स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- कोयला और स्टील संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर : राकेश सिंह) ने 3 जनवरी, 2018 को ‘कोयला उत्पादन, मार्केटिंग और वितरण’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- मांग और आपूर्ति: कमिटी ने कहा कि कोयले की मांग और आपूर्ति का अंतर 2015-16 में 15.5 मीट्रिक टन से बढ़कर 2016-17 में 55.3 मीट्रिक टन हो गया। इसका कारण बिजली और सीमेंट जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कोयले की बढ़ती मांग था। 2016-17 में मांग और आपूर्ति के बीच बढ़ते अंतर का मुख्य कारण यह था कि थर्मल पावर स्टेशनों में कोयले का स्टॉक पहले से जमा था। इसके अतिरिक्त कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की आपूर्ति में 2014-15 से लगातार बढ़ोतरी की प्रवृति दर्ज की गई। कमिटी ने सुझाव दिया कि विभिन्न क्षेत्रों की वास्तविक मांग को प्रदर्शित करने के लिए कोयले की मांग के अनुमानों को संशोधित किया जाए।
- अनरेगुलेटेड क्षेत्र को कोयले की आपूर्ति: कमिटी ने कहा कि स्टील, सीमेंट और स्पंज आयरन जैसे नॉन-रेगुलेटेड क्षेत्रों को कोयले की आपूर्ति में लगातार गिरावट रही है। स्टील और स्पंज आयरन क्षेत्र कई वर्षों से बुरे दौर से गुजर रहे हैं (निम्न उत्पादकता, निम्न बाजार मांग) जिसके कारण उन्हें कोयला आपूर्ति कम हो गई है। सीमेंट क्षेत्र ने कोयले की आपूर्ति में गिरावट के बाद विकल्प के तौर पर पेट्रोलियम कोक का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कमिटी ने कहा कि कोल लिंकेज ऑक्शन पॉलिसी के जरिए इन क्षेत्रों में कोयले की आपूर्ति में सुधार हुआ है। इस नीति के अंतर्गत समय-समय पर कोल लिंकेजेज़ की नीलामी की गई है। यह सुझाव दिया गया कि इन लिंकेजेज़ की नीलामी की समय अवधि को बढ़ाया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त इस नीति के अंतर्गत दूसरे नॉन-रेगुलेटेड क्षेत्र भी लाए जाने चाहिए ताकि उन्हें भी कोयले की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित हो।
- कोयला उत्पादन: कमिटी ने कहा कि 2015-16 और 2016-17 के दौरान, हालांकि सीआईएल ने अपने उत्पादन में क्रमशः 9% और 3% की वृद्धि की लेकिन वह अपने उत्पादन लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाई। फिर भी, यह कहा गया कि सीआईएल अपनी क्षमता में सुधार करने हेतु अधिक ऊंचे लक्ष्य रखती है और लक्ष्यों के पूरा न होने का असर उपभोक्ताओं पर नहीं पड़ता। कमिटी ने यह भी कहा कि सीआईएल कई कारणों से अपने कोयला खनन प्रॉजेक्ट्स को चालू नहीं कर पाती। इन कारणों में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनःस्थापन, वन और पर्यावरणीय मंजूरियों में विलंब तथा कानून एवं व्यवस्था की स्थितियां शामिल हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ सलाह करके इन समस्याओं को तत्काल हल करना चाहिए।
- कोयला आयात: कोयले का आयात 2014-2015 में 174 मीट्रिक टन से गिरकर 2016-17 में 149 मीट्रिक टन हो गया। कमिटी ने कहा कि कोयला मंत्रालय और सीआईएल आयातित कोयले के स्थान पर कोयले के घरेलू विकल्प तलाश रहे हैं जिसके कारण आयात में गिरावट आई है। यह कहा गया कि वर्तमान में आयातित कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट्स सिर्फ आयातित कोयले का ही इस्तेमाल कर सकते हैं। इसलिए इन प्लांट्स को आयातित कोयले के साथ घरेलू कोयले के इस्तेमाल की अनुमति देना सरकारी नीति पर निर्भर करता है। सुझाव दिया गया कि घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर या विदेशों में कोकिंक कोल की खदानों को अधिग्रहित (एक्वायर) करके कोकिंग कोल के आयात को कम किया जा सकता है।
- कोल लिंकेज नीति: मई 2017 में स्कीम फॉर हारनेसिंग एंड एलॉटिंग कोयला ट्रांसपेरेंटली इन इंडिया (शक्ति) को शुरू किया गया। यह नीति पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से रेगुलेटेड क्षेत्रों को कोल लिंकेज (पावर प्लांट के निकट स्थित खदान से कोयला खरीदना) आबंटित करने का प्रयास करती है। कमिटी ने कहा कि 2014 से 2016 के बीच कोल लिंकेजेज़ के रैशनलाइजेशन से पावर युटिलिटीज की परिवहन लागत में 3,000 करोड़ रुपए प्रति वर्ष की अनुमानित बचत हुई। यह भी कहा गया कि शक्ति के जरिए कोल लिंकेजेज़ की नीलामी उपभोक्ताओं को यह विकल्प देगी कि वे अपनी पसंद के स्रोत के लिए बोली लगाएं जिससे कोयले की परिवहन लागत में कमी आएगी। यह सुझाव दिया गया कि नई लिंकेज नीति (शक्ति) को कोयले के परिवहन से होने वाली बचत से जोड़ा जाए।
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