स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- ग्रामीण विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. पी. वेणुगोपाल) ने 20 मार्च, 2017 को ‘प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। ग्रामीण क्षेत्रों की संपर्कविहीन बसाहटों को एकल, बारामासी सड़कों से जोड़ने के लिए 2000 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) की शुरुआत की गई थी। इस योजना को लागू करने की जिम्मेदारी ग्रामीण विकास मंत्रालय और राज्य सरकारों की है। कमिटी के प्रमुख निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- ग्रामीण सड़कों का रखरखाव : पीएमजीएसवाई के तहत बनी सड़कें लंबे समय तक टिकाऊ बनी रहें, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक ठेकेदार को निम्नलिखित शर्तों का पालन करना होगा : (i) पांच साल तक किसी टूट-फूट (डिफेक्ट) की स्थिति में सड़क की मरम्मत, और (ii) काम खत्म होने के बाद नियमित मेनटेनेंस, जिसका भुगतान किया जाएगा। कमिटी ने टिप्पणी की कि पीएमजीएसवाई के तहत जिन सड़कों का काम पूरा हो चुका है, उनमें से 21% का रखरखाव उचित तरीके से नहीं किया गया। इसके अतिरिक्त केवल 15 राज्यों ने ग्रामीण सड़क रखरखाव नीति तैयार की है। हालांकि 7,271 व्यक्तियों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य था, लेकिन केवल 1,732 इंजीनियरों और 1,020 ठेकेदारों को प्रशिक्षित किया गया है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना के तहत बनी सड़कें उचित स्थिति में रहें, इसके लिए मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शेष राज्य भी ग्रामीण सड़क रखरखाव नीति को शीघ्र तैयार करें। सड़कों के उचित रखरखाव के लिए शेष इंजीनियरों और ठेकेदारों को प्रशिक्षण देने की समयबद्ध रणनीति विकसित की जानी चाहिए।
- निगरानी तंत्र : कमिटी ने टिप्पणी कि राज्य ग्रामीण सड़क विकास एजेंसियों में प्रशिक्षित और अनुभवी कर्मचारियों के निरंतर तबादलों से भी योजना की निगरानी पर असर पड़ता है। कमिटी ने गौर किया कि कुछ राज्य ऑनलाइन मॉनिटरिंग मैनेजमेंट और एकाउंटिंग सिस्टम में योजना की भौतिक और वित्तीय प्रगति को नियमित अपडेट नहीं करते। इसके अतिरिक्त इस एकाउंटिंग सिस्टम के विभिन्न मॉड्यूल डेटा को अपडेट करना मुश्किल बनाते हैं।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि एकाउंटिंग सिस्टम पर डेटा को अपडेट करने वाले कर्मचारियों को समयबद्ध तरीके से विभिन्न मॉड्यूलों का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। योजना के तहत बनी सड़कों के भौतिक सत्यापन (फिजिकल वैरिफिकेशन) की प्रक्रिया को अधिक ठोस बनाया जाना चाहिए।
- भौतिक प्रगति : कमिटी ने टिप्पणी की कि देश में 23,673 प्रॉजेक्ट्स निम्नलिखित कारणों से लंबित हैं : (i) काम पर्याप्त तरीके से पूरा न होना और सभी ठेकेदारों का काम न करना और (ii) भूमि और वन विभागों की मंजूरी न मिलना। यह पाया गया कि बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा जैसे नौ राज्यों में सड़क निर्माण का काम पूरा नहीं हुआ है। इसके अतिरिक्त कार्यक्रम की शुरुआत से अब तक 1,83,599 बसाहटों में से केवल 1,19,156 (65%) बसाहटों को जोड़ा गया है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि सड़क निर्माण के काम में पिछड़ चुके राज्यों में पर्याप्त संख्या में कार्यान्वयन एजेंसियों की स्थापित किया जाना चाहिए। समयबद्ध तरीके से योजना की प्रगति सुनिश्चित करने के लिए कॉन्ट्रैक्ट की क्षमता, कच्चे माल की उपलब्धता और मंजूरियां हासिल करने जैसी समस्याओं को प्राथमिकता के आधार पर सभी भागीदारों की सलाह से हल किया जाना चाहिए।
- योजना का अपग्रेडेशन : 2013 में पीएमजीएसवाई- II प्रारंभ की गई थी जिसके तहत केवल ग्रामीण सड़कों के अपग्रेडेशन का काम किया जा सकता है। कमिटी ने टिप्पणी की कि 2016 तक केवल आठ राज्य कार्यक्रम के दूसरे चरण में पहुंच पाए थे। 2012 से 2017 के बीच 50,000 किलोमीटर लंबी सड़कों के लक्ष्य की तुलना में 13,525 किलोमीटर निर्माण के काम को मंजूरी मिली थी और 2016 तक इन आठ राज्यों में 7,701 किलोमीटर सड़कें ही बन पाई थीं। कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना के तहत निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए।
- फंड्स की उपलब्धता : कमिटी ने सुझाव दिया कि 2015-16 के लिए योजना की फंडिंग बढ़ाने के साथ मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि : (i) फाइनांस का अधिकतम और उचित प्रकार से उपयोग हो रहा है, (ii) लीकेज की जांच हो रही है, (iii) यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट समय पर मिल गए हैं, और (iv) ठेकेदारों को भुगतान करने के लिए ई-पेमेंट का सबसे अधिक इस्तेमाल किया जा रहा है।
- प्रोक्योरमेंट की प्रक्रिया : कमिटी ने टिप्पणी की कि उत्तर प्रदेश और मणिपुर में काम के प्रोक्योरमेंट से जुड़ी कुछ समस्याएं थीं। उत्तराखंड में ठेकेदारों को उनका बकाया नहीं चुकाया गया था। कमिटी ने यह भी कहा कि संदेहास्पद ठेकेदारों को ठेके दिए गए और टेंडर देने के बाद भी ठेकेदारों ने काम नहीं किया।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि भ्रष्ट और संदेहास्पद ठेकेदारों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में उन्हें टेंडर देने से बचा जा सके। मौजूदा समस्याओं को दूर करने के लिए प्रोक्योरमेंट की प्रक्रिया को अपग्रेड किया जाना चाहिए। मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ठेकेदारों को समय पर भुगतान किया जाए जिससे मजदूरों को भी समय पर उनकी मजदूरी मिल सके।
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