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पीडीएफ

हिरासत में महिलाएं और न्याय तक उनकी पहुंच

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • महिला सशक्तीकरण संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर : बिजया चक्रवर्ती) ने 22 दिसंबर, 2017 को ‘हिरासत में महिलाएं और न्याय तक उनकी पहुंच’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। भारतीय कारागार एक्ट, 1894 जेलों के गवर्नेंस से जुड़े मामलों का मुख्य कानून है। अन्य कानूनों में भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) और भारतीय प्रमाण एक्ट, 1872 शामिल हैं जो हिरासत में अत्याचार और अन्य अपराधों से सुरक्षा प्रदान करते हैं। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
     
  • जेलों में कैदियों की अत्यधिक संख्या : कमिटी ने गौर किया कि जेलों में महिला कैदियों की अत्यधिक संख्या भी एक गंभीर समस्या है क्योंकि महिला जेलों में क्षमता से अधिक कैदी मौजूद हैं। 31 दिसंबर, 2015 तक केंद्रीय जेलों में कैदियों की संख्या 1,85,182 थी जबकि जेलों की अधिकृत क्षमता 1,59,158 थी। इससे जेलों में कैदियों को बुनियादी सुविधाएं, जैसे साफ-सफाई, भोजन और स्वास्थ्य देखभाल हासिल नहीं हो पातीं। इसके अतिरिक्त जेलों पर खर्चा भी बढ़ता है।
     
  • कमिटी के अनुसार, इसका एक कारण यह है कि जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों पर लंबे समय तक मुकदमे चलते रहते हैं। इन कैदियों में बहुत से छोटे-मोटे अपराधी होते हैं जैसे मादक पदार्थों के छोटे विक्रेता, बिना टिकट यात्रा करने वाले और ट्रेन की जंजीर खींचने वाले (चेन पुलिंग)। इसके लिए कमिटी ने सुझाव दिया कि गैर अपराधी किस्म के दोषियों और छोटे-मोटे अपराधियों से निपटने के लिए कुछ वैकल्पिक तरीके अपनाए जाने चाहिए।
     
  • हिरासत में अत्याचार : कमिटी ने गौर किया कि पुलिसिया व्यवहार के कारण हिरासत में कैदियों के अधिकारों का उल्लंघन एक बड़ी समस्या है। इनमें हिरासत में बलात्कार और हत्याएं शामिल हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि जेल का प्रभावी प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए चौकसी के बेहतर उपाय किए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त यह सुझाव भी दिया गया कि सिविल राइट्स एक्टिविस्ट्स के साथ अधिक संवाद स्थापित करना चाहिए और कैदियों तक उनकी पहुंच होनी चाहिए।
     
  • अधिकारियों का प्रशिक्षण और भर्ती : कमिटी ने कहा कि जेल प्रबंधन को महिलाओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए अधिकारियों को ऐसा प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए जिनसे उनमें महिला कैदियों के प्रति सकारात्मक रवैया पैदा हो। इसके अतिरिक्त कमिटी ने सुझाव दिया कि जेल प्रशासन की जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए।
     
  • कमिटी ने यह भी गौर किया कि जेल प्रबंधन में महिला कर्मचारियों की कमी है जोकि महिला कैदियों के प्रबंधन पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इस संबंध में कमिटी ने गौर किया कि इन कमियों को पूरा करने के लिए विशेष भर्ती अभियान शुरू किए जाने चाहिए।
     
  • स्वास्थ्य देखभाल की जरूरतें : कमिटी ने गौर किया कि महिला कैदियों को होने वाली सामान्य बीमारियों से संबंधित आंकड़े मौजूद नहीं हैं। कमिटी ने कहा कि राज्य सरकारों और गैर सरकारी संगठनों की मदद से जेलों में ऐसे आंकड़ों को संकलित करने के लिए सर्वे किए जाएं। कमिटी ने यह भी कहा कि जेलों में डॉक्टरों, अर्ध चिकित्साकर्मियों और मेडिकल उपकरणों की भी कमी थी।
     
  • मॉडल प्रिज़न मैनुअल : देश में जेल प्रशासन को रेगुलेट करने वाले नियमों में एकरूपता लाने के उद्देश्य से मॉडल प्रिज़न मैनुअल, 2003 को तैयार किया गया था। जनवरी 2016 में एक संशोधित मॉडल प्रिज़न मैनुअल मंजूर किया गया। कमिटी ने गौर किया कि मॉडल प्रिज़न मैनुअल, 2003 के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए कोई उल्लेखनीय कदम नहीं उठाए गए। इसके अतिरिक्त मैनुअल के पारित होने के तेरह वर्षों के बाद भी उनके कार्यान्वयन के प्रभावों का आकलन नहीं किया गया। कमिटी ने सुझाव दिया कि मॉडल प्रिज़न मैनुअल, 2003 और नए मॉडल प्रिज़न मैनुअल, 2016, दोनों के कार्यान्वयन के प्रभावों का आकलन किया जाना चाहिए।
     
  • विदेशी नागरिक : कमिटी ने गौर किया कि विदेशी कैदी निम्नलिखित कारण से अधिक संवेदनशील हैं: (i) मुकदमेबाजी की समझ न होना, (ii) दुभाषिए का न होना, और (iii) भाषाई अंतर। कमिटी ने सुझाव दिया कि जेल प्रशासन को विदेशी कैदियों की धार्मिक, आहार संबंधी और आध्यात्मिक जरूरतों को पूरा करना चाहिए। इसके अतिरिक्त यह सुझाव दिया गया कि विदेशी कैदियों की समस्याओं से निपटने के लिए विशेष सेल बनाया जाना चाहिए।
     
  • न्याय तक महिलाओं की पहुंच : कमिटी ने गौर किया कि सभी जिलों में जिला कानूनी सहायता सोसायटीज (डीएलएएसज़) हैं जोकि कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि डीएलएएसज़ को सभी श्रेणियों के कैदियों, जैसे अंडर ट्रायल्स, को कानूनी संसाधन प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त एप्लीकेशन, एफिडेविड ड्राफ्ट करने और दूसरी कानूनी प्रक्रियाओं में मदद करने के लिए स्वयंसेवियों को जोड़ने के ठोस प्रयास किए जाने चाहिए। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि महिला कैदियों को आसानी से न्याय प्राप्त हो, इसके लिए महिला वकीलों को डीएलएएसज़ के साथ संलग्न किया जाना चाहिए।

 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है।▪ पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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