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पीडीएफ

आरबीआई द्वारा मौद्रिक नीति संरचना की समीक्षा

रिपोर्ट का सारांश

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने "मौद्रिक नीति संरचना की समीक्षा" पर सार्वजनिक प्रतिक्रिया के लिए एक चर्चा पत्र जारी किया है। टिप्पणियां 18 सितंबर, 2025 तक आमंत्रित हैं।

  • मई 2016 में आरबीआई एक्ट, 1934 में संशोधन करके एक लचीले मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण संरचना को अनिवार्य बनाया गया था। इसके तहत केंद्र सरकार आरबीआई की सलाह से हर पांच वर्ष में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित करती है। केंद्र सरकार खुदरा मुद्रास्फीति के लिए एक ऊपरी और एक निचला सहनशीलता स्तर भी निर्धारित करती है। इस संरचना के तहत लगातार तीन तिमाहियों तक सहनशीलता सीमा से बाहर रहने वाली मुद्रास्फीति को विफलता माना जाता है।

  • अगस्त 2016 में 2016-21 (पहली समीक्षा अवधि) के लिए 4% मुद्रास्फीति का लक्ष्य अधिसूचित किया गया था, जिसकी ऊपरी और निचली सहनशीलता सीमा क्रमशः 6% और 2% थी। मार्च 2021 में इन लक्ष्यों को मार्च 2026 (दूसरी समीक्षा अवधि) में समाप्त होने वाले अगले पांच वर्षों के लिए बरकरार रखा गया था। इन लक्ष्यों की समीक्षा मार्च 2026 के अंत तक होनी है। आरबीआई की प्रमुख टिप्पणियों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • मुद्रास्फीति-लक्ष्यीकरण संरचना का प्रदर्शन: संरचना को अपनाने से पहले (2012-16) चार वर्षों की अवधि में औसत मुद्रास्फीति 6.8% से घटकर 4.9% हो गई। पहली समीक्षा अवधि के दौरान तीन-चौथाई समय तक और दूसरी समीक्षा अवधि के दौरान दो-तिहाई समय तक समग्र (हेडलाइन) मुद्रास्फीति 2-6% के दायरे में रही। समग्र मुद्रास्फीति में खाद्य और ईंधन जैसे अस्थिर घटक शामिल होते हैं। दूसरी समीक्षा अवधि के दौरान कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण मुद्रास्फीति 6% से अधिक हो गई। अप्रैल 2012 और अप्रैल 2025 के बीच लगभग 94% समय तक समग्र मुद्रास्फीति का अपने दीर्घकालिक रुझान से विचलन ±2% के दायरे में रहा। मानक विचलन का उपयोग करके मापी गई समग्र मुद्रास्फीति में अस्थिरता 2012-16 के दौरान 2.3% से घटकर 2016 से 1.5% हो गई है।

  • लक्षित मुद्रास्फीति मानक: आरबीआई के अनुसार, यह दलील दी जाती है कि खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति की प्रकृति अस्थिर है, इसलिए समग्र मुद्रास्फीति को मानक लक्ष्य (टार्गेट मेज़र) के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति भी आपूर्ति संबंधी झटकों के कारण अस्थिर होती हैं, और इन पर मौद्रिक नीति का असर नहीं होता। हालांकि भारत में उपभोग की कुल मात्रा में खाद्य और ईंधन का हिस्सा 50% से भी ज्यादा है। आरबीआई ने यह भी माना कि इन वस्तुओं को शामिल न करने से नीतिगत पूर्वाग्रह पैदा हो सकते हैं और नीतिगत विश्वसनीयता कमजोर हो सकती है। इसके अलावा निरंतर खाद्य मुद्रास्फीति उच्च वेतन, किराए और फुटकर दाम के ज़रिए मूल मुद्रास्फीति (जिसमें खाद्य और ईंधन की कीमतें शामिल नहीं हैं) को प्रभावित कर सकती है। आरबीआई ने कहा कि मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण का पालन करने वाले सभी देश समग्र मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करते हैं। केवल युगांडा मूल मुद्रास्फीति को लक्षित करता है।

  • 4% के लक्ष्य को बरकरार रखना या संशोधित करना: अधिकांश विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति के लक्ष्य लगभग 2% और प्रमुख विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में 3-6% रहे हैं। आरबीआई ने कहा कि सर्वोत्कृष्ट समष्टि आर्थिक परिस्थितियों के लिए 4% वांछनीय मुद्रास्फीति दर है। उसने कहा कि लक्ष्य बढ़ाने को वैश्विक निवेशक संरचना के कमजोर पड़ने के रूप में देख सकते हैं, जिससे नीतिगत विश्वसनीयता कमजोर होती है।

  • सहनशीलता बैंड की उपयुक्तता: सहनशीलता बैंड, मूल्य स्थिरता के लक्ष्य से विचलित हुए बिना, मौद्रिक नीति संरचना में लचीलापन लाता है। आरबीआई ने कहा कि एक सख्त बैंड निर्धारित करने से मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता में सुधार होता है, हालांकि एक व्यापक बैंड नीति की विश्वसनीयता को कमजोर कर सकता है। उसने यह कहा कि सहनशीलता बैंड निर्धारित करते समय, मुद्रास्फीति की सीमा ऊपरी सहनशीलता स्तर के लिए मार्गदर्शक हो सकती है, जबकि वह दर जिससे नीचे मुद्रास्फीति उत्पादन को हतोत्साहित कर सकती है, निचले स्तर का निर्धारण कर सकती है। मुद्रास्फीति की सीमा वह दर है जिसके ऊपर उच्च मुद्रास्फीति से विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। कई विकासशील अर्थव्यवस्थाएं 1-1.5% के बैंड के साथ 3-4% मुद्रास्फीति लक्ष्य की ओर बढ़ रही हैं।

  • निश्चित लक्ष्य बनाम सीमा-आधारित लक्ष्यीकरण: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण का पालन करने वाले अधिकांश देशों में, सहनशीलता सीमा के साथ या उसके बिना, एक निश्चित लक्ष्य होता है। आरबीआई ने कहा कि सीमा लक्ष्यीकरण आर्थिक झटकों का सामना करने में लचीलापन प्रदान करता है। यह बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं के मद्देनजर परिदृश्यों के आधार पर सीमाएं निर्धारित करने की प्रवृत्ति के अनुरूप भी है। उसने कहा कि निश्चित से सीमा-आधारित लक्ष्यीकरण (4-6% या 3-6%) में संक्रमण करने से नीतिगत विश्वसनीयता कमज़ोर हो सकती है और यह राजकोषीय नीति अनुशासन को कम कर सकता है। 

 

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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