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पीडीएफ

इनसॉल्वेंसी लॉ कमिटी

रिपोर्ट का सारांश

  •  इनसॉल्वेंसी लॉ कमिटी (चेयर: इंजेती श्रीनिवास) ने 26 मार्च, 2018 को कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता को लागू करने में आने वाली समस्याओं की जांच करने के लिए इस कमिटी का गठन किया गया था। संहिता कंपनियों और व्यक्तियों की इनसॉल्वेंसी को रिज़ॉल्व करने के लिए 180 दिन की समयबद्ध प्रक्रिया का प्रावधान करती है। किसी इनसॉल्वेंट फर्म के रेज़ोल्यूशन या लिक्विडेशन से संबंधित सभी फैसले कमिटी ऑफ क्रेडिटर्स (सीओसी) द्वारा लिए जाते हैं।
     
  • घर खरीदार शामिल नहीं: कमिटी ने कहा कि न्यायालयों के अनेक फैसलों में अंडर कंस्ट्रक्शन अपार्टमेंट्स के खरीदारों (बायर्स) को न तो फाइनांशियल क्रेडिटर्स माना गया, न ही ऑपरेशनल क्रेडिटर्स। फाइनांशियल क्रेडिटर्स में ऐसी एंटिटीज शामिल होती हैं जो लोन देती हैं, जबकि वस्तुओं और सेवाओं के लेनदेन में जिन एंटिटीज की राशि बकाया होती है, वे ऑपरेशनल क्रेडिटर्स कहलाती हैं। कमिटी ने कहा कि हाउंसिंग कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए एकत्र की गई राशि वित्त जमा करने का तरीका होता है इसलिए मकान के खरीदार फाइनांशियल क्रेडिटर्स होते हैं। यह सुझाव दिया गया कि संहिता के अंतर्गत एक स्पष्टीकरण जोड़ा जाए जिससे यह स्पष्ट हो कि मकान के खरीदार फाइनांशियल क्रेडिटर होंगे।
     
  • सीआईआरपी को शुरू करना: कमिटी ने कहा कि संहिता के अंतर्गत कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन प्रोसेस (सीआईआरपी) को शुरू करने का आवेदन शेयरहोल्डर्स या पार्टनर्स की अनुमति के बिना ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जा सकता है जो फर्म को प्रबंधित, नियंत्रित या सुपरवाइज करते हैं। कमिटी ने संहिता में संशोधन का सुझाव दिया। उसने कहा कि फर्म के शेयरहोल्डर्स या पार्टनर्स के विशेष बहुमत (तीन चौथाई) से आवेदन को मंजूर किया जाए और इसके बाद इस रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया को शुरू किया जाए।
     
  • सीओसी के फैसलों के लिए वोटिंग शेयर: कमिटी के अनुसार, संहिता यह अनिवार्य करती है कि फाइनांशियल क्रेडिटर्स के कम से कम 75% बहुमत से सीओसी में सभी फैसले लिए जाएं। कमिटी ने कहा कि स्टेकहोल्डर्स को इस बात की चिंता है कि इससे रेज़ोल्यूशन की प्रक्रिया पर असर हो सकता है क्योंकि 75% की सीमा बहुत अधिक है। कमिटी ने सुझाव दिया कि कुछ महत्वपूर्ण मामलों, जैसे रेज़ोल्यूशन प्लान को मंजूरी, में वोट शेयर को 75% से कम करके 66% किया जाए। रूटीन के फैसलों (जैसे इनसॉल्वेंसी प्रोफेशनल की नियुक्ति) के लिए इस सीमा को घटाकर 51% किया जा सकता है।
     
  • रेज़ोल्यूशन प्लान को सौंपने की पात्रता (एलिजिबिलिटी): संहिता में ऐसे प्रावधान हैं जो कुछ लोगों को रेज़ोल्यूशन प्लान सौंपने से प्रतिबंधित करते हैं। कमिटी ने कहा कि कुछ फाइनांशियल एंटिटीज (जैसे एसेट कंस्ट्रक्शन कंपनियां) उन कंपनियों से संबद्ध हो सकती हैं जिनके एसेट्स नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीएज़) में बदल चुके हैं। इन एंटिटीज को रेज़ोल्यूशन प्रोसेस में भाग लेने से रोक दिया जाएगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि ऐसी फाइनांशियल एंटिटीज को इस प्रोसेस में भाग लेने की अनुमति दी जाए।
     
  • संहिता ऐसे लोगों को रेज़ोल्यूशन प्लान सौंपने के अयोग्य ठहराती है, जिन्हें किसी अपराध के लिए दो या उससे अधिक वर्ष के कारावास की सजा मिली है। कमिटी ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व एक्ट (रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट), 1951 में ऐसे ही प्रावधान हैं जो कुछ अपराधों में सजा पाने वाले लोगों को संसद/विधानसभा सदस्य बनने से प्रतिबंधित करते हैं। हालांकि 1951 का एक्ट अयोग्यता की इस अवधि को केवल छह वर्ष करता है, यानी जेल से रिहा होने के छह वर्ष बाद तक वे व्यक्ति संसद/विधानसभा सदस्य बनने के अयोग्य रहेंगे। कमिटी ने सुझाव दिया कि संहिता के अंतर्गत ऐसा ही प्रावधान किया जाए। इसमें भी अयोग्य रहने की अवधि छह वर्ष की जाए।
     
  • सीआईआरपी शुरू करने की डीफॉल्ट राशि: अगर डीफॉल्ट की राशि एक लाख रुपए से अधिक है, तो सीआईआरपी की शुरुआत की जा सकती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इस सीमा को बढ़ाकर दस लाख रुपए किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त पर्सनल इनसॉल्वेंसी रेज़ोल्यूशन को एक हजार रुपए से बढ़ाकर दस लाख रुपए किया जाए। ये सुझाव फ्रिवोलस (फालतू) एप्लीकेशंस को किनारे रखने के लिए दिए गए हैं।
     
  • एमएसएमई को छूट: कमिटी ने कहा कि एमएसएमई क्षेत्र में भी रेज़ोल्यूशन प्लान सौंपने से कुछ लोगों को प्रतिबंधित किया गया है। कमिटी ने कहा कि मध्यम, सूक्ष्म और लघु उद्योगों (एमएसएमई) के प्रमोटरों को नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने की छूट दी जाए, जब तक कि वे विलफुल डीफॉल्टर (जान-बूझकर डीफॉल्ट करने वाले) न हों। इसके पीछे यह तर्क दिया गया है कि एमएसएमई के व्यापार में मुख्य रूप से प्रमोटरों की ही रुचि होती है।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है। 

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