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पीडीएफ

ग्रामीण बीपीओ का विस्तार और उनकी चुनौतियां

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सन: अनुराग सिंह ठाकुर) ने 9 अगस्त, 2018 को ‘ग्रामीण बीपीओ का विस्तार और उनकी चुनौतियां’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
     
  • फर्म्स पर डेटा: कमिटी ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) फर्मों का लोकेशन वाइज़ डेटा नहीं रखता। विश्वव्यापी बीपीओ बाजार में भारत की हिस्सेदारी को मजबूत और संगठित करने के लिए कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को भारत में बीपीओ उद्योग से संबंधित डेटा रखना चाहिए।
     
  • बीपीओ प्रमोशन की योजनाएं: कमिटी ने कहा कि मंत्रालय ने बीपीओ क्षेत्र में रोजगार सृजन के लिए दो योजनाएं शुरू की हैं : (i) भारतीय बीपीओ संवर्धन योजना (आईबीपीएस), और (ii) उत्तर पूर्व बीपीओ संवर्धन योजना (एनईबीपीएस)। ये दोनों योजनाएं बीपीओ क्षेत्र में रोजगार के अवसर व्यापक बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं। इन योजनाओं की अवधि मार्च 2019 तक है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इन योजनाओं के सफल कार्यान्वयन के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए जिससे वे विनिर्दिष्ट समयावधि में अपने लक्ष्यों को पूरा कर सकें।
     
  • योजनाओं का पुनर्निर्माण: कमिटी ने कहा कि वर्तमान में आईबीपीएस और एनईबीपीएस, दोनों योजनाएं उन बीपीओज़ की मदद नहीं करतीं, जो अपना विस्तार करना चाहते हैं। उसने सुझाव दिया कि दोनों योजनाओं का दायरा और पहुंच बढ़ाया जाए ताकि भारतीय बीपीओ क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सके। इसके अतिरिक्त कमिटी ने यह सुझाव दिया कि दूसरे देशों की बीपीओ नीतियों का अध्ययन किया जाना चाहिए और अपने यहां की नीतियों में उन देशों की बेहतर कार्य प्रणालियों को शामिल करना चाहिए।
     
  • राष्ट्रीय बीपीओ नीति: कमिटी ने कहा कि मंत्रालय के पास आउटसोर्सिंग और बीपीओज़ पर अलग-अलग नीतियां नहीं हैं। उसके अनुसार, इस बात का मूल्यांकन किया जाना चाहिए कि क्या एक अलग राष्ट्रीय बीपीओ नीति बनाई जानी चाहिए या इस क्षेत्र को राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी नीति, 2012 के अंतर्गत पर्याप्त रूप से कवर किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय राज्यों में बीपीओज़ को बढ़ावा देने के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकता है।
     
  • कौशल विकास: कमिटी ने कहा कि भारतीय आईटी और बीपीओ क्षेत्र में कौशल विकास और प्रशिक्षण पर अधिक बल दिए जाने की जरूरत है। अलग-अलग स्तर पर पहल करने की बजाय एकीकृत दृष्टिकोण अपनाए जाने की भी जरूरत है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मौजूदा कौशल विकास कार्यक्रमों को सिनर्जाइज और स्पेशनलाइज्ड किया जाना चाहिए जिससे इस क्षेत्र के विस्तार में मदद मिले। इसके अतिरिक्त बीपीओ उद्योग की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस क्षेत्र के संगठनों के सहयोग से एक संस्थान के गठन के विकल्प पर काम किया जाना चाहिए।
     
  • घरेलू बाजार: कमिटी के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार पर पूरी तरह से निर्भर रहने की बजाय इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि भारतीय बाजार की जरूरतों को पूरा करने के लिए बीपीओ क्षेत्र को प्रोत्साहित किया जाए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि भारत में बीपीओ उद्योग के राजस्व में घरेलू कामकाज से प्राप्त होने वाले राजस्व को बढ़ाने के उपाय किए जाने चाहिए।
     
  • महिलाओं की सुरक्षा: कमिटी ने कहा कि भारत में बीपीओ क्षेत्र में महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती है। इस समस्या को हल करने के लिए कंपनियां कई उपाय कर रही हैं, जैसे परिवहन सुविधाओं, सेक्योरिटी गार्ड्स का प्रावधान, और महिला सुरक्षा पर जागरूकता फैलाने के लिए वर्कशॉप्स करना। कमिटी ने सुझाव दिया कि इन कदमों के अतिरिक्त महिला कर्मचारियों को रहने की उपयुक्त जगह की व्यवस्था करने के बारे में सोचना चाहिए। यह सुझाव दिया गया कि कार्यस्थलों पर अनुकूल परिवेश बनाने पर जोर दिया जाए ताकि महिला कर्मचारियों को सुरक्षा संबंधी कठिनाइयों का सामना न करना पड़े।            

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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