स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- श्रम संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. किरीट सोमैय्या) ने 9 अगस्त, 2018 को ‘एक्सक्लूडेड कैटेगरी पर ईपीएफओ के रेगुलेटरी फ्रेमवर्क को लागू करना बनाम पीएफ एक्ट्स का कार्यान्वयन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने प्रॉविडेंट फंड्स (पीएफ) की विस्तार से समीक्षा की। उसने कहा कि कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान एक्ट, 1952 के अनुसार, बड़ी संख्या में पीएफ योजनाओं को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा रेगुलेट किया जाता है। हालांकि कमिटी ने कहा कि पीएफ योजनाओं की कई कैटेगरी 1952 के एक्ट के दायरे में नहीं आतीं, ये कैटेगरी विशेष कानूनों को अंतर्गत आती हैं (जैसे भविष्य निधि एक्ट, 1925 और अन्य वैधानिक भविष्य निधियां)। कमिटी ने कहा कि इन विभिन्न पीएफ ट्रस्ट्स को दायरे में लाने के लिए एक रेगुलेटरी व्यवस्था की जरूरत थी।
- एक्सक्लूडेड पीएफ ट्रस्ट्स का रेगुलेशन: 1952 के एक्ट के अनुसार, इस्टैबलिशमेंट्स की दो कैटेगरी हैं- छूट प्राप्त और एक्सक्लूडेड। कुछ इस्टैबलिशमेंट्स को 1952 के एक्ट से छूट दी गई है। हालांकि 1952 के एक्ट के प्रावधान कुछ एक्सक्लूडेड इस्टैबलिशमेंट्स पर लागू नहीं होते, जैसे 50 मजदूरों से कम वाली पंजीकृत कोऑपरेटिव सोसायटियां। उनके अपने पीएफ ट्रस्ट्स हैं। इसके अतिरिक्त कमिटी ने गौर किया कि कई एक्सक्लूडेड इस्टैबलिशमेंट्स को भविष्य निधि एक्ट, 1925 द्वारा रेगुलेट किया जाता है। 1952 का एक्ट उन प्रॉविडेंट फंड्स पर लागू होता है, जो मुख्य रूप से सरकार, स्थानीय निकायों और रेलवे से संबंधित हैं।
- कमिटी ने कहा कि केंद्रीय स्तर पर ऐसा कोई रेगुलेटर नहीं है जो सभी मौजूदा प्रॉविडेंट फंड्स को रेगुलेट करता हो। उसने इस बात पर बल दिया कि केंद्रीय स्तर पर एक रेगुलेटर की जरूरत है, जिससे (i) योगदान देने वाले कर्मचारियों के हितों की रक्षा हो, (ii) अधिकतम रिटर्न हासिल करने के लिए उनके योगदान का उचित निवेश सुनिश्चित हो, (iii) इन ट्रस्ट्स में उस जमा राशि का इस्तेमाल किया जा सके, जिस पर किसी का दावा नहीं है, और (iv) वित्तीय धोखाधड़ी से बचा जा सके।
- भविष्य निधि एक्ट, 1925 के अंतर्गत ट्रस्ट्स का रेगुलेशन: कमिटी ने गौर किया कि हाल तक 1925 के एक्ट के अंतर्गत आने वाले पीएफ ट्रस्ट्स को किसी मंत्रालय या रेगुलेटरी अथॉरिटी (जैसे पेंशन फंड रेगुलेटरी और डेवलपमेंट अथॉरिटी, या ईपीएफओ) द्वारा रेगुलेट नहीं किया जाता था। उसने कहा कि 1925 के एक्ट के अंतर्गत पीएफ ट्रस्ट्स का प्रबंधन हाल ही में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय को सौंपा गया है।
- कमिटी को यह सूचित किया गया था कि 1952 के एक्ट के अंतर्गत ईपीएफओ को सभी पीएफ ट्रस्ट्स का अकेला रेगुलेटर बनाने पर सहमति कायम हो गई है। इस बात पर भी सहमति बनी है कि इस एक्ट के अंतर्गत एक्सक्लूडेड और छूट प्राप्त इस्टैबलिशमेंट्स को लाया जाए। कमिटी ने कहा कि एक सिंगल रेगुलेटर होने से यह सुनिश्चित होगा कि सभी ट्रस्ट्स उचित तरीके से काम कर रहे हैं और भविष्य में होने वाली वित्तीय धोखाधड़ियों को रोका जा सकेगा। कमिटी ने सुझाव दिया था कि सरकार या तो इन अनरेगुलेटेड ट्रस्ट्स के लिए नए कानून का मसौदा तैयार करे या 1952 के एक्ट में 1925 के एक्ट के प्रासंगिक प्रावधानों को जोड़े।
- आंकड़े जमा करना: कमिटी ने मंत्रालय से कहा कि वह 1925 के एक्ट के अंतर्गत आने वाले इस्टैबलिशमेंट्स के ट्रस्ट्स की कुल संख्या के संबंध में जरूरी आंकड़े एकत्र करे। इसमें सबस्क्राइबर्स की संख्या और उनके कुल योगदान का विवरण भी होना चाहिए। इससे इन ट्रस्ट्स में जमा उस राशि को चिन्हित करने में मदद मिलेगी जिस पर किसी का दावा नहीं है। ऐसा करना सबस्क्राइबर्स के हित में होगा।
- अनाधिकृत कटौती: कमिटी ने गौर किया कि 1952 का एक्ट व्यक्तिगत खाते में जमा पीएफ राशि की जब्ती के खिलाफ संरक्षण प्रदान करता है। लेकिन कुछ संगठन (जैसे बैंक), जोकि अपने पीएफ योगदानों का प्रबंधन खुद करते हैं, अनुशासनात्मक कार्रवाई के आधार पर व्यक्तिगत खातों से जुर्माना काट लेते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि एक रेगुलेटरी बॉडी बनाई जाए जो नियमों का उल्लंघन करने वाले इस्टैबलिशमेंट्स के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे।
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