स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- जल संसाधन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: हुकुम सिंह) ने 16 मार्च, 2017 को ‘जल संरक्षण के देसी और आधुनिक प्रकार- तकनीक और पद्धतियां’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने जल संरक्षण के संबंध में निम्नलिखित पहलुओं की जांच की: (i) जल संरक्षण की जरूरत, (ii) जल संरक्षण की तकनीक और पद्धतियां, (iii) जल संरक्षण को प्रभावित करने वाले कारक, और (iv) राष्ट्रीय जल मिशन।
- कमिटी के प्रमुख निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- प्रति व्यक्ति जल भंडारण और उपलब्धता का निम्न स्तर: भारत में प्रति व्यक्ति जल भंडारण 209 क्यूबिक मीटर है। किसी देश में पानी की कमी को चिन्हित करने की प्रति व्यक्ति न्यूनतम सीमा (1,000 क्यूबिक मीटर) से यह काफी कम है। इसके अतिरिक्त जनसंख्या के बढ़ने के कारण प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता में गिरावट हुई है। 1991 में प्रति व्यक्ति उपलब्धता 2,209 क्यूबिक मीटर थी जो 2011 में गिरकर 1,545 क्यूबिक मीटर हो गई।
- इस संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को कुछ उपाय करने चाहिए। इन उपायों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) ऐसे बड़े और मध्यम बांधों के संबंध में डेटा इकट्ठा करना, जिन पर काम चालू है, (ii) इस बात की समीक्षा करना कि इन बांधों का काम कब पूरा होगा, और (iii) इन बांधों के समय पर पूरा होने के लिए योजना बनाना।
- भूजल के स्तर में गिरावट: कुछ राज्यों में कमिटी ने निम्नलिखित पर ध्यान दिया: (i) कुओं और ट्यूबवेलों में अधिक गहराई तक पंपिंग की जा रही है, (ii) पंपिंग की लागत बढ़ गई है, (iii) गर्मी के महीनों में भूजल में कमी (सिंचाई और पीने के लिए) हो जाती है, और (iv) पानी में फ्लोराइड और खारापन बढ़ गया है (तटीय क्षेत्रों में)। जैसे, कमिटी ने गौर किया कि पंजाब में ऐसी फसलें उगाई जा रही हैं जिनमें अधिक पानी की जरूरत होती है। चूंकि इन फसलों की खेती के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जाता है इसलिए पंजाब में भूजल का स्तर लगातार गिर रहा है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को भूजल निकासी के संबंध में एक सुस्पष्ट नीति तैयार करनी चाहिए। किसानों को खेती के लिए मुफ्त बिजली देने की प्रणाली को रेगुलेट किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त पंजाब में पानी की अतिरिक्त निकासी के प्रभाव पर वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना चाहिए।
- जल पुनर्भरण (रीचार्ज) और संचयन के परंपरागत तरीके : देश में पाइप से पानी की सप्लाई अधिक की जाने लगी तो पानी को जमा करने या संचयन की परंपरागत संरचनाओं का इस्तेमाल होना बंद हो गया। कमिटी ने सुझाव दिया कि देश में पानी के पुनर्भरण और संचयन के परंपरागत तरीकों के फायदे और व्यावहारिकता के संबंध में जल संसाधन मंत्रालय को एक अध्ययन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त संचयन के परंपरागत तरीकों को संरक्षित करने और उनमें सुधार के लिए विभिन्न राज्य सरकारों से सलाह-मशविरा किया जाना चाहिए।
- जलभृतों का मानचित्रण (एक्विफर मैपिंग): 2012 में केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) ने जलभृतों को चिन्हित एवं उनका मानचित्रण करने, तथा उपलब्ध भूजल की मात्रा निर्धारित करने के लिए राष्ट्रीय जलभृत प्रबंधन परियोजना (नैक्यूम) को प्रारंभ किया। नैक्यूम की शुरुआत से अब तक केवल 5.5 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र का ही मानचित्रण हुआ है। शेष 23 लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र का मानचित्रण होना अभी बाकी है। इसके अतिरिक्त पांच वर्षों (2012-2017) के लिए 3,319 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय में से जून 2016 तक केवल 146 करोड़ रुपए को ही खर्च किया गया है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को योजना के बजटीय आबंटन के समयोचित और अधिकतम उपयोग के लिए कारगर उपाय करने चाहिए।
- जल बजट: जल बजट के मायने हैं, परियोजना क्षेत्र में और उससे बाहर बहने वाले पानी का लेखा-जोखा रखना। इससे वर्षा के जल और सतही अपवाह (सर्फेस रनऑफ) के संरक्षण में भी मदद मिलती है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि जल संसाधन मंत्रालय द्वारा सभी राज्य सरकारों को जल बजट के संबंध में उपयुक्त दिशानिर्देश जारी करने चाहिए। मंत्रालय को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी राज्य सरकारें जल क्षेत्र के लिए विशिष्ट कार्रवाई योजना तैयार करें और एक निर्धारित समयावधि में उसे जलवायु परिवर्तन की कार्रवाई योजनाओं से जोड़ें। साथ ही, जल के उपयोग और उसके संरक्षण को रेगुलेट करने के लिए महाराष्ट्र और गुजरात की तरह दूसरे सभी राज्यों में भी जल रेगुलेटरी अथॉरिटीज को स्थापित किया जाए।
- राष्ट्रीय जल मिशन के तहत जल उपयोग दक्षता: राष्ट्रीय जल मिशन के तहत जल उपयोग दक्षता को 20% तक बढ़ाने के लिए जल मंत्रालय को राष्ट्रीय संरचनागत निर्देश जारी करना चाहिए और उसे सभी राज्यों में वितरित करना चाहिए।
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