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पीडीएफ

इनलैंड फिशरीज़ और एक्वाकल्चर का विकास

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश 

  • कृषि संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: हुकुमदेव नारायण यादव) ने 25 जुलाई, 2018 को ‘इनलैंड फिशरीज़ और एक्वाकल्चर विकास की योजना-एक विश्लेषण’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। यह योजना मछली उत्पादकता बढ़ाने, प्रजातियों के विविधीकरण (स्पीशीज़ डायवर्सिफिकेशन) और मछली पालन (एक्वाकल्चर) क्षेत्र को व्यापक बनाने पर केंद्रित है। स्टैंडिंग कमिटी के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
     
  • विविधीकरण: कमिटी ने गौर किया कि 1973-74 में योजना की शुरुआत से लक्ष्य पूरी तरह से हासिल नहीं किए जा सके क्योंकि योजना का कार्यान्वयन सही तरीके से नहीं किया गया। इससे इनलैंड फिशरीज़ का विकास कम हुआ है। यह भी गौर किया गया कि इनलैंड फिशरीज़ में फ्रेशवॉटर एक्वाकल्चर का हिस्सा 1980 के दशक के मध्य में 34% से बढ़कर हाल के वर्षो में 80% हो गया। इसलिए कमिटी ने इंटिग्रेटेड फिश फार्मिंग, कोल्ड वॉटर फिशरीज़, रिवराइन फिशरीज़, कैप्चर फिशरीज़ और ब्रैकिश वॉटर फिशरीज़ जैसे दूसरे क्षेत्रों में मछली उत्पादन को बढ़ाने का सुझाव दिया। उसने यह सुझाव भी दिया कि सीड, फीड और हेल्थ मैनेजमेंट के लिहाज से क्वालिटी इनपुट्स दिए जाने चाहिए और उत्पादकता बढ़ाने के लिए उचित समय पर उनका कार्यान्वयन किया जाना चाहिए।
     
  • फंडिंग: कमिटी ने गौर किया कि 2017-18 में 598 करोड़ रुपए का केंद्रीय परिव्यय मंजूर किया गया लेकिन इसमें से केवल 400 करोड़ रुपए आबंटित किए गए। यह देखते हुए कि इसमें से केवल एक हिस्सा ही इनलैंड फिशरीज़ और एक्वाकल्चर के लिए आबंटित किया जाएगा, यह कहा जा सकता है कि यह आबंटन अपर्याप्त है और इसे बढ़ाया जाना चाहिए। यह भी गौर किया गया कि 31 मार्च, 2017 तक 290 करोड़ रुपए के यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स (यूसीज़) लंबित थे। यह कहा गया कि फंड्स का पूरी तरह उपयोग न होने के कारण आबंटन कम किए गए और लक्ष्यों में कटौती हुई। इस प्रकार एक दुष्चक्र की शुरुआत हुई। कमिटी ने सुझाव दिया कि बकाया यूसीज़ के समय रहते लिक्विडेशन के उपाय किए जाने चाहिए।
     
  • वैज्ञानिक और स्थायी तरीके: कमिटी ने कहा कि रीसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम (आरएएस) फिश फार्मिंग का एक वैज्ञानिक और स्थायी तरीका है जिसे उत्पादन को तेजी से बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता। आरएएस में पानी को बराबर फिल्टर और रीसाइकिल किया जाता है और कम पानी में बड़े स्तर पर मछली उत्पादन होता है। इससे प्रदूषण भी नहीं होता। कमिटी ने सुझाव दिया कि मछली पालन करने करने वाले किसानों को आरएएस को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और इसके लिए जरूरी फंड्स और इंफ्रास्ट्रक्टर आसानी से उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
     
  • प्रशिक्षण: कमिटी ने दक्षता विकास कार्यक्रमों में समावेश पर बल दिया, खास तौर से उत्तर पूर्वी और पर्वतीय क्षेत्रों के समावेश पर। उसने ऐसे कार्यक्रमों में इन क्षेत्रों के मछुआरों के समावेश पर विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया जिससे उन्हें दूसरे मछुआरों की बराबरी पर लाया जा सके। साथ ही कुछ मछुआरों के विशेष प्रशिक्षण का भी सुझाव दिया जोकि मास्टर ट्रेनर के तौर पर कार्य करेंगे। प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद मास्टर ट्रेनर मछुआरे दूसरे मछुआरों को उन्हीं दक्षताओं और तकनीकों को ग्रहण करने और उन्हें बरकरार रखने का प्रशिक्षण देंगे।
     
  • आकलन: कमिटी ने गौर किया कि देश में तालाबों, झीलों, जल भराव वाले क्षेत्रों और अन्य जलाशयों की वास्तविक संख्या का पता लगाने के लिए कोई मूल्यांकन नहीं किया गया, जहां मछली उत्पादन किया जा सकता है। उसने सुझाव दिया कि हर राज्य में फिशिंग की क्षमता वाले जलाशयों की वास्तविक संख्या का मूल्यांकन किया जाना चाहिए। यह सुझाव दिया गया कि हर राज्य के लिए कार्रवाई योजनाएं तैयार की जानी चाहिए जिससे जलाशयों का अधिक से अधिक उपयोग और उनकी क्षमता का पूर्ण दोहन किया जा सके।
     
  • संसाधनों की उपलब्धता: कमिटी ने बल दिया कि मछली पालन को भी कृषि के समान समझा जाना चाहिए जिससे इस क्षेत्र से जुड़े किसानों को संस्थागत ऋण और बीमा आसानी से उपलब्ध हो। कमिटी ने राज्य सरकारों को सुझाव दिया कि उन्हें पंचायतों को जलाशय लीज पर देने और मछुआरों को उचित मूल्य प्रदान करने के संबंध में नीति बनानी चाहिए।
     
  • सहकारी संघ: कमिटी ने कहा कि ऐसा कोई उचित मैकेनिज्म नहीं है जो मछली सहकारी संघों की जवाबदेही तय करे और यह सुनिश्चित करे कि उनका कामकाज सर्वोत्तम तरीके से चल रहा है। कमिटी ने राज्य सरकारों को सुझाव दिया कि वे इन संघों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए मैकेनिज्म बनाएं और उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करें। राज्यों से यह सुझाव भी कहा गया कि सहकारी संघों को राज्यों के संसाधन लीज पर देने और उनके रखरखाव के लिए उचित दिशानिर्देश तैयार किए जाएं।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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