रिपोर्ट का सारांश
- जनवरी 2017 में एफआरबीएम रिव्यू कमिटी (चेयरपर्सन: एन.के.सिंह) ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट को अप्रैल 2017 में सार्वजनिक किया गया। कमिटी ने राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन एक्ट, 2003 (एफआरबीएम एक्ट) के स्थान पर ऋण प्रबंधन और राजकोषीय उत्तरदायित्व बिल, 2017 के मसौदे को प्रस्तावित किया है। कमिटी के मुख्य सुझाव और मसौदा बिल की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- जीडीपी के अनुपात में ऋण: कमिटी ने सुझाव दिया कि ऋण को राजकोषीय नीति के मुख्य लक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जाए। ऋण-जीडीपी अनुपात 60% रखने का सुझाव दिया गया है जिसमें केंद्र के लिए 40% की सीमा तय की गई है और राज्यों की 20% की। कमिटी ने टिप्पणी की कि जिन देशों ने राजकोषीय नियमों को अपनाया है, उनमें से अधिकतर ने ऋण-जीडीपी अनुपात को 60% ही रखा है। इस ऋण-जीडीपी अनुपात के लक्ष्य को 2023 तक हासिल किया जाना चाहिए। 2017 में यह अनुपात 70% होने का अनुमान है।
- लक्षित ऋण-जीडीपी अनुपात को हासिल करने के लिए कमिटी ने 2023 तक राजकोषीय और राजस्व घाटे को उत्तरोत्तर कम करने का वार्षिक लक्ष्य प्रस्तावित किया है (तालिका 1)। उल्लेखनीय है कि ऋण सरकार की कुल बकाया देनदारियां होता है, जबकि राजकोषीय घाटा वर्ष की नई उधारियों का संकेत देता है और राजस्व घाटा बताता है कि राजस्व व्यय पूरा करने के लिए नई उधारियों के किस हिस्से का प्रयोग किया गया है।
तालिका 1: घाटा और ऋण लक्ष्य (जीडीपी का %)
वर्ष |
राजकोषीय घाटा |
राजस्व घाटा |
ऋण |
2017-18 |
3.0% |
2.1% |
47.3% |
2018-19 |
3.0% |
1.8% |
45.5% |
2019-20 |
3.0% |
1.6% |
43.7% |
2020-21 |
2.8% |
1.3% |
42.0% |
2021-22 |
2.6% |
1.1% |
40.3% |
2022-23 |
2.5% |
0.8% |
38.7% |
नोट: मसौदा बिल राजकोषीय और राजस्व घाटे की सीमा स्पष्ट करता है। ऋण-जीडीपी अनुपात की सीमा कमिटी की रिपोर्ट में निर्धारित की गई है।
- राजकोषीय परिषद: कमिटी ने एक स्वायत्त राजकोषीय परिषद के गठन का प्रस्ताव रखा है जिसके चेयरपर्सन और दो सदस्यों को केंद्र द्वारा नियुक्त किया जाएगा। इन तीनों का कार्यकाल चार वर्ष का होगा और कमिटी ने सुझाव दिया है कि इनकी पुनर्नियुक्ति न की जाए ताकि ये स्वतंत्र तरीके से काम कर सकें। इसके अतिरिक्त नियुक्ति के समय इन व्यक्तियों को केंद्र या राज्य सरकारों का कर्मचारी नहीं होना चाहिए।
- परिषद के कार्य: परिषद के कार्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे: (i) एकाधिक वर्ष के राजकोषीय पूर्वानुमान को तैयार करना, (ii) राजकोषीय रणनीति में परिवर्तन का सुझाव देना, (iii) राजकोषीय आंकड़ों की क्वालिटी में सुधार करना, (iv) राजकोषीय लक्ष्य में विचलन (डेविएशन) की स्थिति में सरकार को सुझाव देना, और (v) बिल के प्रावधानों का उल्लंघन होने पर सुधारात्मक कार्रवाई के संबंध में सरकार को सलाह देना।
- लक्ष्य में विचलन (डेविएशन): कमिटी ने टिप्पणी की कि एफआरबीएम एक्ट के तहत सरकार किसी राष्ट्रीय आपदा, राष्ट्रीय सुरक्षा या अन्य असामान्य स्थिति, जिसे सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाए, में राजकोषीय लक्ष्य में विचलन कर सकती है। लेकिन सरकार को ऐसे अधिकार देने से 2003 के एक्ट के प्रावधान कमजोर होते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार द्वारा लक्ष्य में विचलन किस आधार पर किया जाए, यह स्पष्ट रूप से निर्धारित होना चाहिए। सरकर को इसे अधिसूचित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
- इसके अतिरिक्त सरकार को निम्नलिखित स्थितियों में राजकोषीय परिषद की सलाह पर निर्धारित लक्ष्य में विचलन करने की अनुमति दी जा सकती है: (i) राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा, युद्ध, राष्ट्रीय आपदा और खेती के असफल होने पर, जिससे उत्पादन एवं आय पर प्रभाव पड़े, (ii) अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक सुधार के लिए, जिसका राजकोषीय प्रभाव पड़े, या (iii) अगर वास्तविक उत्पादन वृद्धि पिछली चार तिमाही के औसत से 3% कम हो। यह विचलन एक साल की जीडीपी के 0.5% से अधिक नहीं हो सकता।
- भिन्न-भिन्न राज्यों के लिए डेट ट्राजेक्टरी: कमिटी ने सुझाव दिया कि 15 वें वित्त आयोग को भिन्न-भिन्न राज्यों के लिए डेट ट्राजेक्टरी का सुझाव देने के लिए कहा जाना चाहिए। इसे उनकी वित्तीय समझदारी और वित्तीय स्वास्थ्य के ट्रैक रिकॉर्ड पर आधारित होना चाहिए।
- आरबीआई से उधारियां: मसौदा बिल सरकार को भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से उधार लेने से प्रतिबंधित करता है। मसौदा बिल के अनुसार, सरकार केवल निम्नलिखित स्थितियों में आरबीआई से उधार ले सकती है: (i) जब सरकार को प्राप्तियों में अस्थायी कमी को पूरा करना हो, (ii) अगर निर्दिष्ट लक्ष्यों में किसी प्रकार के विचलन को वित्त पोषित करने के लिए आरबीआई सरकारी सिक्योरिटी को सबस्क्राइब करे, या (iii) आरबीआई द्वितीयक बाजार से सरकारी सिक्योरिटी खरीदे।
- रिव्यू कमिटी: मसौदा बिल केंद्र सरकार से 2023-24 में बिल के कामकाज की समीक्षा करने के लिए एक कमिटी गठित करने की अपेक्षा करता है।
- असहमति का नोट: अरविंद सुब्रह्मण्यम ने असहमति जताते हुए एक नोट सौंपा। उन्होंने कहा कि (i) अगर उत्पादन पिछली चार तिमाही के औसत से 3% कम हो तो ऐसी स्थिति में विचलन की अनुमति देने से, संभव है कि आर्थिक गिरावट और तीव्र वृद्धि को संभालना मुश्किल हो, और (ii) निश्चित सीमा के साथ अनेक लक्ष्य (ऋण, राजकोषीय घाटा और राजस्व घाटा) होने से, संभव है कि उन्हें हासिल करना मुश्किल हो। उन्होंने एकल लक्ष्य का सुझाव दिया, यानी डिक्लाइनिंग ट्राजेक्टरी पर ऋण को रखना, और 2023 तक ऋण और घाटों को कम करने की वैकल्पिक सीमाओं को प्रस्तावित किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने राजस्व घाटे के लक्ष्य को निर्दिष्ट करने के विरोध में अपना मत रखा।
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