रिपोर्ट का सारांश
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2022 को आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 को पटल पर रखा। सर्वेक्षण की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
अर्थव्यवस्था की स्थिति
- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी): सर्वेक्षण में 2022-23 में 8-8.5% की वास्तविक वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। 2022-23 में वृद्धि को व्यापक वैक्सीन कवरेज, आपूर्ति क्षेत्र के सुधारों के लाभ, मजबूत निर्यात वृद्धि और पूंजीगत व्यय बढ़ाने के लिए वित्तीय लचीलेपन की उपलब्धता से मदद मिलने की उम्मीद है। 2020-21 में भारत की वास्तविक जीडीपी 7.3% सिकुड़ने के बाद इस वर्ष 9.2% बढ़ने का अनुमान है।
- मुद्रास्फीति: 2020-21 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति 6.2% थी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोविड-19 संबंधी प्रतिबंधों के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के कारण ऐसा हुआ था। 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में सीपीआई मुद्रास्फीति 5.2% थी जो 2020-21 में इसी अवधि के दौरान 6.6% की मुद्रास्फीति से कम है। यह गिरावट खाद्य स्फीति में नरमी के कारण आई है। 2021-22 (अप्रैल-दिसंबर) में मुद्रास्फीति अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल, पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों और उच्च करों से प्रभावित थी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि उन्नत और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं, दोनों में मुद्रास्फीति एक विश्वव्यापी समस्या के रूप में फिर से प्रकट हुई है।
- चालू खाता संतुलन: अप्रैल-सितंबर 2021 के दौरान भारत का चालू खाता 3.1 बिलियन USD के घाटे के साथ लुढ़क गया, जबकि 2020 में इसी अवधि में इसमें 34.3 बिलियन USD का अधिशेष हुआ था। ऐसा वस्तु व्यापार घाटे में वृद्धि के कारण हुआ था। यह अप्रैल-सितंबर 2019 में 22.6 बिलियन USD के चालू खाते घाटे से कम था। 2020-21 में भारत ने वस्तु निर्यात की तुलना में आयात में भारी गिरावट के कारण अप्रैल-सितंबर में चालू खाता अधिशेष दर्ज किया था।
- राजकोषीय घाटा: अप्रैल-नवंबर 2021 में राजकोषीय घाटा बजट अनुमान का 46.2% था, जबकि 2020 में इसी अवधि में यह 135.1% था। सर्वेक्षण में कहा गया है कि चालू वर्ष के लिए राजकोषीय घाटा अधिक यथार्थवादी था क्योंकि इसमें बजट आबंटन में कई बजटेतर मदों में शामिल किया गया है जैसे खाद्य सब्सिडी का भुगतान। अप्रैल-नवंबर 2021 में राजस्व घाटा बजट अनुमान का 38.8% था।
- ऋण: केंद्र सरकार का ऋण 2019-20 में जीडीपी के 49.1% से बढ़कर 2020-21 में जीडीपी का 59.3% हो गया। इसका कारण कोविड-19 के कारण उधारियों का बढ़ना है। आर्थिक बहाली के साथ केंद्र सरकार के कर्ज के कम होने की उम्मीद है। केंद्र सरकार की कुल देनदारियों में भारत के समेकित कोष (सार्वजनिक ऋण) से लिए गए ऋण और सार्वजनिक खाते की देनदारियां शामिल हैं। मार्च 2021 के अंत में केंद्र सरकार की कुल बकाया देनदारी 117 लाख करोड़ रुपए थी। सार्वजनिक ऋण कुल देनदारियों का 89.9% है।
कृषि और संबद्ध गतिविधियां
- कृषि क्षेत्र में पिछले दो वर्षों से उत्साहजनक वृद्धि दर्ज की गई है। 2020-21 में इस क्षेत्र में 3.6% की वृद्धि हुई और 2021-22 में इसमें 3.9% की वृद्धि की उम्मीद है। पशुधन, डेयरी और मत्स्य पालन सहित संबद्ध क्षेत्रों में वृद्धि ने इस क्षेत्र में समग्र विकास को प्रेरित किया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था के कुल सांकेतिक सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी की दीर्घकालीन प्रवृत्ति लगभग 18% की है। यह 2020-21 में 20.2% और फिर 2021-22 में 18.8% हो गई।
- कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में उनके वास्तविक जीवीए की तुलना में सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) में उतार-चढ़ाव रहा है। इसने 2011-12 में 18.2% के उच्च स्तर को छुआ और 2019-20 में गिरकर 15.9% हो गया। सार्वजनिक निवेश स्थिर रहा है (2.4%-2.9% के बीच) जबकि निजी निवेश में उतार-चढ़ाव आया है। सर्वेक्षण में सुझाव दिया गया है कि इस क्षेत्र में उच्च सार्वजनिक और निजी निवेश सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रित और लक्षित दृष्टिकोण होना चाहिए।
- तिलहन, दलहन और बागवानी में फसल विविधीकरण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इसके लिए सिंचाई, निवेश, ऋण और उनकी पैदावार के लिए बाजार से जुड़ी समस्यों को भी हल करने की जरूरत है। उच्च कीमत और कम पानी की खपत वाली फसलों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारों को समन्वित कार्रवाई करनी चाहिए। नैनो यूरिया और जैविक खाद जैसे वैकल्पिक उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। ये उर्वरक मिट्टी की रक्षा करते हैं, अधिक उत्पादक होते हैं और उच्च पोषक तत्व की उपयोग दक्षता में योगदान करते हैं।
उद्योग और इंफ्रास्ट्रक्चर
- 2020-21 में 7% के संकुचन के मुकाबले 2021-22 में औद्योगिक क्षेत्र के 11.8% बढ़ने का अनुमान है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि एफडीआई प्रवाह में तेजी और व्यापार की भावना में सुधार उद्योग के लिए सकारात्मक नजरिये का संकेत हैं। पिछले एक दशक में सांकेतिक जीवीए में मैन्यूफैक्चरिंग की औसत हिस्सेदारी 16.3% थी। यह 2020-21 में घटकर 14.4% हो गई, लेकिन 2021-22 में इसमें 15.3% तक के सुधार की उम्मीद है। 2021-22 में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में 2020-21 में 7.2% के संकुचन के बाद 12.5% की वृद्धि की उम्मीद है।
- 2020-21 में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में 8.4% का संकुचन आया जोकि औद्योगिक क्षेत्र पर महामारी के प्रभाव को दर्शाता है। आईआईपी औद्योगिक प्रदर्शन का एक पैमाना है जिसमें मैन्यूफैक्चरिंग का 78%, खनन का 14% और बिजली का 8% वेटेज है। अप्रैल-नवंबर 2021-22 के दौरान आईआईपी 17.4% की दर से बढ़ा, जबकि 2020-21 की इसी अवधि के दौरान 15.3% का संकुचन हुआ था। भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा कॉरपोरेट प्रदर्शन पर किए गए अध्ययनों के अनुसार, महामारी के बावजूद 2021-22 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में बड़े कॉरपोरेट्स का शुद्ध लाभ बिक्री अनुपात 10.6% के स्तर पर पहुंच गया।
- सकल स्थायी पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) अर्थव्यवस्था में निवेश की स्थिति को दर्शाता है। 2019-20 के दौरान कुल जीएफसीएफ (मौजूदा कीमतों पर) में औद्योगिक क्षेत्र की हिस्सेदारी 30.1% थी। यह 2018-19 में 31% की तुलना में थोड़ा कम था। 2018-19 में कुल और औद्योगिक जीएफसीएफ (स्थिर कीमतों पर) में क्रमशः 9.9% और 12.4% की वृद्धि हुई। 2019-20 में सकल जीएफसीएफ की वृद्धि दर घटकर 5.4% हो गई, जबकि औद्योगिक जीएफसीएफ की वृद्धि दर घटकर 3.7% रह गई।
- भारत ने 2020-21 में 82 बिलियन USD का अपना अब तक का सबसे अधिक वार्षिक एफडीआई प्रवाह दर्ज किया। 2014-21 के बीच भारत को 440 बिलियन USD का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हासिल हुआ।
सेवा क्षेत्र
- सेवा क्षेत्र ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 50% से अधिक का योगदान दिया। इसमें 2020-21 में 8.4% की कमी आई और 2021-22 में इसके 8.2% बढ़ने का अनुमान है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि सेवा क्षेत्र कोविड-19 महामारी से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। भारत के जीवीए में इसकी हिस्सेदारी 2019-20 में 55% से घटकर 2021-22 में 53% हो गई।
- भारत के अधिकतर स्टार्टअप्स इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी/नॉलेज बेस्ड क्षेत्र में हैं। बौद्धिक संपदा और पेटेंट इस नॉलेज बेस्ड अर्थव्यवस्था की कुंजी हैं। भारत में फाइल होने वाले पेटेंट्स की संख्या 2010-11 में 39,400 से बढ़कर 2020-21 में 58,502 हो गई है। इसी अवधि के दौरान दिए गए पेटेंट 7,509 से बढ़कर 28,391 हो गए हैं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि चीन, यूएसए, जापान और कोरिया की तुलना में भारत में दिए गए पेटेंट की संख्या बहुत कम है। भारत में अपेक्षाकृत कम पेटेंट्स का एक कारण अनुसंधान और विकास पर कम खर्च है जो 2020 में सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% था। प्रक्रियात्मक देरी और जटिल प्रक्रियाओं के कारण भी भारत में पेटेंट्स की संख्या कम है। 2020 में भारत में पेटेंट संबंधी अंतिम फैसले लेने में औसतन 42 महीने लगते थे। इसकी तुलना में यूएसए में इसमें 20.8 महीने और चीन में 20 महीने लगते थे।
रोजगार
- कोविड-19 के प्रकोप से पहले श्रम बल भागीदारी दर में शहरी श्रमशक्ति के हिस्से में सुधार के संकेत मिल रहे थे। मार्च 2020 के अंत में लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन ने शहरी श्रम बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में शहरी क्षेत्र के लिए बेरोजगारी दर (वर्तमान साप्ताहिक स्थिति से मापी गई) बढ़कर 20.8% हो गई। आर्थिक बहाली के साथ 2020-21 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में बेरोजगारी दर घटकर 9.3% हो गई।
- सर्वेक्षण में कहा गया है कि कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के नवीनतम पेरोल डेटा में रोजगार बाजार की औपचारिकता में तेजी के संकेत मिलते हैं। इसकी वजह नई औपचारिक नौकरियां और मौजूदा नौकरियों का औपचारीकरण है। नवंबर 2021 में ईपीएफ सबस्क्राइबर्स में 13.95 लाख की शुद्ध बढ़ोतरी हुई है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के अंतर्गत काम की मांग के डेटा बताते हैं: (i) 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान मनरेगा रोजगार चरम पर था, (ii) कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद मनरेगा की मांग स्थिर हो गई है, और (iii) कुल मनरेगा रोजगार महामारी पूर्व स्तर से अधिक है। कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान जून 2021 में मनरेगा की मांग 4.59 करोड़ व्यक्तियों के अधिकतम स्तर पर पहुंच गई थी।
शिक्षा
- सर्वेक्षण ने वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) के आंकड़ों का हवाला दिया है जिसमें पाया गया कि महामारी के दौरान 6-14 वर्ष की आयु के बच्चे, जो वर्तमान में स्कूलों में दाखिल नहीं हैं, 2018 में 2.5% से बढ़कर 2021 में 4.6% हो गए। 7-10 वर्ष के आयु वर्ग के बीच दाखिले में गिरावट अपेक्षाकृत अधिक थी।
- एएसईआर के अनुसार, महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे निजी स्कूलों से सरकारी स्कूलों में चले गए। ऐसा निम्नलिखित वजहों से हो सकता है (i) सस्ते निजी स्कूलों का बंद होना, (ii) माता-पिता की वित्तीय स्थिति का खराब होना, (iii) सरकारी स्कूलों में मुफ्त सुविधाएं, और (iv) परिवारों का गांवों की तरफ पलायन।
सतत विकास और जलवायु परिवर्तन
- 2070 तक शून्य उत्सर्जन हासिल करने की भारत की घोषणा के बाद जलवायु पहल पर अधिक जोर दिया गया है। भारत सहित विकासशील देश सफलतापूर्वक जलवायु संबंधी पहल कर सकें, इसके लिए जलवायु संबंधी वित्त पोषण महत्वपूर्ण रहेगा।
- नीति आयोग एसडीजी इंडिया इंडेक्स और डैशबोर्ड पर भारत का समग्र स्कोर 2019-20 में 60 से बढ़कर 2020-21 में 66 हो गया। भारत 2010 से 2020 के दौरान अपने वन क्षेत्र को बढ़ाने में विश्व स्तर पर तीसरे स्थान पर है। भारत का 24% भौगोलिक क्षेत्र वनों से ढंका हुआ है। 2011-2021 के दौरान मुख्य रूप से बहुत घने जंगलों में वृद्धि (इसी अवधि के दौरान 20% तक) के कारण भारत के वन क्षेत्र में 3% से अधिक की बढ़ोतरी हुई है । सर्वेक्षण में कहा गया है कि आगे चलकर वन और वृक्षों के आवरण में और सुधार करने की आवश्यकता है। सामाजिक वानिकी भी इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- भूजल निकासी की सीमा देश भर में भिन्न होती है। 2004-2020 के दौरान ऐसी भूजल मूल्यांकन इकाइयां 2009 में 73% से घटकर 2020 में 64% हो गईं जिन्हें सुरक्षित (70% से कम निकासी) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। अर्ध संकटग्रस्त इकाइयां (70% और 90% के बीच निकासी) 2009 में 9% से बढ़कर 2020 में 15% हो गईं। राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अपने भूजल संसाधनों के रीचार्ज में सुधार करके तथा उसके दोहन को रोककर, उनके प्रबंधन में सुधार करना चाहिए।
अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च (पीआरएस) के नाम उल्लेख के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।