स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- श्रम संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. किरीट सोमैय्या) ने 17 दिसंबर, 2018 को ‘टीवी/ब्रॉडकास्टिंग/डिजिटल इंटरटेनमेंट/विज्ञापन उद्योग से जुड़े वर्कर्स की सुरक्षा और हित’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने कहा कि हाल के वर्षों में टेलीविजन और डिजिटल इंटरटेनमेंट के क्षेत्र में उच्च स्तरीय वृद्धि हुई है। हालांकि इस उद्योग से जुड़े वर्कर्स मौजूदा श्रम कानूनों के सुरक्षित दायरे में नहीं आते।
- कवरेज: सिने-वर्कर्स और सिनेमा थियेटर वर्कर्स (रोजगार का रेगुलेशन) एक्ट, 1981 के अंतर्गत कुछ विशिष्ट सिने-वर्कर्स और सिनेमा थियेटर वर्कर्स के रोजगार की शर्तों को रेगुलेट किया जाता है। कमिटी ने कहा कि एक्ट में टेलीविजन/ब्रॉडकास्टिंग/डिजिटल इंटरटेनमेंट उद्योग (‘उद्योग’) के वर्कर्स शामिल नहीं हैं। कमिटी ने कहा कि इससे इन उद्योगों में काम करने वाले लोगों की स्थिति नाजुक हो जाती है। चूंकि कम वेतन वाले कलाकारों और तकनीशियनों के रोजगार की शर्तों और नियमों, उनके वेतन और दूसरी सुविधाओं के संबंध में श्रम कानूनों में कोई विशेष सुरक्षात्मक उपाय मौजूद नहीं हैं।
- कमिटी ने कहा कि श्रम एवं रोजगार मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण (आईएंडबी) मंत्रालय के बीच यह सहमति बनी है कि इस उद्योग के वर्कर्स को एक्ट में शामिल किया जाना चाहिए। इसलिए यह सुझाव दिया गया कि इन वर्कर्स को शामिल करने के लिए एक्ट में संशोधन किया जाना चाहिए।
- पारिश्रमिक में बढ़ोतरी: कमिटी ने गौर किया कि सिने वर्कर्स के पारिश्रमिक को 8,000 प्रति माह तक, या एक लाख रुपए तक बढ़ा दिया गया है, जोकि एकमुश्त या किस्तों में दिया जाता है। हालांकि कमिटी की यह राय थी कि यह राशि बहुत कम है। उसने सुझाव दिया कि अगर पारिश्रमिक को एकमुश्त या किस्तों में दिया जाना है तो उसे 16,000 रुपए प्रति माह या दो लाख रुपए पर संशोधित किया जाए।
- निगरानी और रेगुलेशन: कमिटी ने गौर किया कि केंद्र सरकार ने एक्ट के अंतर्गत सभी अधिकार राज्य सरकार को हस्तांतरित कर दिए हैं, सिवाय नियम बनाने के अधिकार के। हालांकि कमिटी ने कहा कि श्रम एवं रोजगार मंत्रालय इस एक्ट के अंतर्गत नोडल मंत्रालय है और उसे राज्य सरकारों जैसे सभी स्टेकहोल्डर्स के सहयोग से एक्ट का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करना चाहिए। कमिटी ने सुझाव दिया कि श्रम एवं रोजगार मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को संयुक्त रूप से एक्ट का उचित कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए नियत समय में रेगुलेटरी तंत्र तैयार करना चाहिए।
- वर्कर्स का राष्ट्र व्यापी सर्वे: कमिटी ने कहा कि उद्योग के अधिकतर वर्कर्स ‘पीस रेट बेसिस’ पर काम करते हैं। इससे उन्हें चिन्हित करने में समस्याएं आती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि श्रम एवं रोजगार मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को संयुक्त रूप से इन वर्कर्स का राष्ट्र व्यापी सर्वे करना चाहिए।
- खराब इंफ्रास्ट्रक्चर: कमिटी ने कहा कि नागरिक सुविधाओं के हिसाब से स्टूडियोज़ की स्थिति बहुत खराब थी। उसने सुझाव दिया कि श्रम एवं रोजगार मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को स्टूडियोज़ को वैधानिक मंजूरी देने वाली एजेंसियों के साथ काम करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो कि स्टूडियोज़ का इंफ्रास्ट्रक्चर एकदम दुरुस्त है। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि इस उद्योग में सभी लोगों की सुरक्षा और हित का पूरा ध्यान रखा जाता है।
- महिला वर्कर्स की सुरक्षा: कमिटी ने कहा कि एक्ट में महिला वर्कर्स की सुरक्षा से संबंधित विशिष्ट प्रावधान नहीं हैं। उसने सुझाव दिया कि श्रम एवं रोजगार मंत्रालय को महिला वर्कर्स के लिए जल्द से जल्द विशिष्ट सुरक्षात्मक उपाय करने चाहिए और ऐसे कड़े कानूनी प्रावधान करने चाहिए जोकि निवारण का काम करें।
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