विधि आयोग की रिपोर्ट का सारांश
- भारत के विधि आयोग (चेयरपर्सन : डॉ. जस्टिस बी.एस.चौहान) ने 27 अक्टूबर, 2017 को विधि और न्याय मंत्रालय को ‘भारत में ट्रिब्यूनलों की वैधानिक संरचनाओं का आकलन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। ट्रिब्यूनल अर्ध न्यायिक संस्थाएं होती हैं। अदालतों में मामलों के निपटारे में होने वाले विलंब को दूर करने के लिए ट्रिब्यूनलों का गठन किया जाता है।
- यह मुद्दा सर्वोच्च न्यायालय ने आयोग को रेफर किया था। रिपोर्ट में निम्नलिखित से संबंधित मुद्दों की जांच की गई : (i) ट्रिब्यूनलों का गठन, (ii) ट्रिब्यूनलों के चेयरमैन और सदस्यों की नियुक्ति, और (iii) ट्रिब्यूनलों के सदस्यों की सेवा शर्तें।
- ट्रिब्यूनलों में लंबित मामले : आयोग ने गौर किया कि कई ट्रिब्यूनलों में अत्यधिक संख्या में मामले लंबित हैं। इसका यह अर्थ है कि इनके गठन का उद्देश्य हासिल नहीं किया जा सका है।
तालिका 1: कुछ ट्रिब्यूनलों में लंबित मामले
ट्रिब्यूनल |
लंबित मामलों की संख्या |
केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल |
44,333 |
रेल दावा ट्रिब्यूनल |
45,604 |
ऋण वसूली ट्रिब्यूनल |
78,118 |
कस्टम्स, एक्साइज और सर्विस टैक्स अपील ट्रिब्यूनल |
90,592 |
इनकम टैक्स अपीलीय ट्रिब्यूनल |
91,538 |
नोट: 2016-17 के दौरान विभिन्न ट्रिब्यूनलों में भिन्न-भिन्न तिथियों तक जो मामले लंबित पड़े थे, यहां उनका डेटा दिया गया है।
Source: 272nd Report of the Law Commission of India.
- सदस्यों का चयन : आयोग ने कहा कि सदस्यों का चयन पक्षपात रहित होना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि सरकारी एजेंसियों की भागीदारी इसमें कम से कम होनी चाहिए, चूंकि सरकार सामान्य तौर पर हर मुकदमे में एक पक्ष होती है।
- आयोग ने सुझाव दिया कि ट्रिब्यूनलों के चेयरमैन, वाइस चेयरमैन और न्यायिक सदस्यों को एक सेलेक्शन कमिटी द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिए। भारत के मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश को इस कमिटी का सदस्य होना चाहिए। इसके अतिरिक्त सेलेक्शन कमिटी में केंद्र सरकार के दो नॉमिनी होने चाहिए। अन्य सदस्यों, जैसे प्रशासनिक सदस्यों, एकाउंटेंट सदस्यों और तकनीकी सदस्यों को अलग सेलेक्शन कमिटी द्वारा नियुक्त किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार के किसी नॉमिनी को इस सेलेक्शन कमिटी का प्रमुख बनाया जाना चाहिए। कमिटी भारत के मुख्य न्यायाधीश की सलाह से इन सदस्यों की नियुक्ति कर सकती है।
- सेवा शर्तों में एकरूपता : आयोग ने टिप्पणी की कि वर्तमान में ट्रिब्यूनलों के सदस्यों की सेवानिवृत्ति की आयु में कोई एकरूपता नहीं है। उसने सुझाव दिया कि ट्रिब्यूनल के (i) चेयरमैन, (ii) वाइस चेयरमैन और (iii) सदस्यों की नियुक्ति, सेवा की अवधि और सेवा शर्तों में एकरूपता होनी चाहिए। चेयरमैन को तीन वर्षों या 70 वर्ष की आयु तक, जो भी कम हो, पद धारण करना चाहिए। वाइस चेयरमैन को तीन वर्षों या 67 वर्ष की आयु तक पद पर रहना चाहिए।
- इसके अतिरिक्त आयोग ने सुझाव दिया कि विभिन्न ट्रिब्यूनलों के सभी मामलों में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए उनके कार्यों की निगरानी करने का जिम्मा एक नोडल एजेंसी को दिया जाना चाहिए जिसे विधि और न्याय मंत्रालय के अंतर्गत गठित किया जाए।
- अपील : आयोग ने गौर किया कि अदालतों के काम के बोझ को कम करने के लिए ट्रिब्यूनलों को गठित किया गया था। उसने सुझाव दिया कि किसी ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय में तभी अपील की जानी चाहिए जब उस ट्रिब्यूनल की स्थापना करने वाले कानून के अंतर्गत अपीलीय ट्रिब्यूनल की स्थापना न की गई हो। इसके अतिरिक्त अपीलीय ट्रिब्यूनल के आदेशों को उस उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी जा सकती हो जिसके क्षेत्राधिकार में अपीलीय ट्रिब्यूनल आता हो।
- आयोग ने गौर किया कि अगर अपीलीय ट्रिब्यूनलों के फैसलों के खिलाफ उच्च न्यायालयों में नियमित अपील की जाएगी तो ट्रिब्यूनल को स्थापित करने का उद्देश्य विफल हो सकता है। आयोग ने सुझाव दिया कि अपीलीय ट्रिब्यूनल के फैसलों से पीड़ित पक्ष केवल सार्वजनिक या राष्ट्रीय हित के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय जा सकें।
- ट्रिब्यूनल की न्यायपीठ : देश के विभिन्न भागों में ट्रिब्यूनलों की न्यायपीठ होनी चाहिए जिससे यह सुनिश्चित हो कि विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लोगों को न्याय मिले। इन न्यायपीठों को उन स्थानों पर होना चाहिए जहां उच्च न्यायालय स्थित हैं।
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