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पीडीएफ

भारतीय रेलवे द्वारा सामाजिक सेवा के कार्यों के प्रभाव की समीक्षा पर नीति आयोग की रिपोर्ट

  • नीति आयोग ने सितंबर 2016 में भारतीय रेलवे द्वारा सामाजिक सेवा के कार्यों के प्रभाव की समीक्षा करने के लिए एक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
  • सामाजिक सेवा के कार्य : भारतीय रेलवे राष्ट्रीय हित में ऐसे विभिन्न गतिविधियां संचालित करता है जो कठोरता से वाणिज्यिक सिद्धांतों से प्रेरित नहीं होतीं। इनमें से अनेक की प्रकृति अलाभकारी होती है और रेलवे (i) या तो उन गतिविधियों की लागत की वसूली करने में असमर्थ होता है, या (ii) उसे वह राजस्व छोड़ देना पड़ता है जो वह किसी और गतिविधि से हासिल कर सकता था। रेलवे इन सामाजिक कर्तव्यों को चार श्रेणियों में विभाजित करता है : (i) लागत से कम पर अनिवार्य वस्तुओं का मूल्य निर्धारण, (ii) कम किराया और यात्रियों को रियायत (जैसे वरिष्ठ नागरिकों, पूर्व सैन्यकर्मियों को सस्ते टिकट), (iii) अलाभकारी ब्रांच लाइन, और (iv) नई लाइन्स जो अभी लाभ नहीं कमा रहीं। 2014-15 में ऐसे सामाजिक सेवा कार्यों के कारण रेलवे के यात्री सेवा कारोबार को 33,000 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था।
  • यात्री सेवा कारोबार : 2014-15 में यात्री सेवा कारोबार से कमाए गए हर एक रुपए पर भारतीय रेलवे ने 1 रुपए 67 पैसे खर्च किए। 2011-12 और 2014-15 के बीच यात्री सेवा कारोबार में 75% से 80% घाटा गैर उपनगरीय परिचालन (नॉन सबअर्बन ऑपरेशंस) के कारण हुआ। कुल घाटे में 12% हिस्सा उपनगरीय सेवाओं के तहत परिचालन संबंधी घाटे का था। विभिन्न श्रेणियों के यात्रियों को प्रदत्त रियायतों के कारण 4% का घाटा हुआ।
  • सामाजिक सेवा के कार्यों की गणना : रेलवे ने यात्री सेवा कारोबार में हुए घाटे की गणना की है और इसके लिए सामाजिक सेवा के कार्यों को जिम्मेदार माना है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यात्री सेवा को संचालित करने की लागत से संबंधित आंकड़े वैज्ञानिक और सही नहीं हैं। इसलिए जो वसूलियां नहीं हुईं, उनके स्तर की गणना करना कठिन है। साथ ही, सामाजिक लागत की गणना में यह शामिल नहीं है कि क्या सभी खर्चे उचित तरीके से किए गए (क्या ईंधन का उपभोग अधिक से अधिक किया गया है, क्या अनुरक्षण (मेनटेनेंस) का कार्य और लागत उपयुक्त है, इत्यादि)। इस गणना में रेलवे की मौजूदा परिसंपत्तियों (जैसे स्टेशन, लैंड बैंक) को उन्नत बनाने की क्षमता को भी शामिल नहीं किया गया है जिससे उसका राजस्व बढ़ सकता है।
  • शुल्क दर के कारण घाटा : रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014-15 में सामाजिक सेवा के कार्यों की कुल लागत का 73% हिस्सा गैर उपनगरीय सेवाओं में निम्न शुल्क दर के कारण था।
  • घाटे के अन्य कारण : रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि निम्न शुल्क दर और रियायतों ने यात्री सेवा कारोबार को बहुत हद तक घाटा पहुंचाया, वे एकमात्र कारण नहीं थे। रेलवे की लागत संरचना में अकुशलता होने की वजह से भी यात्री सेवा कारोबार को बहुत नुकसान होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उदाहरण के लिए, जबकि एसी यात्री सेवा के लिए रेलवे का किराया समान बस सेवा से अधिक है, द्वितीय श्रेणी की सेवा का किराया समान बस किराए से कम है। इसलिए रेलवे प्रचलित बाजार दरों के अनुसार शुल्क दर को निर्धारित कर सकता है। लेकिन रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक प्रतिस्पर्धी बाजार में जहां परिवहन की मांग लचीली है, प्रतिस्पर्धा को देखते हुए रेलवे एक निश्चित सीमा तक ही किराया बढ़ा सकता है। रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया है कि सामाजिक लागत का भार कम करने के लिए केवल किराया बढ़ाना एकमात्र साधन नहीं है।  
  • माल भाड़ा कारोबार : रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि 2014 में जबकि रेलवे के यात्री सेवा कारोबार को 33,000 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा हुआ, उसके माल भाड़ा कारोबार को 44,500 करोड़ रुपए का लाभ हुआ। रेलवे अपने माल भाड़ा कारोबार से होने वाले लाभ से यात्री सेवा में होने वाले नुकसान की भरपाई करता है और अपनी समूची वित्तीय स्थिति को भी संभालता है। वैसे माल भाड़े की उच्च लागत का असर बिजली, सीमेंट, स्टील इत्यादि की बढ़ी हुई कीमत के रूप में आम लोगों पर ही पड़ता है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि यात्री सेवा कारोबार की सामाजिक लागत को कम करने के लिए माल भाड़े की शुल्क दर में पाई जाने वाली भिन्नताओं को समरूप किया जाना चाहिए। 

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