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पीडीएफ

त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम की समीक्षा

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश

  • जल संसाधन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर : हुकुम सिंह) ने 16 मार्च, 2017 को ‘त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एसेलेरेटेड इरिगेशन बेनेफिट्स प्रोग्राम-एआईबीपी) की समीक्षा’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। एआईबीपी का उद्देश्य चालू सिंचाई परियोजनाओं को तेज गति से पूरा करना और सभी खेतों को सुरक्षित सिंचाई के किसी न किसी साधन की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है। यह कार्यक्रम जल संसाधन मंत्रालय द्वारा लागू किया जाता है। कमिटी के प्रमुख निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं :
     
  • एआईबीपी में संशोधन : 1996 से अब तक एआईबीपी को लागू करने से संबंधित दिशानिर्देशों में सात बार संशोधन किया गया है। योजना के विस्तार, कवरेज और फंडिंग के संबंध में ये परिवर्तन किए गए हैं। कमिटी ने गौर किया कि दिशानिर्देशों को बार-बार बदलने से कार्यक्रम को लागू करने का काम प्रभावित हुआ और इससे यह भी स्पष्ट हुआ है कि कार्यक्रम को बनाने में अदूरदर्शिता बरती गई है। कमिटी ने यह सुझाव दिया कि अगर एआईबीपी को लंबी अवधि के परिप्रेक्ष्य में तैयार किया जाएगा तो भविष्य में बार-बार संशोधन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
     
  • कमांड क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन योजना : योजना का उद्देश्य ऐसी प्रणालियों को विकसित करना है जिनके जरिए खेतों तक सिंचाई का पानी पर्याप्त मात्रा में पहुंचाया जा सके। कमिटी ने टिप्पणी की कि कमांड क्षेत्र विकास और जल प्रबंधन योजना के तहत 2012-15 के बीच के लक्ष्य अपेक्षा के अनुसार पूरे नहीं किए जा सके। 2016-17 में फंड जारी करने में हुई देरी के कारण नाबार्ड ने कमांड क्षेत्र के विकास कार्य के लिए एक लोन मंजूर किया था।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को कार्यक्रम को किए जाने वाले आबंटन में कमी नहीं करनी चाहिए क्योंकि इसके परिणामस्वरूप लोन लेना पड़ता है, और कार्यक्रम को समय पर और उचित तरीके से लागू करना सुनिश्चित करना चाहिए।
     
  • जल स्रोतों की मरम्मत, नवीकरण और पुनरुद्धार : जल संसाधन मंत्रालय के पास देश के जल स्रोतों की पूरी जानकारी नहीं है। जल स्रोतों की जानकारियों, जैसे कुल संख्या, सिकुड़ने की स्थिति (सूखे हैं या लुप्त) और कैचमेंट क्षेत्र के बढ़ने या घटने के कारण भूमि के उपयोग में परिवर्तन, का डॉक्यूमेंटेशन नहीं किया गया है। इसके अतिरिक्त लघु सिंचाई गणना (सतही और भूजल सिंचाई संरचनाएं) में केवल ग्रामीण क्षेत्रों के जल स्रोतों को शामिल किया जाता है।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि जल स्रोतों और उनकी स्थिति के निष्पक्ष आकलन के लिए एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाया जाना चाहिए जिसमें सभी राज्यों की जानकारियां शामिल की जाएं। इसके लिए एक निश्चित समयावधि में जल स्रोतों की गणना की जानी चाहिए।
     
  • फंड्स की व्यवस्था : कार्यक्रम के तहत 149 चालू परियोजनाओं में से 99 को प्राथमिकता के आधार पर 2019 तक पूरा किया जाएगा। कमिटी ने टिप्पणी की कि परियोजनाओं की धीमी गति के कारण समय भी अधिक लगता है और लागत भी बढ़ जाती है। इसका कारण मुख्य रूप से यह होता है कि फंड्स का डायवर्जन और दुरुपयोग होता है और युटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स को सौंपने में विलंब होता है।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिए ताकि फंड्स लैप्स न हों जिसके कारण और विलंब होता है और समय और लागत की बचत के उपाय किए जा सकें।
     
  • इरिगेशन पोटेंशियल क्रिएटेड और यूटिलाइज्ड के बीच अंतर : कमिटी ने इरिगेशन पोटेंशियल क्रिएटेड (सिंचाई संभाव्यता का सृजन) और इरिगेशन पोटेंशियल यूटिलाइज्ड (सिंचाई संभाव्यता के उपयोग) के बीच 240 लाख हेक्टेयर का बड़ा अंतर पाया। इसके अतिरिक्त मंत्रालय को सिंचाई संभाव्यता के सृजन के प्रारंभिक लक्ष्यों और प्रत्येक परियोजना के लिए उसके उपयोग से जुड़े आंकड़े भी एक स्थान पर नहीं मिले।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को न केवल सिंचाई संभाव्यता का अधिक सृजन करने के लिए रणनीतियां बनानी और कदम उठाने चाहिए बल्कि यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि सृजित की गई संभाव्यता का उचित उपयोग किया जा सके। इसके अतिरिक्त मंत्रालय को इस संबंध में भी आंकड़ों के बीच सामंजस्य बनाना चाहिए कि परियोजना की शुरुआत में सिंचाई की क्या संभाव्यता थी, उसमें वास्तविक प्रगति कितनी हुई है और लक्षित, सृजित एवं उपयोग की गई सिंचाई संभाव्यता के बीच कितना अंतर है।
     
  • निगरानी तंत्र : केंद्रीय सहायता प्राप्त सभी परियोजनाओं की निगरानी का काम केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) करता है। कमिटी ने टिप्पणी दी कि एआईबीपी के तहत केंद्रीय सहायता प्राप्त योजनाओं की संख्या बहुत अधिक है और सीडब्ल्यूसी में उपलब्ध कर्मचारियों की संख्या कम है। इसके अतिरिक्त सीडब्ल्यूसी के अधिकारियों के निगरानी दौरों की संख्या भी 2012-13 में 163 से घटकर 2014-15 में 56 हो गई।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को निगरानी संबंधी दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना चाहिए। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय कार्यालयों और कर्मचारियो की संख्या बढ़ाने के प्रयास भी किए जाने चाहिए जिससे योजनाओं की निगरानी प्रभावी तरीके से की जा सके।

 

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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