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पीडीएफ

इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 में सुधार से संबंधित कमिटी की रिपोर्ट

रिपोर्ट का सारांश

  • इंडियन मेडिकल काउंसिल (आईएमसी) एक्ट, 1956 में सुधार से संबंधित कमिटी (चेयर : डॉ. अरविंद पानगढ़िया) ने अगस्त, 2016 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। आईएमसी एक्ट के प्रावधानों की जांच करने और मेडिकल शिक्षा के परिणामों में सुधार संबंधी सुझाव प्रदान करने हेतु इस कमिटी का गठन नीति आयोग के अंतर्गत किया गया था।
     
  • कमिटी ने प्रस्तावित किया कि आईएमसी एक्ट के स्थान पर एक नया एक्ट लाया जाना चाहिए और इस उद्देश्य के लिए कमिटी ने एक मसौदा बिल प्रस्तावित किया। साथ ही, कमिटी ने मेडिकल शिक्षा के मौजूदा रेगुलेटरी ढांचे की पूरी तरह से कायापलट करने का सुझाव दिया। कमिटी की मुख्य टिप्पणियां और सुझाव निम्नलिखित हैं :
     
  • मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से संबंधित समस्याएं : कमिटी ने काउंसिल के कार्यों से संबंधित निम्नलिखित समस्याओं पर विचार किया : (i) परस्पर हितों का टकराव, जहां रेगुलेटेड (जैसे मेडिकल कॉलेजों का प्रबंधन) रेगुलेटरों को चुनते हैं जिसके कारण नौकरियों में दक्ष पेशेवरों का प्रवेश नहीं हो पाता, (ii) शक्तियों का केंद्रीकरण जिससे जिम्मेदारियों को बांटा नहीं जाता, (iii) इनपुट आधारित रेगुलेशन जिसमें निरीक्षण और संरचनाओं पर अधिक और शिक्षा की गुणवत्ता और परिणामों पर कम जोर दिया जाता है, और (iv) मेडिकल शिक्षा की समसामयिक चुनौतियों का सामना करने में विफलता।
     
  • नई रेगुलेटरी संरचना : कमिटी ने सुझाव दिया कि मौजूदा मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की जगह राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (एनएमसी) का गठन किया जाना चाहिए। एनएमसी भारत में मेडिकल शिक्षा के लिए नीति निर्माण निकाय का काम करेगा। इसमें स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और मानव संसाधन विकास मंत्रालयों, फार्मास्युटिकल विभाग के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त संबंधित विषयों के विशेषज्ञ भी शामिल होंगे।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि स्पष्ट रूप से निर्धारित भूमिकाओं के साथ स्वतंत्र निकायों का गठन किया जाना चाहिए जिनका समायोजन एएमसी द्वारा किया जाएगा। ये निकाय निम्नलिखित हैं : (i) संस्थानों के एक्रेडिटेशन और मूल्यांकन के लिए मेडिकल एसेसमेंट और रेटिंग बोर्ड, (ii) सभी लाइसेंसी मेडिकल प्रैक्टीशनरों के राष्ट्रीय पंजीकरण का रखरखाव करने के लिए मेडिकल पंजीकरण बोर्ड, (iii) स्नातक पूर्व (अंडर ग्रैजुएट) मेडिकल शिक्षा बोर्ड, और (iv) स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रैजुएट) मेडिकल परीक्षा बोर्ड।
     
  • परीक्षाएं : कमिटी ने सुझाव दिया कि कैपिटेशन फीस चुकाने की क्षमता की बजाय ऐसी पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए जिसमें मेरिट के आधार पर दाखिले किए जाएं। विद्यार्थियों को अखिल भारतीय राष्ट्रीय अहर्ता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) के आधार पर मेडिल कॉलेजों में दाखिला दिया जाएगा। इससे डॉक्टरों की मानकीकृत दक्षता सुनिश्चित होगी जिसके फलस्वरूप एक समान परिणामों को हासिल करने के लिए निष्पक्ष मानदंड स्थापित होंगे।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि मेडिकल कॉलेज एक निश्चित अवधि के अंतराल पर (पीरिऑडिक) अपनी रेटिंग्स से संबंधित घोषणएं करें (उन्हें डिस्क्लोज करें) जिससे विद्यार्थी के लिए दाखिले से जुड़ा निर्णय लेना सहज हो। इससे कॉलेजों को बेहतर विद्यार्थियों को आकर्षित करने के लिए अपने मानकों में सुधार करने में भी सहायता मिलेगी।
     
  • लाइसेंस हासिल करने और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए आवेदन करने हेतु एक समान परीक्षा पास करना अनिवार्य होगा। मेडिकल क्षमताओं की बदलती सामाजिक आवश्यकताओं को देखते हुए यह परीक्षा केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित दक्षताओं का भी परीक्षण होगी।
     
  • फीस का रेगुलेशन : फीस के मौजूदा रेगुलेशन के बावजूद भ्रष्टाचार के अनेक मामले सामने आए हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि एनएमसी को निजी कॉलेजों की फीस को रेगुलेट करने में संलग्न नहीं होना चाहिए।
     
  • चूंकि मेडिकल संस्थानों में दाखिले केवल मेरिट के आधार पर किए जाएंगे इसलिए कुछ परिस्थितियों को छोड़कर फीस के रेगुलेशन की कोई आवश्यकता नहीं है। फीस का रेगुलेशन करने से मेडिकल शिक्षा में कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा और फी कैप से निजी कॉलेज इस क्षेत्र में प्रवेश करने से हिचकिचाएंगे।
     
  • ‘फॉर प्रॉफिट’ संगठनों द्वारा मेडिकल कॉलेजों की स्थापना : वर्तमान में केवल ‘नॉट फॉर प्रॉफिट’ (अलाभकारी) संगठनों को ही मेडिकल कॉलेजों की स्थापना करने की अनुमति है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस क्षेत्र को ‘फॉर प्रॉफिट’ संगठनों के लिए भी खोला जाना चाहिए जिससे मेडिकल शिक्षा में मौजूद सप्लाई गैप को भरा जा सके। इससे फंडिंग स्रोत से संबंधित पारदर्शिता के अभाव को दूर करने में भी मदद मिलेगी जोकि इस क्षेत्र में ‘फॉर प्रॉफिट’ संगठनों पर लगे प्रतिबंध के बावजूद मौजूद है।

 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च “पीआरएस”) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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