स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- कोयला और स्टील संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरमैन : राकेश सिंह) ने 10 अगस्त, 2017 को खनन क्षेत्र में कौशल विकास पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- कौशल अंतराल : कमिटी ने टिप्पणी की कि भारत में 15-59 वर्ष के आयु वर्ग की केवल 2% श्रमशक्ति कौशल प्रशिक्षण प्राप्त है। राष्ट्रीय कौशल नीति, 2009 के अंतर्गत 2022 तक 500 मिलियन लोगों को कौशल प्रशिक्षण देने का लक्ष्य था। भारत में कौशल विकास एक गंभीर चुनौती है क्योंकि जनसंख्या का एक बड़ा भाग 25 वर्ष से नीचे का है। कमिटी ने यह भी गौर किया कि कौशल बनाम नौकरियों के बीच असंतुलन होने से श्रमशील आयु वर्ग के लोगों में बेरोजगारी बढ़ती है, परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था पर असर होता है और सामाजिक असंतोष उत्पन्न होता है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि कौशल विकास के प्रयासों को तीन महत्वपूर्ण मानदंडों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, मात्रा, गुणवत्ता और पहुंच। कौशल विकास कार्यक्रमों को स्केलेबल, रेपलिकेबल और पहुंच योग्य होना चाहिए। साथ ही उनमें उच्च श्रेणी की समावेशिता (इनक्लूज़िविटी) होनी चाहिए। ऐसे कौशल मानक विकसित किए जाने चाहिए जो करियर के चुनाव, विकल्पों और योग्यता की ग्रहणशीलता (रिस्पेक्टिविटी) की स्पष्टता सुनिश्चित करें। सरकार को कौशल प्रशिक्षण को मुख्यधारा का और समावेशी कार्यक्रम बनाने के लिए सरकार, उद्योग जगत और कौशल प्रदाताओं के बीच औपचारिक व्यवस्था कायम करनी चाहिए।
- खनन क्षेत्र में कौशल की आवश्यकता : कमिटी ने गौर किया कि वर्ष 2025 तक खनन उद्योग में रोजगार 0.095 मिलियन से बढ़कर 1.2 मिलियन होने का अनुमान था। वर्तमान में खनन क्षेत्र की 70% श्रमशक्ति कोयला खनन के काम में लगी हुई है। जहां तक गैर कोयला खनन का मामला है, इसमें 86% खनन लीज 50 हेक्टेयर से कम आकार की हैं, यह 16% खनन क्षेत्र को कवर करता है और इसमें निचले स्तर के मशीनीकरण के साथ बड़ी मात्रा में श्रमिक कार्य करते हैं।
- कमिटी ने गौर किया कि भारतीय खनन उद्योग में मानव संसाधन और कौशल की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नलिखित हैं : (i) तकनीकी उन्नयन (टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन), (ii) भूमंडलीकरण और श्रमशक्ति का वृद्ध होना, और (iii) कौशल प्राप्त करने में लगने वाला लंबा समय। इसके अतिरिक्त 50-55% अर्ध कुशल श्रमशक्ति को तत्काल दोबारा कौशल प्राप्त करने या उन्नत स्तर का कौशल प्राप्त करने की जरूरत है, जिसके लिए देश में विश्वसनीय, उद्योग विशिष्ट संस्थान मौजूद नहीं हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि सरकार को खनन उद्योग से संबंधित संस्थान की स्थापना की संभावना तलाशनी चाहिए।
- कमिटी ने यह टिप्पणी भी की कि खनन लीज राज्य सरकारों द्वारा दी जाती है और 95% लीज निजी क्षेत्र में हैं। इसलिए खनन का काम वैज्ञानिक तरीके से करने और प्रशिक्षित श्रमशक्ति को तैनात करने की कोई भी रणनीति राज्य सरकार की सक्रिय भागीदारी पर निर्भर करती है। इसके लिए निजी क्षेत्र में कौशल विकास की रणनीति विकसित करने की भी जरूरत होगी। कमिटी ने सुझाव दिया कि खनन मंत्रालय को क्षेत्र में कौशल अंतराल की समस्या को हल करने के लिए एक रोडमैप तैयार करना चाहिए।
- फंडिंग का मैकेनिज्म : कमिटी ने टिप्पणी की कि लगभग पांच लाख नौकरियों के लिए 166 करोड़ रुपए की राशि की जरूरत होगी। हालांकि कौशल विकास अवधि (2016-2022) के दौरान लगभग 109 करोड़ रुपए की अनुमानित राशि उपलब्ध है। इसका अर्थ यह है कि 57 करोड़ रुपए की कमी है जिसे निजी क्षेत्र और राज्य सरकार की पहल से पूरा किया जा सकता है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को फंडिंग का ऐसा सतत मैकेनिज्म तैयार करना चाहिए कि कौशल विकास के प्रॉजेक्ट्स और गतिविधियों को एक लक्षित समयावधि में पूरा किया जा सके। मंत्रालय को कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के जरिए निजी क्षेत्र को निवेश के लिए प्रोत्साहित भी करना चाहिए।
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