कैग रिपोर्ट का सारांश
- नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कैग) ने 21 जुलाई, 2017 को निशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार (आरटीई) एक्ट, 2009 के कार्यान्वयन पर अपनी ऑडिट रिपोर्ट जारी की।
- आरटीई एक्ट, 2009 छह से 14 वर्ष के बीच के बच्चों के लिए निकटवर्ती स्कूल में निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है। कैग ऑडिट में यह जांच की गई कि केंद्र और राज्य सरकारों ने किस हद तक एक्ट के प्रावधानों का अनुपालन किया है और आबंटित राशि का उपयोग किया है। यह ऑडिट अप्रैल 2010 और मार्च 2016 के दौरान 28 राज्यों और 7 केंद्र शासित प्रदेशों (यूटीज़) में किया गया। ऑडिट रिपोर्ट के निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
- वित्तीय प्रबंधन : राज्य सरकारों के पास बड़ी मात्रा में बकाया राशि है जोकि खराब आंतरिक वित्तीय नियंत्रण का संकेत देती है। यह पाया गया कि 35 राज्यों/यूटीज़ में पिछले छह वर्ष के दौरान 12,259 करोड़ रुपए से 17,282 करोड़ रुपए के बीच की अनुपयुक्त राशि है। अन्य निष्कर्षों में निम्नलिखित शामिल है: (i) अधिक मात्रा में बकाया एडवांस, (ii) फंड्स का डायवर्जन/अनियमित रूप से जारी करना, (iii) फंड्स का दुरुपयोग, (iv) अनुदान का अनियमित उपयोग, और (v) विभिन्न स्तरों पर फंड्स जारी करने में देरी। कैग ने इस संबंध में विचार करने का सुझाव दिया कि आरटीई की बजटिंग की समय-अवधि केंद्र और राज्य के बजट के समय हो सकती है।
- आरटीई एक्ट, 2009 का अनुपालन : यह पाया गया कि आरटीई एक्ट, 2009 के प्रावधानों का पूरी तरह से पालन नहीं किया जा रहा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) प्राथमिक शिक्षा के लिए उपयुक्त (एलिजिबल) बच्चों की संख्या के रिकॉर्ड को मेनटेन न करना, (ii) 14 वर्ष से ऊपर के बच्चों को प्राथमिक कक्षाओं में बहाल रखना, जोकि एक्ट का उल्लंघन है, (iii) बिना मान्यता वाले स्कूलों का संचालन, और (iv) शिक्षकों की पर्याप्त भर्तियां न होने की वजह से विद्यार्थी-शिक्षक अनुपात का पालन न होना और मौजूदा शिक्षकों को गैर शिक्षण कार्यो के लिए तैनात करना। कैग ने सुझाव दिया कि राज्य सरकारों को उपयुक्त (एलिजिबल) बच्चों की पहचान करनी चाहिए और उनका दाखिला कराना चाहिए। इसके अतिरिक्त राज्य सरकार को शिक्षकों और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी अन्य जरूरतों का मूल्यांकन करना चाहिए और उन्हें एक्ट के अनुरूप करना चाहिए।
- निरीक्षण और मूल्यांकन : कैग ने टिप्पणी की कि व्यापक और निरंतर आकलन के जरिए स्कूलों की प्रगति का निरीक्षण नहीं किया गया है। कैग ने सभी स्कूलों में आरटीई एक्ट, 2009 के कार्यान्वयन के निरीक्षण के लिए जिम्मेदार मुख्य निकायों और उपायों से संबंधित कुछ टिप्पणियां कीं। इनमें निम्नलिखित शामिल है :
- (i) स्कूल प्रबंधन कमिटियां (एसएमसीज़) : एसएमसीज़ स्थानीय अथॉरिटी के प्रतिनिधियों, स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों के माता-पिता या अभिभावकों और शिक्षकों के जरिए स्थानीय समुदाय और स्कूलों के बीच सेतु का काम करती हैं। ये कमिटियां यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्कूलों में बुनियादी जरूरतों को पूरा किया जा रहा है, स्कूलों में निरीक्षण भी करती हैं। कैग ने गौर किया कि एसएमसीज़ के गठन में एक से तीन महीने के विलंब के चलते स्कूलों के निरंतर आकलन और निरीक्षण का काम प्रभावित होता है। कैग ने यह टिप्पणी भी की कि 2015-16 के दौरान, नौ राज्यों में स्कूल विकास योजनाएं (एसडीपी) तैयार नहीं की गई थीं। एसडीपी ऐसी रणनीतिक योजना होती है जिसे एसएमसीज़ द्वारा स्कूल के कामकाज को सुधारने के लिए तैयार किया जाता है,
- (ii) आंतरिक ऑडिट : मुख्य लेखा नियंत्रक (चीफ कंट्रोलर ऑफ ऑडिट) द्वारा केंद्रीय स्तर पर सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) योजना के तहत आरटीई का आंतरिक ऑडिट नहीं किया गया। आंतरिक ऑडिट संबंधित मंत्रालय/विभागों के आंतरिक ऑडिट खंड द्वारा किया जाता है, और
- (iii) राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) : आरटीई एक्ट, 2009 के प्रावधानों के कार्यान्वयन पर केंद्र सरकार को सलाह देने के लिए 2010 में एनएसी की गठन किया गया। यह गौर किया गया कि यह परिषद प्रभावी नहीं है क्योंकि नवंबर, 2014 के बाद इसका पुनर्गठन नहीं किया गया। इसलिए 2014 के बाद इसका अस्तित्व ही नहीं है।
- कैग ने निम्नलिखित सुझाव दिए : (i) एनएसी का पुनर्गठन, (ii) एसएमसीज़ को समय पर गठित किया जाना चाहिए और उसकी नियमित बैठक होनी चाहिए, (iii) एसएमसीज़ द्वारा एसपीडीज़ तैयार किया जाना चाहिए, और (iv) मुख्य लेखा नियंत्रक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि केंद्रीय स्तर पर एसएसए का नियमित आंतरिक ऑडिट किया जाए।
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