स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर : वीरेंद्र कुमार) ने 10 अगस्त, 2017 को राष्ट्रीय विद्युत नीति की समीक्षा पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। केंद्र सरकार ने फरवरी 2005 में इस नीति को जारी किया था। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
- उद्देश्यों की प्राप्ति : नीति के उद्देश्य निम्नलिखित हैं: (i) 2010 तक सभी घरों में बिजली की सुविधा, (ii) 2012 तक देश में ऊर्जा की मांग को पूरा करना, (iii) कारगर तरीके से और उपयुक्त दर पर भरोसेमंद और गुणवत्तापूर्ण ऊर्जा की आपूर्ति करना, और (iv) विद्युत क्षेत्र का वित्तीय कायाकल्प और वाणिज्यिक व्यावहारिकता (वायबिलिटी)। कमिटी ने टिप्पणी की कि नीति का कोई भी उद्देश्य निर्धारित समयावधि में पूरा नहीं किया जा सका। कमिटी ने संकेत दिया कि : (i) चार करोड़ घरों में अब भी बिजली पहुंचाए जाने की जरूरत है, (ii) जबकि उत्पादन की क्षमता पर्याप्त है, वहन करने की क्षमता के मद्देनजर ऊर्जा की मांग को समग्र तरीके से पूरा नहीं किया जा सका है, और (iii) ऊर्जा वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) की वित्तीय स्थिति बदतर हुई है।
- क्षेत्र की नई चुनौतियां : कमिटी ने टिप्पणी की कि सौर ऊर्जा शुल्क (टैरिफ) में गिरावट और प्रॉजेक्ट्स के पूरा होने में कम समय लगने के कारण थर्मल पावर प्लांट्स की आर्थिक व्यावहारिकता (वायबिलिटी) पर असर होता है। हालांकि सौर ऊर्जा में वृद्धि विद्युत क्षेत्र के लिए अच्छा संकेत है, थर्मल पावर देश में ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत है और आने वाले वर्षों में उसका महत्व कम होने वाला नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि ऊर्जा क्षेत्र का विकास ऐसे संतुलित तरीके से किया जाना चाहिए कि ऊर्जा के विभिन्न स्रोत एक दूसरे के अनुपूरक बनें। राष्ट्रीय विद्युत नीति को अधिसूचित हुए 12 वर्ष हो चुके हैं। क्षेत्र में होने वाले त्वरित बदलावों को देखते हुए समग्र नजरिए के साथ इस नीति में संशोधन पर विचार किया जाना चाहिए।
- बिजली की सुविधा : नीति के अनुसार, ऊर्जा क्षेत्र में विकास का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण सहित सभी क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति करना है। कमिटी ने गौर किया कि बिजलीकृत गांव की परिभाषा के अनुसार, जिन गांवों में 10% बिजली वाले घर हैं, उन्हें बिजलीकृत मान लिया जाता है। वर्तमान में, 4% गांव बिजलीकृत हैं, लेकिन देश में चार करोड़ से अधिक घरों में अब भी बिजली का कनेक्शन नहीं है। कमिटी ने सुझाव दिया कि गांवों के बिजलीकरण की परिभाषा को बदला जाना चाहिए- यानी किसी गांव को बिजलीकृत तभी कहा जाना चाहिए जब उसके सभी घर बिजलीकृत हो जाएं। इसके अतिरिक्त किसी भी गांव को तब तक बिजलीकृत न कहा जाए जब तक उसके 80% घरों में बिजली का कनेक्शन न हो जाए।
- कमिटी ने टिप्पणी की कि ग्रामीण बिजलीकरण की मौजूदा नीति में केवल गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले घरों (बीपीएल) को शामिल किया गया है। हालांकि, यह भी संभव है कि गरीबी रेखा के ऊपर जीवनयापन करने वाले परिवार (एपीएल) बिजली कनेक्शन का खर्चा न उठा पाएं। कमिटी ने सुझाव दिया कि बीपीएल के साथ एपीएल परिवारों को शामिल करने के लिए इस नीति में संशोधन किया जाए। एपीएल परिवारों के लिए कनेक्शन शुल्क मुक्त हो सकता है, उसमें छूट दी जा सकती है या समान मासिक किस्त के जरिए उसे वसूला जा सकता है। इसके अतिरिक्त (i) सप्लाई की क्वालिटी और (ii) उपयुक्त समय के लिए सप्लाई की विश्वसनीयता के संबंध में प्रावधान भी तैयार किए जाने चाहिए।
- बिजली उत्पादन : कमिटी ने गौर किया कि हाल के वर्षों में देश में बिजली उत्पादन की क्षमता में वृद्धि हुई है। हालांकि कुल ऊर्जा में पनबिजली की हिस्सेदारी 2007-8 में 25% से घटकर मौजूदा दौर में 14% रह गई है। मार्च 2017 तक देश की पनबिजली क्षमता के 30% हिस्से का उपयोग किया जा रहा था। यह सुझाव दिया गया कि जिन राज्यों में पनबिजली क्षमता है, उन्हें उसके अधिकतम विकास पर जल्द से जल्द ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त चूंकि अक्षय ऊर्जा (रीन्यूएबल एनर्जी) के स्रोतों से निरंतर बिजली प्राप्त नहीं की जा सकती, इसलिए पनबिजली को ग्रिड को सहयोग देने और सप्लाई में आने वाले फ्लक्चुएशन को बराबर रखने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
- वर्तमान में 25 मेगावाट से अधिक की क्षमता वाले पनबिजली संयंत्रों को अक्षय ऊर्जा स्रोतों के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। कमिटी ने टिप्पणी की कि इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी पनबिजली को अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में वर्गीकृत करती है, चूंकि यह ऐसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं से उत्पन्न होती है जिसमें पूर्ति की दर उपभोग की दर से अधिक है। कमिटी ने सुझाव दिया कि पनबिजली को अक्षय ऊर्जा स्रोत घोषित किया जाए।
- बिजली वितरण : कमिटी ने टिप्पणी की कि बिजली क्षेत्र की समूची आर्थिक व्यावहारिकता (वायबिलिटी) वितरण क्षेत्र पर निर्भर करती है, जोकि वर्तमान में वित्तीय स्तर पर देश का सर्वाधिक संकटग्रस्त क्षेत्र है। देश का कुल तकनीकी और व्यावसायिक (एटी एंड सी) घाटा अब भी उच्च स्तर पर है और डिस्कॉम्स की संकटग्रस्त स्थिति का मुख्य कारण है। कमिटी ने यह टिप्पणी भी की कि एटी एंड सी घाटे की अवधारणा त्रुटिपूर्ण है क्योंकि इसमें व्यावसायिक घाटा भी छिप जाता है, जबकि तकनीकी घाटे से ठीक उलट, व्यावसायिक घाटे को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि इन दो घटकों को अलग-अलग किया जाना चाहिए।
- डिस्कॉम्स की वित्तीय स्थिति : कमिटी ने टिप्पणी की कि 2014-15 में डिस्कॉम पर 4 लाख करोड़ का कुल बकाया था। इन कंपनियों की वित्तीय कायाकल्प के लिए 2015 में उज्जवल डिस्कॉम आश्वासन योजना (उदय) को शुरू किया गया। कमिटी ने टिप्पणी की कि इससे पहले भी ऐसे ही उद्देश्यों के साथ पहल की गई थीं लेकिन किन्हीं कारणों से उन्हें सफलता नहीं मिली। कमिटी ने सुझाव दिया कि जब भी आवश्यकता हो, योजना में बदलाव किए जा सकते हैं ताकि उसके कार्यान्वयन के दौरान उत्पन्न होने वाली कोई भी नई समस्या का हल किया जा सके।
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