रिपोर्ट का सारांश
- प्राक्कलन समिति (कमिटी ऑन एस्टिमेट्स) (चेयरपर्सन : डॉ. मुरली मनोहर जोशी) ने 21 दिसंबर, 2017 को ‘देश में मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।
- स्वास्थ्य पर कुल व्यय : कमिटी ने गौर किया कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में निजी डॉक्टर बड़े पैमाने पर इलाज कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त ब्रिक्स देशों- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका- में भारत ऐसे देश के रूप में उभरा है जहां स्वास्थ्य पर लोग सबसे अधिक अपनी जेब से (आउट ऑफ पॉकेट एक्सपेंस) खर्च करते हैं। इससे समाज के गरीब तबके और अधिक दरिद्र हो जाते हैं।
- कमिटी ने कहा कि पिछले वर्षों के दौरान स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा व्यय में बढ़ोतरी की गई है। हालांकि कमिटी ने कहा कि फंड्स का पूरा उपयोग नहीं किया गया और राज्यों को कुल जितनी राशि आबंटित की गई, उससे कम मात्रा में राशि जारी की गई। कमिटी ने उल्लेख किया कि उदाहरण के लिए 13 वें वित्त आयोग के सुझावों के अनुसार 15 राज्यों को आबंटित 2,539 करोड़ रुपयों में से इन राज्यों को केवल 1,757 करोड़ रुपए जारी किए गए। कमिटी ने यह भी कहा कि 14 वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को केंद्रीय अनुदान रोकने से देश के गरीब और पिछड़े क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बिगड़ सकती है। कमिटी ने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र के आबंटन को बढ़ाने के अतिरिक्त केंद्र और राज्य सरकारों की विभिन्न योजनाओं की क्षमता भी बढ़ाई जाए जिससे वे फंड्स का अधिकाधिक उपयोग कर सकें।
- आयुर्वेद, योग एवं नेचुरोपैथी, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) मंत्रालय की कार्य पद्धति : कमिटी ने गौर किया कि पिछले तीन वर्षों के दौरान आयुष मंत्रालय के बजटीय आबंटनों में संशोधित अनुमानों के चरण में ही जबरदस्त कटौती कर दी गई। इसके अतिरिक्त आबंटित राशि का भी पूरी तरह उपयोग नहीं किया गया। फंड्स को पूरी तरह से उपयोग न करने के कारणों में लंबित यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट्स, पिछले वर्ष की खर्च न होने वाली बकाया राशि, पर्याप्त प्रस्ताव प्राप्त न होना, इत्यादि शामिल हैं। इस संबंध में कमिटी चाहती है कि आयुष मंत्रालय आयुष चिकित्सा प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिए अतिरिक्त राशि की मांग करने के साथ-साथ आबंटित राशि के उपयोग पर निगरानी भी रखे।
- कमिटी ने आयुष चिकित्सा प्रणाली की कार्य पद्धति से संबंधित अन्य मुद्दों को भी उठाया, जोकि निम्नलिखित हैं: (i) आयुष चिकित्सकों का विषम जनसंख्या अनुपात (प्रति करोड़ जनसंख्या पर 5,778 आयुष फिजिशियंस उपलब्ध हैं), (ii) हालांकि आयुर्वेद और होम्योपैथी प्रणालियां तुलनात्मक रूप से अच्छी तरह से स्थापित हैं, यूनानी और सिद्ध शोध और लोकप्रियता के लिहाज से पिछड़ गई हैं, (iii) आयुष में उच्च शिक्षा के राष्ट्रीय संस्थानों की कम संख्या और (iv) सरकारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में बड़े पैमाने पर आयुष फिजिशियंस को कॉन्ट्रैक्ट पर रखना।
- मेडिकल प्रैक्टीशनर्स की कमी : कमिटी ने विभिन्न राज्यों में डॉक्टरों की कमी पर टिप्पणी की और कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस संबंध में कोई अध्ययन नहीं किया है। उदाहरण के लिए सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के एक तिहाई पद खाली हैं। कमिटी ने कहा कि मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए विभिन्न कॉलेजों में पोस्ट ग्रैजुएट सीटों की संख्या बढ़ाए जाने की तत्काल जरूरत है लेकिन इस बात का ध्यान रखना होगा कि मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता से कोई समझौता न हो। यह भी कहा गया कि देश में नर्सों की भी अत्यधिक कमी है और नर्सिंग कॉलेजों को अधिक संख्या में स्थापित करने का सुझाव दिया गया। यह सुझाव भी दिया गया कि नर्सिंग के पाठ्यक्रमों को व्यापक बनाया जाए जिससे नर्सों को कुछ दवाओं के नुस्खे लिखने, एनेस्थीसिया देने इत्यादि का प्रशिक्षण दिया जा सके। कमिटी ने कहा कि इन कदमों से मेडिकल प्रैक्टीशनर्स की कमी को दूर करने में सहायता मिलेगी।
- मेडिकल कॉलेजों की स्थिति : कमिटी ने कहा कि डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए अधिक से अधिक मेडिकल कॉलेज स्थापित करने की तत्काल जरूरत है। कमिटी ने मेडिकल कॉलेजों से जुड़ी कुछ समस्याएं का उल्लेख किया: (i) अंडर ग्रैजुएट मेडिकल सीटों की तुलना में पोस्ट ग्रैजुएट सीटों की संख्या कम बढ़ाई गई है, (ii) अधिकतर मेडिकल कॉलेज (दो तिहाई) देश के दक्षिण और पश्चिमी हिस्सों में हैं, (iii) कुछ निजी मेडिकल कॉलेज दाखिले के लिए कैपिटेशन फीस वसूलते हैं, और (iv) मेडिकल कॉलेजों में फैकल्टी की कमी है। कमिटी ने अंडर ग्रैजुएट और पोस्ट ग्रैजुएट, दोनों पाठ्यक्रमों में अतिरिक्त सीटों का सुझाव दिया और कहा कि जिन जिलों में मेडिकल कॉलेज नहीं हैं, वहां स्थित जिला अस्पतालों का अपग्रेडेशन किया जाए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि भारतीय मेडिकल काउंसिल को फैकल्टी की नियुक्ति से संबंधित नियमों की समीक्षा करनी चाहिए और इसकी कमी को दूर करने के हल निकालने चाहिए।
- अस्पतालों का निर्माण : प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (पीएमएसएसवाई) के अंतर्गत सरकार चुने हुए राज्यों में नए एम्स स्थापित कर रही है और राज्य सरकार के मौजूदा मेडिकल कॉलेजों को अपग्रेड कर रही है। इस संबंध में कमिटी ने गौर किया कि पीएमएसएसवाई को प्रारंभ हुए एक दशक से भी अधिक समय बीत चुका है लेकिन योजना के अंतर्गत काम अब भी पूरा नहीं हुआ है। उदाहरण के लिए 6 नए एम्स में से 5 ने अभी काम करना शुरू नहीं किया है। कई नए एम्स में स्पेशलाइज्ड क्लिनिकल सर्विसेज नहीं हैं। ब्लड बैंक काम नहीं करते, इमरजेंसी या कैजुएल्टी सर्विसेज नहीं हैं, इत्यादि। कमिटी ने सुझाव दिया कि इन सभी नए एम्स में सभी अनिवार्य मेडिकल सेवाओं के संचालन का काम निश्चित समय पर पूरा किया जाना चाहिए।
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