स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- रेलवे संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सन : सुदीप बंदोपाध्याय) ने 10 अगस्त, 2017 को भारतीय रेलवे के बकाया देय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। बकाया देय का अर्थ है, रेलवे की अप्राप्य (अनरियलाइज्ड) आय। इसमें माल ढुलाई का बकाया शुल्क, एकाउंटिंग की त्रुटियों के कारण बकाया राशि और रेलवे की जमीन का बकाया किराया शामिल है। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- बकाया देय : कमिटी ने टिप्पणी की कि रेलवे का बकाया देय जुलाई 2015 में 3,404 करोड़ रुपए, जुलाई 2016 में 3,082 करोड़ रुपए और मई 2017 में 3,117 करोड़ रुपए था। कमिटी ने यह टिप्पणी भी की कि रेलवे बोर्ड के वित्तीय कमीश्नर जोनल रेलवे को सलाह दे रहे हैं जिसकी वित्तीय स्थिति बिगड़ रही है। कमिटी ने सुझाव दिया कि रेल मंत्रालय को खास ध्यान रखना चाहिए कि बकाया देय जमा न होता जाए और क्रमिक तरीके से इसे कम से कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
- देय राशि को कम करने के लक्ष्य : कमिटी ने टिप्पणी की कि रेलवे ने बकाया राशि की निकासी का जो लक्ष्य रखा है, वह बहुत कम- 100 करोड़ रुपए सालाना है। 2005-06 और 2015-16 के बीच तो यह लक्ष्य और भी कम, 50 करोड़ रुपए सालाना था। इसके अतिरिक्त इस अवधि में 2006-07 और 2015-16 को छोड़कर इन लक्ष्यों को किसी दूसरे वर्ष हासिल नहीं किया जा सका। मंत्रालय ने इसके कई अप्रत्याशित कारण बताए हैं, जैसे विभिन्न पक्षों के विवाद, साइडिंग की मेनटेनेंस और अदालती मामले। हालांकि कमिटी ने टिप्पणी की कि इन कारणों को अप्रत्याशित नहीं कहा जा सकता।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को कुल देय की तुलना में बकाया राशि की रिकवरी का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और उसे कुछ अधिक मात्रा पर निश्चित करना चाहिए। स्टेशन मास्टरों को समय-समय पर अपने संबंधित स्टेशनों में बकाया देय की व्यक्तिगत रूप से जांच करनी चाहिए।
- देय राशि की रिकवरी : कमिटी ने गौर किया कि मई 2017 के अंत तक 1,764 करोड़ रुपए की देय राशि (जिसमें माल ढुलाई का अप्राप्य शुल्क, बकाया राशि को इकट्ठा करने में होने वाली त्रुटियां भी शामिल हैं) में से 784 करोड़ रुपए (44%) विभिन्न राज्य बिजली बोर्डों और पावर हाउसेज़ पर बकाया हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस देय राशि की रिकवरी के लिए मंत्रालय को उन बिजली बोर्डों के खिलाफ ठोस कदम उठाने की पहल करनी चाहिए जिन पर बहुत अधिक बकाया है।
- रेलवे के एम्पैनल में वकील : कमिटी ने टिप्पणी की कि रेलवे में वकीलों को तीन वर्ष की अवधि के लिए एम्पैनल किया जाता है और जोनल रेलवे की अनुशंसा के आधार पर उन्हें एक्सटेंशन मिलता है। रेलवे के पैनल में 414 वकील पांच वर्षों से भी अधिक अवधि से हैं। कमिटी ने यह भी गौर किया कि बकाया देय से जुड़े अदालती मामले लंबे समय से लंबित पड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए पंजाब राज्य बिजली बोर्ड के खिलाफ एक मामला 2002 से लंबित है। इससे पता चलता है कि रेलवे के वकीलों द्वारा कितनी खराब तरीके से मामले पेश किए जाते हैं।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को अपने पैनल में अनुभवी और नामचीन वकीलों को रखना चाहिए ताकि बेहतर तरीके से उनके मामलों को लड़ा जा सके। इसके अतिरिक्त रेलवे के पैनल में वकीलों को रखने की प्रक्रिया पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और केवल यदा-कदा ही उन्हें एक्सटेंशन दिए जाने चाहिए।
- लौह अयस्क (आयरन ओर) की ढुलाई : कमिटी ने गौर किया कि 2008 के दौरान विभिन्न कंपनियों द्वारा लौह अयस्क की ढुलाई में अनियमितताएं पाई गई थीं। इन कंपनियों ने गैर कानूनी दस्तावेजों को जमा करके रियायती दरों पर लौह अयस्क की ढुलाई की सुविधा हासिल की थी। इसके अतिरिक्त जबकि लौह आयस्क का घरेलू उपभोग किया जाना था, उसका गैर कानूनी तरीके से निर्यात और स्थानीय व्यापार किया गया। इसके कारण रेलवे को 6,730 करोड़ रुपए का घाटा उठाना पड़ा। इसमें से केवल 173 करोड़ रुपए (2.6%) कंपनियों से रिकवर किए जा सके।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि दस्तावेजों का बेहतर तरीके से आकलन और उनकी पुष्टि करने के लिए रेलवे को अपने अमले (मैनपावर) को मजबूत करना चाहिए। इसके अतिरिक्त नियमों का कठोरता से अनुपालन करना चाहिए (जैसे ढुलाई किए जाने वाले लौह अयस्क के प्रयोग की प्रकृति की पुष्टि के लिए अनिवार्य दस्तावेजों की जांच करना)।
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