स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- रसायन और उर्वरक संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर : आनंदराव अडसुल) ने 19 दिसंबर, 2017 को ‘फ्रेट सब्सिडी पॉलिसी’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। अप्रैल 2008 में यूनिफॉर्म फ्रेट पॉलिसी जारी की गई थी। इस पॉलिसी के अंतर्गत उर्वरक मैन्यूफैक्चरर्स को फ्रेट सब्सिडी दी जाती है ताकि देश के सभी हिस्सों में समय पर और आसानी से उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। उर्वरक विभाग अधिसूचित दरों पर पुनर्भुगतान करता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
- अधिसूचना में देरी : कमिटी ने गौर किया कि सब्सिडी पॉलिसी को 2008 में अधिसूचित किया गया, लेकिन प्रति किलोमीटर दर को समय पर जारी नहीं किया गया। यह गौर किया गया कि 2007-08, 2008-09 और 2009-10 की दरों को मार्च 2014 में अधिसूचित किया गया। इसी प्रकार 2014-15 और 2015-16 की दरों को सितंबर 2017 में अधिसूचित किया गया। चूंकि फ्रेट की दरें पूर्व प्रभाव से (रेट्रोस्पेक्टिवली) लागू होती हैं, इसलिए कई वर्षों से जमा होती जाती हैं। कमिटी के अनुसार, इससे उर्वरक कंपनियों की अंडर रिकवरी का दबाव बढ़ गया है।
- फ्रेट की दरें : यूनिफॉर्म फ्रेट सब्सिडी पॉलिसी के अंतर्गत फ्रेट की दरों को चार खंडों (स्लैब्स) में अधिसूचित किया गया है, जोकि तालिका 1 में प्रदर्शित है। कमिटी ने कहा कि खंड वार दरों की बजाय पुरानी दरों को जारी रखा जाना चाहिए।
तालिका 1: 2015-16 के लिए खंड वार दरें (सीधे सड़क से)
दूरी (किलोमीटर में) |
प्रति टन प्रति किलोमीटर दर (रु.में) |
0-100 |
4.25 |
101-250 |
2.71 |
251-350 |
2.02 |
351-500 |
1.82 |
Sources: Report No. 41, Standing Committee of Chemicals and Fertilizers, December 2017; PRS.
- यह कहा गया कि फ्रेट की दरों की खंड वार व्यवस्था प्रभावी और सफल नहीं थी। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को नई यूनिफॉर्म फ्रेट सब्सिडी पॉलिसी के सभी पहलुओं की समीक्षा करनी चाहिए और उस पर दोबारा चर्चा करनी चाहिए, और एक ऐसी पॉलिसी प्रस्तुत करनी चाहिए जो वैज्ञानिक और किफायती हो।
- इंटिग्रेटेड फर्टिलाइजर मैनेजमेंट सिस्टम (आईएफएमएस) : उर्वरक अभियान की निगरानी करने के अतिरिक्त सब्सिडी के दावों को प्रोसेस करने और उर्वरकों की आपूर्ति को प्रबंधित करने के लिए आईएफएमएस को शुरू किया गया था। कमिटी ने गौर किया कि आईएफएमएस में सिलसिलेवार तरीके से ही सब्सिडी के दावे किए जा सकते हैं। इसके यह मायने हैं कि अगर किसी एक महीने के दावे पेंडिंग हैं, तो उसके अगले महीने के दावे को हासिल नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि मौजूदा सॉफ्टवेयर को रीडिजाइन किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि सब्सिडी का भुगतान बिना रुकावट और समय पर किया जा रहा है।
- डेटा फीड करने की प्रक्रिया : कमिटी ने कहा कि उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी को हासिल करने के लिए 2008 से (महीने वार) रेट्रोस्पेक्टिवली डेटा फीड करने होते हैं। लेकिन पिछले वर्षों के डेटा को फीड करने की प्रक्रिया बहुत बोझिल और थकाऊ है। दरों को अधिसूचित करने में होने वाली देरी को देखते हुए कमिटी ने सुझाव दिया कि विभिन्न फसलों के मौसम के शुरू होने से पहले दरों को अधिसूचित किया जाना चाहिए।
- फ्रेट बजट : केंद्रीय बजट 2017-18 में फ्रेट सब्सिडी के लिए 3,000 करोड़ रुपए आबंटित किए गए थे। इसमें से 2,980 करोड़ रुपए 2015 से जनवरी 2017 के बीच की अवधि के भुगतान के लिए प्रयोग किए गए। फरवरी 2017 से सब्सिडी के भुगतान के लिए 2017-18 के संशोधित अनुमानों में 3,700 करोड़ रुपए की अतिरिक्त राशि प्रस्तावित की गई। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को फरवरी 2017 से पेंडिंग दावों और 2008 से फ्रेट बिल चुकाने के लिए फंड्स देने चाहिए।
- भुगतान में लगने वाला समय : सब्सिडी का भुगतान दावों की प्राप्ति के 60 दिनों के भीतर कर दिया जाना चाहिए। कमिटी ने गौर किया कि मंत्रालय को इस भुगतान में औसतन छह महीने का समय लग जाता है। कमिटी ने कहा कि इससे उर्वरक कंपनियों के लाभ पर असर होता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को दावों के भुगतान के लिए 60 दिनों की सीमा का कड़ाई से पालन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह सुझाव दिया गया कि अगर भुगतान में 60 दिनों से अधिक का समय लगता है तो उर्वरक कंपनियों को लंबित अवधि (डीलेड पीरियड) का ब्याज दिया जाना चाहिए।
- रेक्स की उपलब्धता : कमिटी ने कहा कि रेल रेक्स से उर्वरकों को अनलोड करने और उन्हें जिलों एवं ब्लॉक्स में ट्रांसपोर्ट करने के लिए रेलवे रेक प्वाइंट्स का प्रयोग किया जाता है। राज्य सरकारें रसायन और उर्वरक मंत्रालय से आग्रह कर सकती हैं कि वे अधिक रेक प्वाइंट्स बनाएं। इसके बाद रसायन और उर्वरक मंत्रालय इस मुद्दे पर रेलवे मंत्रालय से बात कर सकता है। कमिटी ने कहा कि ऐसे 45 प्रस्ताव रसायन और उर्वरक मंत्रालय में लंबित थे। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि वर्तमान में केवल 880 रेल रेक प्वाइंट्स उपलब्ध हैं जो इतने बड़े देश को देखते हुए अपर्याप्त हैं। इसलिए यह सुझाव दिया गया कि नए रेक प्वाइंट्स खोलने को सर्वाधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
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