स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयरपर्सन : प्रह्लाद जोशी) ने 25 जुलाई, 2018 को ‘पेट्रोलियम सेक्टर के सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी पहलू’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
- पेट्रोलियम सेक्टर में सुरक्षा और पर्यावरण संबंधी संरक्षण: कमिटी ने कहा कि पेट्रोलियम उद्योग में उच्च ज्वलनशील हाइड्रोकार्बन और उच्च तापमान एवं दबाव वाली कार्य प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अतिरिक्त खोज और उत्पादन, तेल के छलकाव और रिफाइनिंग के काम के कारण यह उद्योग पर्यावरण प्रदूषण के स्तर को बढ़ाता है। इसलिए पेट्रोलियम सेक्टर के लिए सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसलिए इस सेक्टर में काम करने वाले लोगों और व्यापक स्तर पर समाज के हित के लिए यह जरूरी है कि इस सेक्टर में सुरक्षा पर पूरा ध्यान दिया जाए। यह सुझाव दिया गया कि इन सभी कार्यों की निरंतर निगरानी की जानी चाहिए और सुरक्षा बढ़ाने एवं पर्यावरणीय प्रभाव को कम से कम करने के लिए कानूनी संरचना को मजबूत किया जाना चाहिए।
- सेफ्टी काउंसिल की भूमिका: ऑयल इंडस्ट्री सेफ्टी डायरेक्टरेट (ओआईएसडी) के डेटा संकेत देते हैं कि तेल और गैस उद्योग की बड़ी दुर्घटनाओं के निम्नलिखित कारण हैं: (i) स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स (एसओपीज़) का अनुपालन न करना, (ii) वर्क परमिट सिस्टम का उल्लंघन, और (iii) नॉलेज गैप। कमिटी ने कहा कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय (एमओपीएनजी) के अंतर्गत एपेक्स संस्था सेफ्टी काउंसिल ने सुरक्षा के मामलों और हाइड्रोकार्बन सेक्टर की कार्य प्रक्रियाओं में अपनी रेगुलेटरी भूमिका नहीं निभाई है। इसके अतिरिक्त ऑयल और गैस इंस्टॉलेशंस में होने वाली दुर्घटनाओं की जवाबदेही तय करने के लिए कोई निश्चित कार्य पद्धति नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सेफ्टी काउंसिल को एक निश्चित समयावधि में तेल और गैस उद्योग में अनुपालन की मांग करनी चाहिए। अगर अनुपालन न किया जाए तो उसके लिए सजा दी जानी चाहिए। एसओपीज़ का उल्लंघन होने पर एमओपीएनजी और उन दूसरी एजेंसियों को जवाबदेही तय करनी चाहिए जिन्हें सेफ्टी रेगुलेशंस को लागू करने का काम सौंपा गया है।
- ऑयल इंस्टॉलेशंस में सेफ्टी ऑडिट्स और दुर्घटनाएं: 2014-17 के दौरान (30 नवंबर, 2017 तक) 3090 दुर्घटनाओं में 81 लोग मारे गए और 193 चोटग्रस्त हुए। कमिटी ने कहा कि हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र के कुछ उपक्रमों में दुर्घटनाओं की संख्या में गिरावट हुई है, फिर भी हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) और ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) में यह संख्या अब भी अधिक है। ओआईएसडी सेफ्टी ऑडिट और जांच करती है और अपनी रिपोर्ट को संबंधित कंपनी को भेजती है जिसमें अनुपालन संबंधी सुझाव होते हैं। तेल कंपनियां ओआईएसडी मानकों के अनुसार आंतरिक ऑडिट भी करती हैं। इसके अतिरिक्त डायरेक्टरेट जनरल ऑफ माइन्स सेफ्टी (डीजीएमएस), पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव्स सेफ्टी ऑर्गेनाइजेशन (पेसो) और पेट्रोलियम एंड नेचुरल गैस रेगुलेटरी बोर्ड (पीएनजीआरबी) जैसी एजेंसियां भी ऑयल और गैस इंस्टॉलेशंस में सुरक्षा संबंधी उपायों की निगरानी करती हैं और उन्हें लागू करती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि इन सभी एजेंसियों को दुर्घटनाओं की समीक्षा करनी चाहिए और डिजाइन एवं कार्य प्रक्रियाओं की कमियों को दूर करना चाहिए।
- युनाइटेड सेफ्टी बोर्ड का गठन: कमिटी ने कहा कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस उद्योग में सुरक्षा उपायों को लागू करने में कई वैधानिक अथॉरिटीज़ लगी हुई हैं। उदाहरण के लिए (i) तेल की खोज और उत्पादन में डीजीएमएस और ओआईएसडी, जो क्रमशः श्रम एवं रोजागर मंत्रालय और एमओपीएनजी के अंतर्गत आते हैं, सेफ्टी को रेगुलेट करते हैं, (ii) तेल की प्रोसेसिंग और वितरण के क्षेत्र में पेसो और पीएनजीआरबी, जो क्रमशः वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय और एमओपीएनजी के अंतर्गत आते हैं, सुरक्षा संबंधी उपायों को लागू करते हैं। पेसो 97% क्षेत्र को रेगुलेट करता है, जबकि डीजीएमएस 2% और ओआईएसडी 1% को।
- कमिटी ने ओआईएसडी के मामले में हितों के टकराव पर गौर किया, चूंकि अधिकारी अपने नियोक्ताओं के खिलाफ रिपोर्ट देने में कोताही बरत सकते हैं। इसके अतिरिक्त पेसो अनेक खतरनाक परिसरों, जैसे रिफाइनरीज़, मैन्यूफैक्चरिंग और तेल एवं गैस के स्टोरेज और परिवहन में सुरक्षा संबंधी रेगुलेशन का काम कर रहा है। इसलिए पूरे हाइड्रोकार्बन सेक्टर में सुरक्षा संबंधी रेगुलेशंस को प्रबंधित करने के लिए पेसो अधिक उपयुक्त संस्था है। कमिटी ने सुझाव दिया कि हाइड्रोकार्बन सेक्टर में सुरक्षा संबंधी रेगुलेशन के लिए सिंगल फ्रेमवर्क के तौर पर काम करने के लिए पेसो को सशक्त बनाया जा सकता है। पेसो की क्षमता को निम्नलिखित के जरिए बढ़ाया जा सकता है: (i) उसे प्रॉसीक्यूशन की शक्तियां प्रदान की जा सकती हैं, (ii) मानव संसाधन को मजबूत किया जा सकता है और जिला अथॉरिटीज़ के साथ समन्वय किया जा सकता है, और (iii) शोध और टेस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड किया जा सकता है।
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