स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- ग्रामीण विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर : डॉ. पी. वेणुगोपाल) ने 19 जुलाई, 2017 को ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का वॉटरशेड डेवलपमेंट कंपोनेंट, पूर्व में आईडब्ल्यूएमपी’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। वॉटरशेड वह क्षेत्र होता है जो नदी के बहाव को दिशा देता है। वॉटरशेड के प्रबंधन के लिए भूमि और जल संसाधनों का समझदारी भरा उपयोग किया जाता है, जैसे मिट्टी को बहने से रोकना, फसलों की उत्पादकता में बढ़ोतरी, वर्षा के पानी को जमा करना और भूजल के स्तर का पुनर्भरण (रीचार्ज)।
- 2015 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) की शुरुआत की गई थी। इस योजना को तीन मंत्रालयों द्वारा संयुक्त रूप से लागू किया जाता है। ग्रामीण विकास मंत्रालय जल संरक्षण की गतिविधियां चलाता है, जल संसाधन मंत्रालय सिंचाई के स्रोतों के सृजन के उपाय करता है और कृषि मंत्रालय पानी के प्रभावी उपयोग को बढ़ावा देता है। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
- प्रॉजेक्ट पूरा करने के लिए शीघ्र प्रयास : देश में बुवाई किए गए कुल क्षेत्र में 53% क्षेत्र, जोकि लगभग 74 मिलियन हेक्टेयर है, की सिंचाई बारिश के पानी से होती है, और पीएमकेएसवाई के वॉटरशेड डेवलपमेंट कंपोनेंट का लक्ष्य सतत सिंचाई के जरिए इन क्षेत्रों में उत्पादकता में वृद्धि करना है। एकीकृत वॉटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी), जोकि अब पीएमकेएसवाई का एक अंग है, को 2009 से लागू किया जा रहा है। कमिटी ने टिप्पणी की कि 2009 से 2015 के बीच 39 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने वाले 8,214 प्रॉजेक्ट्स में से एक भी प्रॉजेक्ट अप्रैल 2017 की क्लोजर डेट तक पूरा नहीं हुआ है। वॉटरशेड विकास प्रॉजेक्ट्स के दिशानिर्देशों के अनुसार एक प्रॉजेक्ट को चार से सात वर्ष के बीच पूरा हो जाना चाहिए। कमिटी ने सुझाव दिया कि वॉटरशेड कंपोनेंट के अंतर्गत चालू प्रॉजेक्ट्स को शीघ्र पूरा करने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए।
- बजटीय आबंटन : कमिटी ने सुझाव दिया कि अगर फंड्स की कमी के कारण प्रॉजेक्ट्स पूरे नहीं होते, तो इसके लिए मंजूर किए गए प्रॉजेक्ट्स की जरूरत के हिसाब से बजटीय आबंटन किए जाने चाहिए।
- बेहतर कार्यान्वयन के लिए राज्यों से समन्वय : आईडब्ल्यूएमपी के अंतर्गत पहले केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग का पैटर्न 90:10 का था। पीएमकेएसवाई के वॉटरशेड डेवलपमेंट कंपोनेंट के अंतर्गत इसे बदलकर 60:40 कर दिया गया है। कमिटी ने टिप्पणी की कि इस बदलाव से फंड्स का प्रभावी तरीके से उपयोग करने में राज्यों की भूमिका और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। कमिटी ने यह भी कहा है कि राज्य सरकार की एजेंसियों और सहभागियों के बीच बेहतर समन्वय के जरिए प्रॉजेक्ट्स में होने वाले विलंब को दूर किया जा सकता है।
- यह सुझाव दिया गया कि राज्य स्तरीय सभी नोडल एजेंसियों (जमीनी स्तर की गतिविधियों के लिए मुख्य समन्वयक और निरीक्षणात्मक इकाइयों) और हितधारकों (स्टेकहोल्डर्स) को प्रॉजेक्ट्स को बेहतर तरीके से लागू करने और निर्धारित समय सीमा में उन्हें पूरा करने के लिए मिलकर कार्य करना चाहिए।
- विस्तृत प्रॉजेक्ट रिपोर्ट्स (डीपीआरज़) : कमिटी ने टिप्पणी की कि 1,774 प्रॉजेक्ट्स के लिए डीपीआर तैयार नहीं की गईं। कमिटी ने डीपीआर को तैयार करने में गुणवत्ता की कमी का भी उल्लेख किया जैसे भौगोलिक स्थिति की चुनौतियों और उनसे निपटने के तरीकों पर ध्यान न देना। यह भी कहा गया कि इसका कारण यह था कि डीपीआर बनाने वाली एजेंसियों के पास ऐसे प्रॉजेक्ट्स के लिए जरूरी कौशल नहीं था। यह सुझाव दिया गया कि विश्वसनीय सरकारी एजेंसियों, जिनके पास पर्याप्त विशेषज्ञता हो, को डीपीआर तैयार करने में संलग्न किया जाना चाहिए। स्थानीय लोगों को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए और डीपीआर को पारदर्शी और उत्तरदायित्वपूर्ण बनाने के लिए उन्हें पब्लिक डोमेन में पेश किया जाना चाहिए।
- तीसरे पक्ष द्वारा मूल्यांकन : नई पहल के अंतर्गत उत्तर, पश्चिम और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में प्रॉजेक्ट्स के निरीक्षण और मूल्यांकन के लिए तीन एजेंसियां नियुक्त की गई हैं। कमिटी ने टिप्पणी की कि ऐसे मूल्यांकन तंत्र से चालू प्रॉजेक्ट्स के फंक्शनल और जमीनी स्तर के पहलुओं की बेहतर जानकारी प्राप्त होती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि दक्षिण और पूर्वी क्षेत्रों के लिए इन एजेंसियों के चयन की प्रक्रिया को तेज किया जाना चाहिए, चूंकि वॉटरशेड विकास प्रॉजेक्ट्स को देश भर में लागू किया जा रहा है।
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