कैग ऑडिट रिपोर्ट का सारांश
- नियंत्रक और महा लेखापरीक्षक (कैग) ने 7 अगस्त, 2018 को ‘प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के प्रदर्शन’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। पीएमएसएसवाई को 2003 में शुरू किया गया था ताकि तृतीयक स्तर (टर्शियरी लेवल) की स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में असंतुलन को दूर किया जा सके और मेडिकल शिक्षा की क्वालिटी में सुधार किया जा सके। इस योजना के दो घटक हैं: (i) नए एम्स की स्थापना, और (ii) चुने हुए सरकारी मेडिकल कॉलेज संस्थानों (जीएमसीआईज़) का अपग्रेडेशन। पिछले कुछ वर्षों से 20 नए एम्स और 71 जीएमसीआईज़ इस योजना के दायरे में आ गए हैं। इस ऑडिट की अवधि 2003 से 2017 के बीच की है। ऑडिट रिपोर्ट के निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं :
- योजना और कार्यान्वयन: कैग ने गौर किया कि शुरुआत से अब तक पीएमएसएसवाई के लिए ऑपरेशनल दिशानिर्देश नहीं बनाए गए। इस वजह से इस योजना के मुख्य पहलुओं पर बहुत से फैसले अनौपचारिक रूप से लिए गए। नए एम्स की स्थापना के मामले में शुरुआती मंजूरी काम के दायरे के व्यापक आकलन पर आधारित नहीं थी। इससे लागत में बढ़ोतरी हुई और पांच वर्षों की देरी हुई। जहां तक जीएमसीआईज़ का सवाल है, इस संबंध में संस्थानों के चयन के मानदंड नहीं बनाए गए जिससे मनमाने फैसले किए गए।
- इस संबंध में कैग ने सुझाव दिया कि योजना के कार्यान्वयन को रेगुलेट करने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को ऑपरेशनल दिशानिर्देशों को तैयार करने में तेजी लानी चाहिए। उसने यह सुझाव भी दिया कि स्थिति की जांच करने और योजना एवं कार्यान्वयन में कमियों को चिन्हित करने के लिए मूल्यांकन संबंधी अध्ययन किए जा सकते हैं।
- वित्तीय प्रबंधन: 2004-17 के दौरान सरकार ने इस योजना के लिए 14,971 करोड़ रुपए आबंटित किए। हालांकि इनमें से केवल 61% (9,207 करोड़ रुपए) जारी किया गया। इसके अतिरिक्त फंड्स के एक बड़े हिस्से का उपयोग ही नहीं किया गया जिसके मुख्य कारणों में निम्नलिखित शामिल हैं : (i) मंजूरी हासिल करने में देरी, (ii) उपकरणों की खरीद की धीमी प्रक्रिया, (iii) पदों को न भरना, और (iv) यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स जमा करने में देरी। कैग ने कहा कि वास्तविक व्यय के निरीक्षण की कोई व्यवस्था नहीं थी जिससे फंड्स जमा होते गए।
- यह पाया गया कि मंत्रालय ने छह नए एम्स की स्थापना की पूंजीगत लागत, प्रति संस्थान 332 करोड़ रुपए रखी। फिर योजना संबंधी कमियों के कारण और बढ़ती जरूरतों को देखते हुए चार वर्ष के बाद इस लागत को 820 करोड़ रुपए पर संशोधित किया गया। कैग ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि काम के दौरान कॉन्ट्रैक्ट के नियमों का पालन किया गया है। इसके अतिरिक्त जहां बिना पर्याप्त कारण के अतिरिक्त खर्चा किया गया है, वहां जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
- काम पूरा करने में देरी: कैग ने कहा कि नए एम्स को बनाने में लगभग पांच वर्षों की देरी हुई। इसी तरह जीएमसीआईज़ के अपग्रेडेशन में भी देरी पाई गई, चूंकि ऑडिट के लिए चुने गए 16 में से सिर्फ आठ जीएमसीआई का काम पूरा हुआ था। इस देरी के लिए खराब कॉन्ट्रैक्ट मैनेजमेंट और कमजोर निरीक्षण जिम्मेदार थे। इसके अतिरिक्त काम में कुछ कमियां भी थीं, जैसे : (i) स्कोप और मात्राओं का अनुमान सही न होना, (ii) उपकरणों की खरीद और इंस्टॉलेशन में देरी, और (iii) कॉन्ट्रैक्टर्स को अतिरिक्त भुगतान। इस संबंध में कैग ने सुझाव दिया कि प्रॉजेक्ट्स के बेहतर निरीक्षण के जरिए बकाया काम को तेजी से पूरा करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
- मानव संसाधन: कैग ने कहा कि एम्स में फैकेल्टी और गैर फैकेल्टी पदों की भारी कमी है। इससे विभिन्न विभागों के कामकाज पर असर होता है और परिणामस्वरूप कॉन्ट्रैक्ट पर कर्मचारियों की आउटसोर्सिंग की जाती है। इसके अतिरिक्त स्वीकृत पदों को भरने में देरी के कारणों में भर्ती संबंधी नियमों को अंतिम रूप न देना, अदालती मामले और पात्र उम्मीदवारों की कमी शामिल है। जहां तक जीएमसीआईज़ का सवाल है, उनके पास सुपरस्पीशिएलिटी विभागों को चलाने के लिए मैनपावर की कमी थी। कैग ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को नए एम्स और जीएमसीआईज़ में फैकेल्टी, नॉन फैकेल्टी और टेक्निकल मैनपावर की कमी को दूर करने के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए।
- निरीक्षण कमिटियां: ऑडिट में कहा गया कि प्रॉजेक्ट की समीक्षा हेतु राष्ट्रीय, राज्य और संस्थान स्तर पर स्थापित कमिटियां नॉन फंक्शनल बनी हुई हैं। इसके अतिरिक्त जीएमसीआईज़ के अपग्रेडेशन के निरीक्षण का काम उन्हीं संस्थानों पर छोड़ दिया गया था, और इसमें मंत्रालय या राज्य सरकारों की कोई भूमिका नहीं थी। कैग ने सुझाव दिया कि काम को पूरा करने और उपकरणों की खरीद से संबंधित गतिविधियों के सिन्क्रोनाइजेशन के लिए कमिटियों द्वारा उनका निरीक्षण किया जाना जरूरी था।
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