स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: राजीव रंजन सिंह) ने 3 फरवरी, 2022 को ‘अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के वित्तीय अवरोध’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- अक्षय ऊर्जा क्षेत्र की निवेश संबंधी जरूरतें: कमिटी ने कहा कि अक्षय ऊर्जा (आरई) क्षमता संवर्धन (कैपिसिटी एडिशन) के लिए अपेक्षित और वास्तविक निवेश में काफी अंतर है। 1.5-2 लाख करोड़ रुपए के अपेक्षित वार्षिक निवेश के विपरीत पिछले कुछ वर्षों में 75,000 करोड़ रुपए का वास्तविक वार्षिक निवेश किया गया था। कमिटी ने नवीन एवं अक्षय ऊर्जा मंत्रालय को निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) ग्रीन बॉन्ड्स और इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट्स जैसी वैकल्पिक वित्तीय प्रणालियों को तलाशे, और (ii) बैंक और वित्तीय संस्थान अपने निवेश का एक हिस्सा रीन्यूएबल फाइनांस ऑब्लिगेशन (रीन्यूएबल पर्चेज़ ऑब्लिगेशन की तरह) के जरिए आरई क्षेत्र में लगाएं, इस बात की संभावनाएं तलाशी जाएं।
- वित्तीय संस्थानों द्वारा ऋण देना: कमिटी ने गौर किया कि बैंकिंग क्षेत्र आरई प्रॉजेक्ट्स को वित्त पोषित करने का इच्छुक नहीं रहता। केंद्र सरकार अंतरराष्ट्रीय बाजार से बकाया ऋण पर गारंटी देने के लिए हर साल 1.2% तक गारंटी शुल्क लेती है, जिससे ऋण की लागत बढ़ जाती है। कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि उसे सार्वजनिक क्षेत्र के ऋणदाताओं, जैसे पीएफसी (पावर फाइनांस कॉरपोरेशन) और भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (आईआरडीईए) को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे आरई प्रॉजेक्ट्स को वित्त पोषित करें। इसके लिए उसे ऐसी नीतियां बनानी चाहिए जोकि फंड्स की लागत को कम करें। मंत्रालय को निम्नलिखित संभावनाओं को भी तलाशना चाहिए: (i) अंतरराष्ट्रीय बाजार से धनराशि जुटाने पर गारंटी शुल्क को चुकाने से पीएफसी, ग्रामीण बिजलीकरण निगम (आरईसी) और आईआरडीईए को छूट, या (ii) रियायती दर पर गारंटी शुल्क लेना।
- आईआरडीईए की ऋण क्षमता: भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (आईआरडीईए) एक सार्वजनिक क्षेत्र का संस्थान है जोकि आरई प्रॉजेक्ट्स को वित्त पोषित करता है। कमिटी ने कहा कि आईआरडीईए के निम्न कैपिटल बेस के कारण बड़े स्तर के प्रॉजेक्ट्स की ऋण क्षमता सीमित होती है। आरबीआई यह अपेक्षा करता है कि आईआरडीईए न्यूनतम 15% का कैपिटल एडेक्वेसी रेशो (सीआरएआर) (कुल जोखिम के मुकाबले बैंक की पूंजी की अनुपात) बरकरार रखे। आईआरडीईए का सीआरएआर 2014-15 में 23% से घटकर 2020-21 में 17% हो गया और इससे उसकी उधार क्षमता घट गई। कमिटी ने सुझाव दिया कि नाबार्ड जैसे अन्य संस्थानों की ही तरह आईआरडीईए को आरबीआई की तरफ से रेपो रेट पर ऋण के लिए स्पेशल विंडो मिलनी चाहिए ताकि निम्न लागत पर वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित हो।
- आरई क्षेत्र के लिए एनपीए के मानदंड: आरई की प्रकृति मौसमी है। इस वजह से जिस अवधि में बिजली का कम उत्पादन होता है, उस समय प्रॉजेक्ट्स अपना देय नहीं चुका पाते। परिणाम के तौर पर, एनपीए और एसेट वर्गीकरण पर आरबीआई के दिशानिर्देशों के कारण उन्हें नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) माना जाता है। 31 मार्च, 2021 तक पीएफसी के एनपीए का मूल्य 333 करोड़ रुपए था। कमिटी ने कहा कि आरई के वित्त पोषण के लिए नीतियां बनाते समय उसकी मौसमी प्रकृति पर विचार नहीं किया जाता। उसने मंत्रालय को सुझाव दिया कि (i) वह आरबीआई और वित्त मंत्रालय के साथ दिशानिर्देशों और रेगुलेशंस में रियायत के मुद्दे पर चर्चा कर सकता है, और (ii) वह बैंकों पर इस बात का जोर डाल सकता है कि वे आरई क्षेत्र को पीक सीजन में अधिक ईएमआई और ऑफ सीजन में कम ईएमआई पर ऋण उपलब्ध कराएं।
- टैरिफ पर दोबारा बातचीत और भुगतान में देरी: कमिटी ने कहा कि टैरिफ पर दोबारा बातचीत की कोशिश ने आरई प्रॉजेक्ट्स की फंडिंग को प्रभावित किया है। कुछ राज्यों ने टैरिफ को रद्द करने/उस पर दोबारा से बातचीत करने का रास्ता निकाला है, जो बाजार के विकास के शुरुआती चरणों के दौरान डिस्कवर किए गए थे, जब टैरिफ अधिक थे। कमिटी ने मंत्रालय को सुझाव दिया कि वह राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करे ताकि टैरिफ का एकतरफ कैंसिलेशन/उस पर दोबारा से बातचीत करने से बचा जा सके।
- कमिटी ने कहा कि वितरण कंपनियों (डिस्कॉम्स) से भुगतान में देरी के कारण आरई डेवलपर्स को राजस्व प्राप्ति में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए तेलंगाना के डेवलपर्स को 10 महीने से भी ज्यादा समय तक विलंब का सामना करना पड़ा है। कमिटी ने बिजली (देरी से भुगतान पर अधिभार) नियम, 2021 के उचित कार्यान्वयन का सुझाव दिया जिससे यह सुनिश्चित हो कि डिस्कॉम्स की तरफ से भुगतान में देरी होने पर डेवलपर्स को हर्जना मिले।
- टैरिफ पर मंजूरी में देरी: बिजली एक्ट, 2003 के अंतर्गत एसईआरसीज़ बिजली खरीद और उसकी कीमतों को रेगुलेट करते हैं। प्रतिस्पर्धी बोली द्वारा तय किए गए टैरिफ सीईआरसी/एसईआरसी द्वारा अपनाए जाते हैं। कमिटी ने कहा कि एसईआरसीज़ टैरिफ मंजूरी के आवेदनों को निपटाने में देरी करते हैं जिसके कारण डेवलपर्स को ऋणदाताओं द्वारा धनराशि के संवितरण में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस देरी की वजहों में से एक यह है कि राज्य सरकार एसईआरसीज़ में सदस्यों की नियुक्ति में देरी करती हैं। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) बिजली एक्ट के अंतर्गत एसईआरसीज़ द्वारा टैरिफ तय करने की एक अधिकतम समय सीमा निर्दिष्ट की जाए, और (ii) रिक्तियां होने के बाद एसईआरसीज़ के सदस्यों की नियुक्ति के लिए अधिकतम समय सीमा तय की जाए।
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