रिपोर्ट का सारांश
- प्राक्कलन समिति (कमिटी ऑन एस्टिमेट्स) (चेयरपर्सन: डॉ. मुरली मनोहर जोशी) ने 16 मार्च, 2018 को ‘केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियां- मूल्यांकन और प्रतिक्रिया तंत्र’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफज़) की तैनाती: कमिटी ने गौर किया कि कानून एवं व्यवस्था की रोजाना की स्थिति के लिए भी राज्य बहुत हद तक केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों पर निर्भर हैं। परिणामस्वरूप सुरक्षा बलों की प्रशिक्षण संबंधी जरूरतों में कटौती करनी ही पड़ती है। साथ ही साथ इससे उग्रवाद विरोधी ऑपरेशंस तथा सीमा सुरक्षा के अभियानों के प्रभावित होने की आशंका बनती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्यों को अपने सिस्टम तैयार करने चाहिए और पर्याप्त प्रशिक्षण एवं उपकरण प्रदान करते हुए अपने पुलिस बलों में वृद्धि करनी चाहिए। राज्य सरकारें अपने बलों का क्षमता निर्माण कर सकें, इसके लिए केंद्र सरकार को उन्हें वित्तीय सहायता और अन्य जरूरी मदद देनी चाहिए।
- सीएपीएफज़ का प्रशिक्षण: कमिटी ने कहा कि सीएपीएफज़ के प्रशिक्षण संस्थानों के पाठ्यक्रम और इंफ्रास्ट्रक्चर को अपडेट करने की तत्काल जरूरत है। उसने सुझाव दिया कि सरकार को प्रशिक्षण संबंधी जरूरतों के हिसाब से अत्याधुनिक उपकरणों की खरीद करनी चाहिए। अगर जरूरी हो तो इसे पर्चेज़ एग्रीमेंट्स में भी शामिल किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह सुझाव दिया गया कि प्रशिक्षण में परंपरागत विषयों और आधुनिक तकनीक, जैसे आईटी, साइबर सिक्योरिटी और साइबर क्राइम का मिश्रण होना चाहिए।
- सीएपीएफज़ का आधुनिकीकरण: कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्योरिटी द्वारा मंजूर आधुनिकीकरण योजना II (2012-17) का लक्ष्य हथियारों, कपड़ों और उपकरणों के आधुनिकीकरण के लिए सीएपीएफज़ को वित्तीय सहयोग प्रदान करना है। हालांकि कमिटी ने गौर किया कि योजना के अंतर्गत खरीद प्रक्रिया बोझिल है और इसमें बहुत अधिक समय लगता है। यह सुझाव दिया गया कि खरीद प्रक्रिया की बाधाओं को चिन्हित किया जाना चाहिए और उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त गृह मामलों के मंत्रालय और सीएपीएफज़ को सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों और मैन्यूफैक्चररों के साथ बातचीत करनी चाहिए जिससे उपकरणों और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर की लगातार आपूर्ति सुनिश्चित हो।
- सीएपीएफ कर्मियों का प्रमोशन: कमिटी ने गौर किया कि सीएपीएफज़ के टॉप पदों पर आईपीएस अधिकारी तैनात हैं। इसका सीएपीएफज़ के अधिकारियों पर नैतिक असर होता है और उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि टॉप पदों को सीएपीएफ के संबंधित कैडर से भरा जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रमोशन में ठहराव और कैडर रिव्यू न होने कारण सीएपीएफ कर्मियों में कुंठा व्याप्त है। कमिटी ने सुझाव दिया कि एक निश्चित समय सीमा में सभी सीएपीएफ कर्मियों का कैडर रिव्यू किया जाना चाहिए।
- सीएपीएफ कर्मियों के लिए आवास: कमिटी ने कहा कि 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत सीएपीएफ कर्मियों के लिए 24,206 आवास बनाने का लक्ष्य था लेकिन 31 मार्च, 2016 तक केवल 11,884 आवास (49%) बनाए गए। कमिटी ने सुझाव दिया कि गृह मामलों के मंत्रालय और सीएपीएफज़ को राज्य सरकारों के साथ नियमित परामर्श करना चाहिए और उन्हें समझाना चाहिए कि सीएपीएफ कर्मियों के लिए आवास बनाने हेतु भूमि आबंटन की कितनी जरूरत है।
- खुफिया जानकारी एकत्र करना: कमिटी ने कहा कि खुफिया जानकारी एकत्र करने के तंत्र में सुधार की जरूरत है जिसे कम से कम समय सीमा में मजबूत और आधुनिक बनाया जाना चाहिए। उसने सुझाव दिया कि खुफिया जानकारी एकत्र करने वाली एजेंसियों को अपने कर्मचारियों की भर्ती के संबंध में स्वायत्तता दी जानी चाहिए। इसके अतिरिक्त एक प्रभावशाली तंत्र बनाया जाना चाहिए, एजेंसियों के बीच में तालमेल होना चाहिए और सूचनाओं के आदान-प्रदान में विलंब नहीं होना चाहिए।
- सीएपीएफ कर्मियों में तनाव: कमिटी ने कहा कि सीएपीएफ के अनेक कर्मियों ने आत्महत्याएं की हैं। उसने सुझाव दिया कि सीएपीएफ कर्मियों के लिए स्ट्रेस मैनेजमेंट की वर्कशॉप्स नियमित रूप से आयोजित की जानी चाहिए और उनकी रोजाना की एक्सरसाइज में योग और ध्यान को शामिल किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने संबंधित बल की तैनाती के स्थान के निकट उनके आवास की जरूरत पर बल दिया ताकि सुरक्षाकर्मी अपने परिवार के सदस्यों से मिल सकें।
- जम्मू और कश्मीर में युवा: कमिटी ने कहा कि जम्मू और कश्मीर के युवाओं को मुख्यधारा में लाने के लिए उन्हें संलग्न किए जाने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर में युवाओं की रोजगारपरकता बढ़ाने के लिए उड़ान और हिमायत जैसी योजनाएं शुरू की हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र और राज्य सरकारों को इन योजनाओं के असर का मूल्यांकन करने की जरूरत है।
- वामपंथी चरमपंथी (एलडब्ल्यूई): कमिटी ने गौर किया कि बारूदी सुरंगों के फटने के कारण एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बल मारे जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त जमीन में गहरे तक बिछी बारूदी सुरंगों की खोज करने के लिए तकनीक भी उपलब्ध नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को एलडब्ल्यूई प्रभावित क्षेत्रों में जवाबी कार्रवाई के लिए तकनीक विकसित करने हेतु संबंधित अनुसंधान संगठनों, जैसे रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के साथ इस विषय पर विचार-विमर्श करना चाहिए।
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