- सोशियो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसेस, 2011 पर एक्सपर्ट ग्रुप (चेयर : सुमित बोस) ने जनवरी 2017 को ग्रामीण विकास मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। सामाजिक आर्थिक और जातिगत डेटा इकट्ठा करने के उद्देश्य से देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में 2011 में सोशियो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसेस (एसईसीसी) किए गए थे।
- जनवरी 2016 में एक्सपर्ट ग्रुप का गठन किया गया ताकि निम्नलिखित के संबंध में वस्तुनिष्ठ मानदंडों (ऑब्जेक्टिव क्राइटीरिया) का विश्लेषण किया जा सके: (i) राज्यों को संसाधन देना, और (ii) एसईसीसी आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए विभिन्न कार्यक्रमों के अंतर्गत लाभार्थियों को चिन्हित करना और उन्हें प्राथमिकता देना। कमिटी ने ग्रामीण विकास मंत्रालय के विभिन्न कार्यक्रमों के लिए एसईसीसी आंकड़ों के इस्तेमाल के संबंध में टिप्पणियां और सुझाव दिए।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना: मनरेगा मांग आधारित योजना है जिसका उद्देश्य टिकाऊ एसेट्स का निर्माण करना है। इसके अंतर्गत ग्रामीण परिवारों को 100 दिनों की गारंटीशुदा मजदूरी दी जाती है। कमिटी ने टिप्पणी दी कि इस योजना के अंतर्गत उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए जहां भूमिहीन मजदूर अधिक संख्या में मौजूद हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि जिन ग्राम पंचायतों में वंचित (डिप्राइव्ड) परिवार और भूमिहीन मजदूर अधिक संख्या में मौजूद हैं, वहां इस योजना को मजबूती से लागू किया जाना चाहिए।
- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) : इस मिशन का उद्देश्य आजीविका के अवसर और वित्तीय सेवाएं उपलब्ध कराते हुए गांवों में रहने वाले गरीब परिवारों की आय में बढ़ोतरी करना है। कमिटी ने टिप्पणी दी कि मानव संसाधन (ह्यूमन रिसोर्सज) और क्षमता की कमी के कारण एनआरएलएम को समस्याओं से जूझना पड़ रहा है और इस मिशन को पूरा सहयोग नहीं मिल रहा। कमिटी ने सुझाव दिया कि गरीबी से मुक्त पंचायतों की योजना बनाने के लिए एनआरएलएम को एसईसीसी आंकड़ों का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि वंचितों के मानदंडों (डेप्रिवेशन पैरामीटर) से जुड़े इंडेक्स का इस्तेमाल करते हुए एनआरएलएम के अंतर्गत राज्यों को संसाधन दिए जा सकते हैं। इन मानदंडों में निम्नलिखित शामिल होंगे : (i) ऐसे परिवार जिसकी मुखिया महिला हो और कोई वयस्क सदस्य न हो, (ii) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वाले ऐसे परिवार जिसमें कोई साक्षर वयस्क न हो, और (iii) भूमिहीन परिवार जो अपनी ज्यादातर कमाई हाथ की दिहाड़ी मजदूरी से प्राप्त करते हों। शुरुआत में, इस इनडेक्स का इस्तेमाल करते हुए 70% संसाधन दिए जा सकते हैं और बाद में इसे 80% और फिर 100% किया जा सकता है।
- प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण : पीएमएवाई एक ऐसी आवास योजना है जो ग्रामीण बीपीएल परिवारों को आवासीय इकाई (ड्वेलिंग यूनिट्स) के निर्माण के लिए वित्तीय सहायता देती है। कमिटी ने टिप्पणी दी कि एसईसीसी 2011 के अनुसार लगभग चार करोड़ ग्रामीण परिवारों को सुरक्षित घर प्रदान किए जाने चाहिए। कमिटी ने यह भी गौर किया कि योजना के अंतर्गत आने वाले परिवारों के अनुपात में राज्यों को फंड्स दिए जाते हैं। इस समय राज्यों को दो तरह से फंड्स दिए जाते हैं। फंड्स देने के लिए एसईसीसी हाउसिंग डेप्रिवेशन डेटा देखकर 75% फंड्स दिए जाते हैं और बाकी का 25% देने के लिए गरीबी के मौजूदा हेड काउंट रेशो को देखा जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि 2017-18 से राज्यों को सिर्फ एसईसीसी हाउसिंग डेप्रिवेशन डेटा के आधार पर फंड्स दिए जाने चाहिए।
- राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) : इस समय एनएसपीए में पांच सामाजिक सहायता कार्यक्रम चलाए जाते हैं जिनमें वृद्धों, विधवाओं और डिफ्ररेंटली एबेल्ड लोगों की पेंशन योजना भी शामिल है। कमिटी ने गौर किया कि एसईसीसी 2011 में वृद्धों, विधवाओं और डिफ्ररेंटली एबेल्ड लोगों का सामाजिक आर्थिक प्रोफाइल मौजूद है। उसने सुझाव दिया कि एनएसएपी के अंतर्गत सहायता देने की एलिजिबिलिटी को एसईसीसी डेटा के आधार पर तय किया जा सकता है। कमिटी ने एनएसएपी के अंतर्गत कई अन्य कार्यक्रम चलाने का सुझाव दिया जैसे विधवा पेंशन, डिसेबल बच्चों की स्कूल फीस और मेडिकल इंश्योरेंस आदि।
- कमिटी ने गौर किया कि एनएसएपी के अंतर्गत दी जाने वाली पेंशन की राशि पर्याप्त नहीं है और इसे कंज्यूमर प्राइज इंडेक्स देखकर हर वर्ष बढ़ाए जाने की जरूरत है। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि केंद्र की सहायता के अलावा राज्यों को भी कम से कम केंद्र की तरफ से दी जाने वाली राशि के बराबर राशि देनी चाहिए।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र और राज्य सरकारों की सभी योजनाओं में सुधार के लिए एसईसीसी डेटा का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि सही लोगों तक उनका लाभ पहुंच सके। इससे भ्रष्टाचार रुकने से योजना का अधिक से अधिक लाभ पहुंचेगा।