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महिला स्वास्थ्य सेवा और नीतिगत विकल्प

रिपोर्ट का सारांश

  • महिला सशक्तीकरण संबंधी कमिटी (चेयरपर्सन : सुश्री बिजया चक्रवर्ती) ने 3 जनवरी, 2018 को ‘महिला स्वास्थ्य सेवा : नीतिगत विकल्प’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।
     
  • केंद्र और राज्य की नीतियों के बीच सिनर्जी: कमिटी ने कहा कि केंद्र और राज्यों के बीच सिनर्जी से महिला स्वास्थ्य सेवाओं में बदलाव होगा। कमिटी ने कहा, उदाहरण के लिए गर्भवती महिलाओं को निकट के प्रसव केंद्र तक ले जाना निम्नलिखित कारणों से कठिन कार्य बना हुआ है (i) दुर्गम भौगोलिक स्थितियां, (ii) परिवहन के साधनों का अभाव, (iii) प्राकृतिक आपदाएं, (iv) सुरक्षा संबंधी खतरा, कर्फ्यू, हड़ताल इत्यादि। इस संबंध में कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को राज्यों के साथ ‘प्री-डिलिवरी हब्स’ बनाने पर चर्चा करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि ऐसे हब्स से गरीबों और हाशिए पर रहने वाले परिवारों को अपनी जेब से कम खर्च (आउट-ऑफ-पॉकेट एक्सपेंसेज़) करना पड़ेगा और मातृत्व मृत्यु में भी कमी आएगी।
     
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना की कार्य पद्धति: राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाई) एक ऐसी बीमा योजना है जिसके अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवार और असंगठित श्रमिकों की कुछ श्रेणियां आती हैं। इस योजना का उद्देश्य यह है कि स्वास्थ्य पर उन लोगों को अपनी जेब से कम खर्च करना पड़े और स्वास्थ्य सेवाओं तक उनकी पहुंच बढ़े। कमिटी ने आरएसबीवाई के कार्यान्वयन से जुड़े निम्नलिखित मुद्दों का उल्लेख किया : (i) आरएसबीवाई के अंतर्गत एम्पैन्ल्ड प्राइवेट अस्पतालों द्वारा गरीब लाभार्थियों का शोषण (ऐसी सर्जरी करना, जिनसे बचा जा सकता है, गलत रोग निदान करना, इत्यादि) (ii) आरएसबीवाई के अंतर्गत परिवारों का कम संख्या में अपना नाम दर्ज कराना, जिससे यह संकेत मिलता है कि लक्षित आबादी में जागरूकता की कमी है, और (iii) अस्पतालों की क्वालिटी और पहुंच के संबंध में अलग-अलग तरह के फीडबैक्स। कमिटी ने सुझाव दिया कि देश के सभी जिलों में इस योजना के कार्यान्वयन पर नजर रखने के लिए एक प्रणाली होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि आरएसबीवाई के आंकड़ों को पब्लिक प्लेटफॉर्म्स पर मुफ्त उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
     
  • एक्रीडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविट्स (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) (आशा) की मांग: आशा कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य को ट्रैक करने में सहयोग प्रदान करती हैं, उन्हें लाभ (जैसे जननी सुरक्षा योजना के हक) प्राप्त करने में मदद देती हैं और स्वास्थ्य कार्यक्रमों को जमीनी स्तर पर लागू करने में सहायता देती हैं। कमिटी ने कहा कि देश की आशा वर्कर्स का निश्चित वेतन नहीं है और यह कि वे अनेक राज्यों में अपने पारिश्रमिक के साथ निश्चित वेतन की मांग कर रही हैं। इस संबंध में कमिटी ने सुनिश्चित मासिक वेतन के प्रस्ताव का सुझाव दिया जोकि 3,000 रुपए से कम नहीं हो। इसके अतिरिक्त कमिटी ने आशा वर्कर्स के प्रशिक्षण से संबंधित अन्य मुद्दों को उठाया जैसे निपुण प्रशिक्षकों, इंफ्रास्ट्रक्चर और उपकरणों का अभाव।
     
  • फूड फोर्टिफिकेशन की आवश्यकता: कमिटी ने कहा कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं में एनीमिया के मामले बहुत अधिक पाए जाते हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट, 2013, मिड-डे मील योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लागू होने के बावजूद यह स्थिति है। इस संबंध में कमिटी ने गौर किया कि सरकार की प्राथमिकता केवल भोजन की उपलब्धता बढ़ाने की रही है, फूड फोर्टिफिकेशन यानी खाद्य पदार्थों के पोषण संवर्धन जैसी पहल के जरिए उसकी पौष्टिकता सुनिश्चित करना नहीं। कमिटी ने सुझाव दिया कि अनाज में आयरन को मिलाने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए क्योंकि (i) इससे भोजन की क्वालिटी और प्रकृति नहीं बदलती, (ii) आयरन को अनाज में आसानी से मिलाया जा सकता है, और (iii) इससे बहुत कम अवधि में लोगों को पोषण मिल सकता है।
     
  • असुरक्षित गर्भपात : कमिटी ने कहा कि असुरक्षित गर्भपात देश में गर्भपात संबंधी मौतों का सबसे बड़ा कारण है (हर वर्ष मातृत्व मृत्यु के कुल मामलों में आठ प्रतिशत)। यह गौर किया गया कि इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं : (i) गर्भपात के बारे में जागरूकता का अभाव, और (ii) अगर गर्भ 20 हफ्ते से अधिक का है तो गर्भपात के लिए महिलाओं को कानूनी सहारा लेना चाहिए, हालांकि न्यायिक प्रक्रिया की धीमी गति से गर्भावस्था की वैध सीमा पार हो जाती है और महिलाएं गर्भपात नहीं करा पातीं, इस प्रकार ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में महिलाओं को नीम हकीमों (अनक्वालिफाइड डॉक्टरों) के पास जाना पड़ता है। कमिटी ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन का सुझाव दिया। कमिटी ने कहा कि इस एक्ट में संशोधन करके गर्भपात की स्वीकृत अवधि को 24 हफ्ते तक बढ़ाया जा सकता है, पर यह रोक गंभीर समस्याओं वाले अजन्मे बच्चों पर लागू नहीं होगी। इसके अतिरिक्त कमिटी ने उस प्रावधान को हटाने का सुझाव दिया है जिसमें कहा गया है कि केवल विवाहित महिलाएं गर्भपात करा सकती हैं। इस प्रकार किसी को भी गर्भपात कराने की अनुमति दी जाए।
     
  • महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य : कमिटी ने कहा कि सामाजिक लांछन और अज्ञान के कारण महिलाओं द्वारा झेली जाने वाली मानसिक बीमारियों को मान्यता नहीं मिलती। इस संबंध में कमिटी ने जागरूकता फैलाने और ऐसे उपाय करने के सुझाव दिए हैं जिनसे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को लांछन से मुक्त किया जा सके।

 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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