कि वह इस बात की जांच करे कि बीसीसीआई इस एक्ट के दायरे में आता है या नहीं।
     
  • रिपोर्ट में निम्नलिखित की जांच की गई: (i) क्या बीसीसीआई एक्ट के अंतर्गत आने वाली पब्लिक अथॉरिटी है, और (ii) क्या कर की भारी छूट और सरकार द्वारा सस्ती दरों (सबसिडाइज्ड रेट्स) पर जमीन देने को, सरकार द्वारा किए जाने वाले ‘अप्रत्यक्ष एवं बहुत अधिक वित्त पोषण’ के समान माना जाए। कमीशन ने कहा कि बीसीसीआई ‘सरकारी संस्थाओं’ जैसी शक्तियों का इस्तेमाल करता है और इसलिए बीसीसीआई पर एक्ट लागू होना चाहिए।
     
  • बीसीसीआई की प्रकृति ‘सरकारी संस्था जैसी’: कमीशन ने कहा कि क्रिकेट को रेगुलेट करने में बीसीसीआई का एकाधिकार (मोनोपली) है। इसके अतिरिक्त उसके पास ‘सरकारी संस्था जैसी’ शक्तियां हैं, चूंकि देश में क्रिकेट से संबंधित नीति निर्माण पर उसका नियंत्रण है। इसलिए वह एक्ट के दायरे में आता है। कमीशन ने यह सुझाव भी दिया कि बीसीसीआई को सरकारी एजेंसी के तौर पर देखा जाए। संविधान के अंतर्गत ‘सरकारी’ एजेंसी के खिलाफ मौलिक अधिकारों को लागू किया जा सकता है। अगर बीसीसीआई के साथ सरकारी एजेंसी जैसा बर्ताव किया जाएगा तो उसके खिलाफ इन अधिकारों को लागू किया जा सकेगा।
     
  • मानवाधिकारों का उल्लंघन: कमीशन ने कहा कि खेल आयोजनों में मानवाधिकार उल्लंघन के कई मामले पाए गए हैं (जैसे हिंसा, भेदभाव और मानव तस्करी)। उसने कहा कि निजी सहित सभी संस्थाएं मानवाधिकार उल्लंघन के लिए जवाबदेह हैं। उसने सुझाव दिया कि बीसीसीआई, जो सार्वजनिक कार्य करती है, को सभी परिस्थितियों में मूलभूत मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जबावदेह बनाया जाना चाहिए।
     
  • अत्यधिक सरकारी वित्त पोषण: एक्ट के अंतर्गत सरकार के स्वामित्व, नियंत्रण या अत्यधिक वित्त पोषण वाली संस्था, सार्वजनिक संस्था होती है। कमीशन ने कहा कि हालांकि बीसीसीआई को केंद्र सरकार की ओर से कोई प्रत्यक्ष वित्त पोषण प्राप्त नहीं होता। लेकिन कर छूट (जैसे इनकम टैक्स और कस्टम्स ड्यूटी) और अत्यधिक सस्ती दर पर जमीन दी जाती है जोकि बीसीसीआई को प्राप्त होने वाली अप्रत्यक्ष सहायता है। कमीशन ने गौर किया कि बीसीसीआई को ऐसी रियायतें और अपने इंफ्रास्ट्रक्चर के इस्तेमाल की अनुमति देकर सरकार अत्यधिक धनराशि प्रदान करती है। इसलिए सरकार द्वारा बीसीसीआई का अत्यधिक वित्त पोषण किया जाता है।
     
  • राष्ट्रीय खेल परिसंघ: कमीशन ने कहा कि बीसीसीआई को राष्ट्रीय खेल परिसंघ (एनएसएफ) के रूप में प्राधिकृत तो नहीं किया गया है, लेकिन उसके साथ वैसा ही बर्ताव किया जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उसके निर्दिष्ट उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं : (i) भारत में क्रिकेट को नियंत्रित करना और उसकी क्वालिटी में सुधार करना, (ii) भारत में क्रिकेट से संबंधित नीतियां बनाना, और (iii) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए टीमों का चयन करना। जिस एनएसएफ को सरकार से 10 लाख रुपए से अधिक का फंड प्राप्त होता है, वह आरटीआई एक्ट के अंतर्गत आता है। कमीशन ने गौर किया कि केंद्र सरकार पहले से ही बीसीसीआई को एनएसएफ समझती है।
     
  • अन्य संस्थाएं: कमीशन ने सुझाव दिया कि एक्ट बीसीसीआई सहित उससे संबद्ध क्रिकेट संगठनों (जैसे राज्य बोर्ड्स) पर लागू किया जाए जो बीसीसीआई के समान कार्य करते हैं।

 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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