स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- जल संसाधन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: हुकुम सिंह) ने 8 अगस्त, 2016 को जल स्रोतों की मरम्मत, जीर्णोद्धार, अतिक्रमणों और उन्हें हटाने के उपायों पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने देश में जल स्रोतों की स्थिति और जलाशयों की मरम्मत, नवीनीकरण और जीर्णोद्धार योजना के कार्यान्वयन की भी जांच की। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
- जल स्रोतों का गणना: जल संसाधन मंत्रालय को देश में जल स्रोतों की स्थिति की पूर्ण सूचना प्राप्त नहीं है। जल स्रोतों से संबंधित जानकारियों, जैसे कुल संख्या, सिकुड़ने (सूखने या गायब होने) की स्थिति और कैचमेंट एरिया में बढ़ोतरी या कमी के कारण भूमि के प्रयोग में बदलाव इत्यादि का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त लघु सिंचाई (सतही और भूजल सिंचाई संरचनाएं) गणना के जरिए इकट्ठे किए गए आंकड़ों में केवल ग्रामीण क्षेत्रों को शामिल किया जाता है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि जल स्रोतों और उनकी स्थिति के निष्पक्ष आकलन के लिए राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने की आवश्यकता है जिनमें राज्यों से प्राप्त होने वाली सूचनाओं को भी शामिल किया जाए। इसके लिए एक निश्चित समयावधि में जल स्रोतों की गणना की जानी चाहिए।
- जल स्रोतों का समान वर्गीकरण: वर्तमान में विभिन्न राज्य भिन्न-भिन्न मानकों के आधार पर जल स्रोतों का वर्गीकरण करते हैं जैसे कुल क्षेत्रफल, जल स्रोत का प्रकार, उसका स्थान इत्यादि। कुछ राज्यों में जल स्रोतों की वर्गीकरण प्रणाली मौजूद नहीं है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को अपनी वर्गीकरण प्रणाली तैयार करनी चाहिए जो देश के सभी जल स्रोतों पर समान रूप से लागू हो। इससे सभी राज्यों में जल स्रोतों की बेहतर व्यवस्था और निगरानी करने में सहायता मिलेगी।
- जल स्रोतों का जीर्णोद्धार: वर्तमान में जल स्रोतों के संरक्षण और कायाकल्प के लिए चार भिन्न-भिन्न मंत्रालयों (जल संसाधन, ग्रामीण विकास, पर्यावरण एवं वन और शहरी विकास) की अपनी योजनाएं या कार्यक्रम हैं। अगर संयुक्त नीतिगत उपाय नहीं किए गए तो ऐसी योजनाओं के अपने-अपने स्तर पर काम करने से अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ेगा।
- यह सुझाव दिया गया कि अनेक योजनाओं की बजाय अंतर मंत्रालयी समन्वय से एक राष्ट्रीय योजना बनाई जानी चाहिए।
- जल स्रोतों का अतिक्रमण: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मौजूदा कानूनों का प्रवर्तन नहीं होता और भूमि रिकॉर्ड्स का उचित रखरखाव नहीं किया जाता। परिणामस्वरूप जल स्रोतों में बेकाबू अतिक्रमण किया जा रहा है। शहरी विकास मंत्रालय ने इस संबंध में एक एडवाइजरी जारी की थी जिसमें जल स्रोतों को भूमि रिकॉर्ड्स में म्यूनिसिपल एसेट्स के तौर पर शामिल करने की बात कही गई थी। कमिटी ने पाया कि किसी भी राज्य में ऐसे रिकॉर्ड नहीं रखे गए हैं।
- यह सुझाव दिया गया कि जल संसाधन और शहरी विकास मंत्रालय को संयुक्त रूप से राज्य सरकारों को इस बात के लिए तैयार करना चाहिए कि वे भूमि रिकॉर्ड्स में जल स्रोतों को शामिल करें। स्थानीय निकायों को जल स्रोतों में होने वाले अतिक्रमण और परिणामस्वरूप भूमि के बदलते उपयोग की निगरानी भी करनी चाहिए।
- जल स्रोतों की मरम्मत, नवीनीकरण और जीर्णोद्धार योजना का कार्यान्वयन : इस योजना के तहत वर्ष 2012-17 के दौरान 10,000 जल स्रोतों के जीर्णोद्धार की योजना थी। इसके लिए 10,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। अब तक नौ राज्यों के 1,342 जल स्रोतों को इस योजना में शामिल करने के लिए मंजूरी दी गई है। कमिटी ने कहा कि 2017 तक इस योजना के लक्ष्य को हासिल करना कठिन है। इसके अतिरिक्त योजना के तहत प्रभाव का मूल्यांकन भी नहीं किया गया है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए स्वतंत्र एजेंसियों को चिन्हित किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त नए जल स्रोतों के सृजन को शामिल करने के लिए योजना के दायरे को बढ़ाया जाना चाहिए। शहरी क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए जहां मौजूदा जल स्रोतों में अतिक्रमण की समस्या बहुत अधिक है।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।