स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- वाणिज्य पर गठित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर : भूपेंद्र यादव) ने 2 दिसंबर, 2016 को ‘बदलते वैश्विक परिदृश्य में औद्योगिक नीति’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के प्रमुख निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
- औद्योगिक सुधार : कमिटी ने टिप्पणी दी कि औद्योगिक क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं के मद्देनजर औद्योगिक सुधार किए जाने चाहिए। प्राकृतिक संसाधनों के आबंटन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक खुली, प्रतिस्पर्धात्मक कार्य प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए जिसमें उद्योगों को दी जाने वाली मंजूरी की प्रक्रिया का खुलासा होना चाहिए। जिन अन्य सुधारों का सुझाव दिया गया, उनमें राज्य सरकारों द्वारा उद्योगों के अनुकूल भूमि अधिग्रहण फ्रेमवर्क, भ्रष्टाचार निरोध संबंधी सुधार, बेहतर अंतर मंत्रालयी समन्वय और न्यायिक एवं वित्तीय सुधार तथा सार्वजनिक खरीद संबंधी कारगर सुधार शामिल हैं। स्मार्ट मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय मैन्यूफैक्चरिंग नीति को पुनःस्थापित किया जाना चाहिए जिसमें किसी भी प्रकार का विषैला उत्सर्जन, दुर्घटना या त्रुटियां न हों।
- अनुसंधान और विकास : मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में अधिकतर निम्न मूल्य संवर्धन वाले उद्योग शामिल हैं जोकि तकनीकी क्षमताएं सृजित नहीं कर सकते। चीन (1,923 अरब डॉलर) और अमेरिका (1,856 अरब डॉलर) की तुलना में भारत का मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र 226 अरब डॉलर मूल्य का है। इसके अतिरिक्त भारत अनुसंधान और विकास पर अपनी जीडीपी का 0.8% व्यय करता है, जबकि चीन 1.2% और अमेरिका 2.6% व्यय करता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि अधिक मूल्य संवर्धन हासिल करने के लिए सरकार को निजी क्षेत्र को ऐसा परिवेश प्रदान करना चाहिए जिससे वे तकनीक सृजन में निवेश कर सकें। मशीन टूल्स, बिजली के भारी उपकरणों, परिवहन और खनन उपकरणों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
- लघु उद्यमों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश : कमिटी ने टिप्पणी की कि हाल ही में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को बढ़ावा देने के संबंध में जो उपाय किए गए हैं, उनका अधिकतर लाभ बड़े उद्योगों को मिला है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों में एफडीआई को बढ़ावा देने के संबंध में उपाय कर सकती है। इसके अतिरिक्त किसी भी उद्योग में एफडीआई के संबंध में, एक निर्धारित अवधि (15-20 वर्ष) के बाद स्वामित्व को भारतीय पार्टनर को हस्तांतरित किए जाने को मंजूरी दी जा सकती है। इसमें तकनीक का हस्तांतरण भी शामिल है। विदेशी निवेशकों को भारत से तकनीक के अतिरिक्त दूसरे इनपुट्स को हासिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- बहुतायत कानून : वर्तमान में औद्योगिक क्षेत्र में 35 कानून मौजूद हैं। इससे नए उद्योगों को स्थापित करना और उनका अस्तित्व, दोनों प्रभावित होते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि पर्यावरणीय, वन एवं प्रदूषण सहित सभी सांविधिक मंजूरियां देने के लिए सिंगल विंडो प्रणाली स्थापित की जानी चाहिए, विशेष रूप से लघु और मध्यम दर्जे के उद्योगों के लिए। श्रम कानूनों और सामाजिक सुरक्षा कानूनों की भी समीक्षा की जानी चाहिए।
- एमएसएमई क्षेत्र का समावेश : देश के मैन्यूफैक्चरिंग आउटपुट और कुल निर्यात में सूक्ष्म, लघु और मध्यम दर्जे के उद्यमों (एमएसएमई) का योगदान क्रमशः 45% और 40% है। फिर भी इस क्षेत्र को ऋण, तकनीक, इंफ्रास्ट्रक्चर और कौशल विकास तक पहुंच न होने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि एमएसएमई क्षेत्र को वैकल्पिक स्रोतों से वित्त की सुविधा उपलब्ध कराई जानी चाहिए जैसे निजी इक्विटी, उद्यम पूंजी और एंजेल फंड्स। एमएसएमई को सूक्ष्म इकाई विकास एवं पुनर्वित्त एजेंसी योजना (मुद्रा) के तहत सहायता भी प्रदान की जा सकती है। इसके अतिरिक्त एमएसएमईज की परिभाषा की समीक्षा की जानी चाहिए। इसकी एक गतिशील परिभाषा विकसित की जा सकती है जोकि मुद्रास्फीति और बेहतर अंतरराष्ट्रीय परिपाटियों से जुड़ी हुई हो।
- भविष्य में अवसर : 2020 तक चीन (38.1 वर्ष), जापान (48.2 वर्ष) और अमेरिका (37.3 वर्ष) की तुलना में भारत में औसत आयु 28.1 वर्ष होने का अनुमान है। वर्तमान में देश की बहुतायत श्रमशील जनसंख्या असंगठित क्षेत्र में कार्य करती है जिससे इस क्षेत्र में कौशल की जरूरत का अनुमान लगाना कठिन हो जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि योजनाबद्ध कौशल विकास की मदद से भारत अपनी युवा जनसंख्या का उत्पादक प्रयोग कर सकेगा। देश में उत्पादन की कम लागत से भी मैन्यूफैक्चरिंग और उत्पादन के क्षेत्रों में भारत को प्रतिस्पर्धी वैश्विक लाभ प्राप्त होगा।
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