स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- वाणिज्य संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: नरेश गुजराल) ने 6 अगस्त, 2018 को ‘व्यापार और उद्योग क्षेत्र पर बैंकिंग व्यवस्था के दुरुपयोग (मिसएप्रोप्रिएशन) का असर’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। आम तौर पर व्यापार के लिए उद्योग जगत भिन्न भिन्न उपायों के जरिए वित्त जुटाता है, जिनमें लेटर ऑफ क्रेडिट (एलसी), रिवॉल्विंग एलसी, लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू), लेटर ऑफ कम्फर्ट (एलओसी) इत्यादि शामिल हैं। कमिटी ने कहा कि हाल ही में बैंकिंग क्षेत्र में ऐसे दुरुपयोग के मामले सामने आए हैं जिनमें बड़े स्तर की धोखाधड़ी की गई है। परिणामस्वरूप भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने धोखाधड़ी, जिसका व्यापार और उद्योग क्षेत्र पर गहरा असर होता है, पर काबू पाने के लिए व्यापार वित्त पोषण से जुड़े विभिन्न कदम उठाए हैं। कमिटी के निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- एलओयू और एलओसी जारी करने पर रोक: आरबीआई ने बैंकों द्वारा एलओयू और एलओसी जारी करने पर रोक लगाई है जो मार्च 2018 से लागू है। कमिटी ने कहा कि विदेशी करंसी में सस्ते, छोटी अवधि के ऋण हासिल करने के लिए एलओयू और एलओसी एक प्रभावी माध्यम रहे हैं। इसके अतिरिक्त औद्योगिक संगठन और परिसंघ एलओयू या एलओसी को त्रुटिपूर्ण दस्तावेज नहीं मानते। यह कहा गया कि धोखाधड़ी के बाद आरबीआई द्वारा ऐसी रोक लगाना स्वाभाविक था। कमिटी ने एलओयू और एलओसी को उपयुक्त सुरक्षात्मक उपायों के साथ जल्द से जल्द बहाल करने का सुझाव दिया।
- एमएसएमई क्षेत्र पर असर: कमिटी ने कहा कि धोखाधड़ी और व्यवस्थागत दुरुपयोग ने बैंकों के पूंजीगत आधार को नुकसान पहुंचाया है और उनके नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स में बढ़ोतरी हुई है। परिणाम के तौर पर आरबीआई ने ऋण के प्रति अधिक सतर्क दृष्टिकोण अपनाया है। यह व्यापार और उद्योग क्षेत्र, मुख्य रूप से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए तकलीफदेह साबित हुआ है।
- कमिटी ने कहा कि बैंक उच्च क्रेडिट रेटिंग वाली फर्मो को रियायती दरों पर वित्त उपलब्ध कराते हैं। रेटिंग एजेंसियां प्रत्येक फर्म का मूल्यांकन एक समान आधार पर करते हैं, भले ही उनकी कार्य प्रकृति और आकार कैसा भी हो। इस व्यवस्था के कारण बहुत से एमएसएमईज़ आसानी से बैंकों से ऋण हासिल नहीं कर पाते। इस संबंध में कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों को रेटिंग के दौरान प्रत्येक उद्योग की विशिष्ट स्थानीय अनिश्चितताओं को ध्यान में रखना चाहिए, (ii) भारतीय सिक्योरिटी और एक्सचेंज बोर्ड (सेबी) को क्रेडिट रेटिंग को जारी करने से जुड़ी जरूरी कार्रवाई में शामिल किया जाना चाहिए, और (iii) बैंक अपने क्रेडिट एप्रेजल फ्रेमवर्क्स को मजबूत करें और इन-हाउस क्रेडिट रिस्क एप्रेजल्स करें।
- एमएसएमई की उधारियों पर प्रॉम्प्ट करेक्टिव ऐक्शन (पीसीए) का असर: कमिटी ने कहा कि पीसीए फ्रेमवर्क के अंतर्गत कमजोर और परेशान बैंकों का मूल्यांकन एवं निरीक्षण करने और सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए आरबीआई ने कुछ नियम लागू किए हैं। इन नियमों के चलते बैंकों पर कई तरह की रोक लगा दी गई है, जैसे रिस्क वाले ग्राहकों को उधार देना, नई बैंक शाखाएं खोलना, एक बैंक से दूसरे बैंक को उधारी देना, इत्यादि। आरबीआई ने पीसीए के अंतर्गत सार्वजनिक क्षेत्र के 11 बैंकों को रखा है। एमएसएमईज़ अधिकतर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से ऋण लेते हैं। पीसीए के कारण एमएसएमई क्षेत्र अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है। कमिटी ने आरबीआई को इस बात पर विचार करने का सुझाव दिया कि पीसीए के दायरे से एमएसएमईज़ को बाहर किया जाए ताकि उन्हें आसानी से ऋण मिल सकें।
- एलसी जारी करने के लिए कोलेट्रल की जरूरत: कमिटी ने कहा कि एलसी और बैंक गारंटी जारी करने के लिए बैंक 35% से 50% की क्रेडिट वैल्यू के कोलेट्रल की मांग करते हैं (जबकि इससे पहले 15% से 25% की क्रेडिट वैल्यू वाले कोलेट्रल मांगे जाते थे)। अधिक कोलेट्रल की मांग से कोलेट्रल के निर्माण के लिए फंड्स का डायवर्जन हो सकता है जिसका असर उद्योग की प्रतिस्पर्धा पर पड़ सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि आरबीआई को एलसी और बैंक गारंटी जारी करने के लिए कोलेट्रल की जरूरत के संबंध में स्पष्ट निर्देश देने चाहिए, विशेष रूप से एमएसएमईज़ के लिए।
- एम्बार्गो देशों के साथ व्यापार: कमिटी ने कहा कि बहुत से बैंक सीरिया, सूडान इत्यादि देशों के साथ लेनदेन नहीं करते क्योंकि उन पर संयुक्त राज्य अमेरिका या संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है। यह कहा गया कि हालांकि इन देशों से दवा और खाद्य पदार्थों के निर्यातों पर ऐसे प्रतिबंध लागू नहीं होते। कमिटी ने सुझाव दिया कि बैंकों को स्पष्ट दिशानिर्देश दिए जाने चाहिए ताकि ऐसे देशों के साथ इन क्षेत्रों में सुचारू रूप से व्यापार किया जा सके।
- एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (ईसीजीसी) द्वारा निर्यात क्रेडिट कवर: ईसीजीसी भारतीय निर्यातकों को खरीदार द्वारा भुगतान न करने के जोखिम के लिए निर्यात क्रेडिट बीमा प्रदान करता है। कमिटी ने कहा कि ईसीजीसी द्वारा निर्यातकों के दावों के भुगतान में देरी होती है। कॉरपोरेशन के पास 219 करोड़ रुपए के 94 दावे लंबित हैं। उसने सुझाव दिया कि ईसीजीसी को: (i) दावों का तेजी से निपटान करना चाहिए और (ii) दावों के निपटान के लिए समय सीमा तय करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि ईसीजीसी अब होल टर्नओवर पॉलिसी (डब्ल्यूटीपी) नहीं देता, जोकि रत्न और आभूषण उद्योग के निर्यातकों द्वारा लोन का भुगतान न करने पर बैंकों को सुरक्षा प्रदान करता है। परिणामस्वरूप उद्योग के निर्यातकों को ऊंचे प्रीमियम पर व्यक्तिगत पॉलिसी लेनी पड़ती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि ईसीजीसी को इस क्षेत्र के लिए डब्ल्यूटीपी को फिर से शुरू करना चाहिए जोकि देश के लिए सबसे अधिक विदेशी मुद्रा अर्जित करता है।
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