स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- विदेश मामलों संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सन: डॉ. शशि थरूर) ने 4 सितंबर, 2018 को ‘डोकलाम, सीमा की स्थिति सहित भारत-चीन संबंध और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के बीच समन्वय’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने कहा कि सरकार को भारत और चीन के बीच संबंधों का गहराई से आकलन करना चाहिए ताकि इस बात पर राष्ट्रीय सर्वसम्मति कायम की जा सके कि चीनी मसलों को कैसा निपटा जाए। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- वन बेल्ट वन रोड पहल: वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) चीन का एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट है जिसमें चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) शामिल है। कमिटी ने कहा कि सीपीईसी भारत में स्वीकार्य नहीं है क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है और भारत की क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता है। कमिटी ने ओबीओआर पहल को खारिज करने के भारत के फैसले का स्वागत किया। उसने सुझाव दिया कि ओबीओआर के जवाब में भारत को विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत अपने कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट्स को तेज करना चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि अपने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स को वित्त पोषित करने और आस-पड़ोस में कनेक्टिविटी में सुधार करने के लिए भारत को एशियन इंफ्रास्ट्रक्टर इनवेस्टमेंट बैंक और ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक का इस्तेमाल करना चाहिए।
- डोकलाम की घटना: कमिटी ने कहा कि डोकलाम (भूटान में) चीनी घुसपैठ, चीन और भूटान के बीच दो संधियों का उल्लंघन है। इन संधियों में शर्त थी कि वार्ता के दौरान सीमाओं पर यथा स्थिति बनी रहेगी। इसके अतिरिक्त यह 2012 की कॉमन अंडरस्टैंडिंग का भी उल्लंघन था। इसमें कहा गया था कि अगर चीन, भारत और किसी तीसरे देश के बीच सीमा संबंधी कोई विवाद होगा तो उस विवाद को तीसरे देश की सलाह से सुलझाया जाएगा। कमिटी ने इस संकट से निपटने के तरीके की सराहना की, चूंकि इससे इस बात का संकेत मिलता है कि भारत अपनी किसी भी सीमा पर यथास्थिति में बदलाव की बलपूर्वक कोशिशों को बर्दाश्त नहीं करेगा। हालांकि उसने इस बात पर चिंता जाहिर की कि ट्राई-जंक्शन क्षेत्र में चीनी इंफ्रास्ट्रक्चर को हटाया नहीं गया है।
- रक्षा सहयोग: कमिटी ने कहा कि हालांकि भारत और चीन के बीच रक्षा समन्वय में काफी वृद्धि हुई है लेकिन 2017 से यह रुका हुआ है। इसके अनेक कारण हैं जिनमें डोकलाम घटना और वन बेल्ट वन रोड विवाद शामिल हैं। कमिटी ने कहा कि चीन के साथ भारत के दीर्घकालीन संबंधों के हित में है कि दोनों देशों के बीच रक्षा समन्वय बहाल किए जाएं। इसलिए कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को चीन को रक्षा समन्वय की बहाली का प्रस्ताव भेजना चाहिए।
- सीमा विवाद: कमिटी ने कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा क्षेत्रों में कोई वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएओ) मौजूद नहीं है। एलएसी को लेकर होने वाले विवादों को सीमा स्थित सैन्यकर्मियों की वार्ता, विचार-विमर्श एवं समन्वय के कार्यकारी तंत्र (डब्ल्यूएमसीसी) और कूटनीतिक तरीके से सुलझाया जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि एक व्यापक बॉर्डर इंगेजमेंट एग्रीमेंट किया जाना चाहिए जिसमें इन तीनों तरीकों को शामिल किया जाए।
- सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर: कमिटी ने गौर किया कि भारत-चीन सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर अपर्याप्त है और बहुत सी सड़कें सैन्य यातायात का भार वहन नहीं कर सकतीं। इसके अतिरिक्त दुर्गम स्थानों, पर्यावरणीय मंजूरियों में देरी के कारण इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स लटके रहते हैं और सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के इंफ्रास्ट्रक्चर भी पर्याप्त नहीं हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को भारत-चीन सीमा पर सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार करने के लिए ठोस प्रयास करने चाहिए। इसके अतिरिक्त सीमा की सड़कों को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत बनाया जाना चाहिए ताकि आपात स्थिति में वे सेना के बैकअप के तौर पर काम करें।
- भारत-चीन व्यापार संबंधी मुद्दे: कमिटी ने कहा कि भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2017 में 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक होने की उम्मीद है। हालांकि भारत के लिए कुछ दूसरी समस्याएं भी हैं, जैसे चीन द्वारा गैर शुल्क बाधाएं (नॉन टैरिफ बैरियर्स) लगाना, वस्तुओं की डंपिंग और चीन द्वारा निवेश न करना। कमिटी ने सुझाव दिया कि भारत को चीनी कंपनियों को इस बात के लिए राजी करना चाहिए कि वे भारत में अधिक से अधिक निवेश करें। इसके अतिरिक्त चीन व्यापार संबंधी बाधाओं को कम करे, इसके लिए मंत्रिस्तरीय संयुक्त आर्थिक समूह जैसे उच्च स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए।
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