रिपोर्ट का सारांश
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2023 को आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 को संसद के पटल पर रखा। सर्वेक्षण की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
अर्थव्यवस्था की स्थिति
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सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी): सर्वेक्षण में 2023-24 में 6.5% की वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि का अनुमान लगाया गया है। यह कहा गया है कि वास्तविक वृद्धि दर 6-6.8% की सीमा में रहेगी जोकि विश्व स्तर पर आर्थिक और राजनैतिक विकास के घटनाक्रमों पर आधारित होगी। घरेलू मांग के समर्थन और निवेश में वृद्धि से आने वाले वर्ष में प्रगति होगी। हालांकि, दुनिया भर के घटनाक्रमों, जैसे कि केंद्रीय बैंकों द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखला में लंबे समय तक तनाव और भू-राजनीतिक संघर्ष, आर्थिक विकास के लिए जोखिम पैदा करते हैं। 2022-23 में जीडीपी वास्तविक रूप से 7% बढ़ने का अनुमान है।
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मुद्रास्फीति: 2022-23 में खुदरा मुद्रास्फीति 6.8% अनुमानित है जो 2021-22 से अधिक है (5.5%)। दिसंबर 2022 में 5.7% तक गिरावट से पहले अप्रैल 2022 के महीने में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 7.8% हो गई थी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि अंतरराष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और खाद्य मुद्रास्फीति (मुख्य रूप से सब्जी, अनाज और खाद्य तेल की कीमतों) के कारण खुदरा मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी हुई थी। 2022-23 में व्यवसायों और परिवारों की मुद्रास्फीति संबंधी अपेक्षाएं कम हुई हैं। सर्वेक्षण में उम्मीद जताई गई है कि कम आर्थिक अनिश्चितताओं के कारण 2022-23 की तुलना में 2023-24 में मुद्रास्फीति कम रहेगी। हालांकि चीन में कोविड-19 के फिर से उभरने के कारण आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान, जैसी विश्वव्यापी घटनाओं के चलते भारत की घरेलू मुद्रास्फीति के लिए जोखिम पैदा हो सकता है।
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चालू खाता संतुलन: 2022-23 की दूसरी तिमाही में भारत ने 36.4 बिलियन USD का चालू खाता घाटा दर्ज किया (जीडीपी का 4.4%), जबकि 2021-22 की दूसरी तिमाही में 9.7 बिलियन USD का घाटा दर्ज हुआ था (जीडीपी का 1.3%)। अप्रैल-सितंबर 2022 के दौरान भारत ने जीडीपी का 3.3% चालू खाता घाटा दर्ज किया था जिसका कारण वस्तु व्यापार घाटे में वृद्धि है। सर्वेक्षण में पाया गया है कि चालू खाता घाटे पर बारीकी से निगरानी की जरूरत है। तेल की कीमतों में तीव्र वृद्धि और विदेशों में ब्याज दरों में बढ़ोतरी के नतीजतन विदेशी पोर्टफोलियो निवेश बहिर्वाह (आउटफ्लो) के कारण 2022 में भारत के भुगतान संतुलन पर दबाव पड़ा। वैश्विक विकास से संबंधित अनिश्चितताओं से भारत का निर्यात प्रभावित हो सकता है। हालांकि सेवाओं के निर्यात और रेमिटेंस (भेजे गए रुपए) में अधिशेष के कारण चालू खाता घाटे को काबू में रखा जा सकेगा।
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राजकोषीय घाटा: केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा 2020-21 में जीडीपी के 9.2% तक बढ़ने के बाद 2021-22 में जीडीपी के 6.7% पर आ गया। पिछले दो वर्षों में राजस्व संग्रह में तेजी ने राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद की है। सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि केंद्र सरकार 2022-23 के लिए अपने राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करने की राह पर है (जीडीपी का 6.4%)। 2022-23 में सामान्य सरकारी घाटा सकल घरेलू उत्पाद का 9.4% होने का अनुमान है जो 2021-22 से कम है (जीडीपी का 10.3%)।
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ऋण: केंद्र की कुल देनदारियों के 2020-21 में जीडीपी के 59.2% से घटकर 2021-22 में जीडीपी के 56.7% होने का अनुमान है। 2022-23 में सरकार की बकाया देनदारियां 86.5% रहने का अनुमान है। सर्वेक्षण के अनुसार, भारत का सार्वजनिक ऋण प्रोफ़ाइल अपेक्षाकृत स्थिर है। इसका अधिकांश भाग निवासियों के पास है और रुपए में अंकित है (कुल का 95.1%)। बाहरी ऋण पूरी तरह से आधिकारिक स्रोतों पर बकाया है जो इसे अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार में बदलाव से बचाता है। लगभग 98% ऋण निश्चित ब्याज दरों पर ग्रहण किया जाता है जो उसे ब्याज दरों में परिवर्तन से सुरक्षित रखता है। लंबे समय से नॉमिनल जीडीपी की वृद्धि दर ब्याज दरों से अधिक रही है। स्थिर आर्थिक विकास से ऋण समेकन में तेजी आएगी।
कृषि एवं संबंधित गतिविधियां
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भारत का कृषि क्षेत्र पिछले छह वर्षों के दौरान 4.6% की औसत वार्षिक दर से बढ़ा है। 2021-22 में इसमें 3% की वृद्धि हुई जो 2020-21 से कम है (3.3%)। 2021-22 में निर्यात 50.2 बिलियन USD के उच्चतम स्तर पर पहुंचने के साथ भारत कृषि उत्पादों के शुद्ध निर्यातक के रूप में भी उभरा है। इसका कारण किसान-उत्पादक संगठनों का प्रचार, फसल विविधीकरण और मशीनीकरण को प्रोत्साहन तथा कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के निर्माण के कारण हुआ। सर्वेक्षण में कहा गया है कि कृषि क्षेत्र में अब भी कुछ चुनौतियां हैं, जैसे जलवायु परिवर्तन, खंडित भूमि जोत, अपेक्षा से कम मशीनीकरण और कम उत्पादकता।
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खाद्यान्न और तिलहन के उत्पादन में वर्ष दर वर्ष बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि 2022 में हीटवेव के जल्दी आने से गेहू के उत्पादन में प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। भारतीय कृषि से संबंधित क्षेत्रों, जिसमें पशुपालन, वानिकी और पेड़ों की कटाई, तथा मत्स्य शामिल हैं, बेहतर कृषि आय के संभावित स्रोत बन रहे हैं।
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सर्वेक्षण में पाया गया कि संस्थागत कृषि ऋण में लगातार वृद्धि हुई है। 2021-22 में कृषि ऋण 16.5 लाख करोड़ रुपए के लक्ष्य से 13% अधिक था। 2022-23 के लिए कृषि ऋण का लक्ष्य 18.5 लाख करोड़ रुपए है।
उद्योग
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भारत की जीडीपी में उद्योगों का हिस्सा 31% है और इसमें 12.1 करोड़ से अधिक लोग कार्यरत हैं। 2022-23 में औद्योगिक क्षेत्र में 6.7% की वृद्धि का अनुमान है। चालू वित्त वर्ष में रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण इस क्षेत्र को आयात के लिए अधिक इनपुट लागत चुकानी पड़ी। महामारी के बाद की अवधि में केंद्र सरकार के पूंजीगत व्यय में वृद्धि ने निजी क्षेत्र को निवेश के लिए उकसाया है। इससे औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है। मांग के बढ़ने, निर्यात प्रोत्साहन और कॉरपोरेट बैलेंस शीट के मजबूत होने से इस क्षेत्र को मदद मिली है।
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इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग का महत्व बढ़ रहा है। भारत इलेक्ट्रॉनिक मैन्यूफैक्चरिंग में 300 बिलियन USD का लक्ष्य हासिल करना चाहता है, जिसमें 2025-26 तक 120 बिलियन USD मूल्य का निर्यात हो। दोनों मोर्चों पर उच्च विकास दर्शाता है कि भारत इन लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह पर है। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं से इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के घरेलू उत्पादन को बड़े पैमाने पर किफायतें मिलेंगी।
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कमोडिटीज़ की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में अस्थिरता और कच्चे माल की आपूर्ति में व्यवधान से औद्योगिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। चीन में कोविड-19 महामारी की स्थिति सामान्य होने पर कमोडिटी की मांग बढ़ सकती है और कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। हालांकि लचीली घरेलू मांग के आधार पर औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि जारी रहनी चाहिए।
सेवा क्षेत्र
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महामारी का अधिकतम दबाव झेलने के बाद सेवा क्षेत्र 2021-22 में तेजी से उबरा है। 2020-21 में 7.8% के संकुचन की तुलना में 2021-22 में सेवा क्षेत्र में 8.4% की वृद्धि हुई। 2022-23 में सेवा क्षेत्र के 9.1% की दर से बढ़ने का अनुमान है। संपर्क-गहन सेवा उप-क्षेत्र महामारी से पहले के स्तर पर वापस आ गया, जो कि मांग के बढ़ने, मोबिलिटी संबंधी प्रतिबंधों में ढील और टीकाकरण के सार्वभौमिक होने के कारण था। 2023-24 में विकास में इस क्षेत्र की अग्रणी भूमिका होने की संभावना है।
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सर्वेक्षण में गौर किया गया है कि महामारी ने लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया है कि वे अपना मकान खरीदें। प्रतिबंधों के कम होने के साथ, आवासीय हाउसिंग क्षेत्र में ब्याज बढ़ा था। कम ब्याज दरों के कारण बेहतर एफोर्डेबिलिटी, सर्किल दरों में कमी और अचल संपत्ति के लेनदेन पर स्टांप शुल्क में कटौती से रियल एस्टेट क्षेत्र के एक बार फिर से उछाल आया है। स्टील उत्पादों, लौह अयस्क और स्टील इंटरमीडियरीज़ पर आयात शुल्क कम करने के हालिया उपाय से आवासों की कीमतों में वृद्धि को रोकने में मदद मिलेगी।
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महामारी के बाद ई-कॉमर्स क्षेत्र की पैठ में तेज वृद्धि देखी गई। लॉकडाउन और मोबिलिटी संबंधी प्रतिबंधों ने उपभोक्ता के व्यवहार में बदलाव किया और ऑनलाइन खरीदारी को प्रोत्साहन दिया। एमएसएमई ने भी डिजिटल सॉल्यूशंस को तेजी से अपनाया है।
इंफ्रास्ट्रक्चर
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बुनियादी ढांचे में निवेश में वृद्धि से अर्थव्यवस्था के संभावित विकास को बल मिलता है। केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में बुनियादी ढांचे के विकास और निवेश को बढ़ावा दिया है, जब निजी क्षेत्र द्वारा पूंजीगत व्यय को कम कर दिया गया। 2022-23 में 7.5 लाख करोड़ रुपए के पूंजीगत व्यय का लक्ष्य रखा गया है जो 2021-22 की तुलना में 35.4% अधिक है।
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निवेश के स्तर को बरकरार रखने के लिए नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन (एनआईपी) ने 2019-20 और 2024-2025 के बीच लगभग 111 लाख करोड़ रुपए की निवेश योग्य परियोजनाओं का एक रोडमैप दिया है। वर्तमान में एनआईपी के तहत 8,964 परियोजनाएं कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं और इनमें 108 लाख करोड़ रुपए से अधिक का कुल निवेश किया गया है। इनमें से आधे से अधिक परियोजनाएं परिवहन क्षेत्र की हैं।
रोजगार
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श्रम बाजार ने शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड-19 से पहले के स्तर की रिकवरी हासिल कर ली है। बेरोजगारी दर 2018-19 में 5.8% से घटकर 2020-21 में 4.2% हो गई। 2018-19 में ग्रामीण महिला श्रम बल भागीदारी दर 19.7% से बढ़कर 2020-21 में 27.7% हो गई। शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर जुलाई-सितंबर 2019 में 8.3% से घटकर जुलाई-सितंबर 2022 में 7.2% हो गई।
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मनरेगा के तहत काम मांगने वाले व्यक्तियों की संख्या जुलाई-नवंबर 2022 के दौरान महामारी पूर्व की अवधि के स्तर के बराबर देखी गई थी। योजना के तहत काम की मासिक मांग में गिरावट से पता चलता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था सामान्य हो रही है। मनरेगा के तहत पूरे हुए कामों की संख्या में पिछले वर्षों के दौरान लगातार बढ़ोतरी हुई है। 2021-22 में पूरे होने वाले कामों की संख्या 85 लाख थी, और 2022-23 (9 जनवरी, 2023 तक) में 70.6 लाख। योजना के तहत व्यक्तिगत भूमि पर किए गए कामों में बढ़ोतरी हुई है, जैसे पशुओं के लिए शेड, खेत तलाई और बागवानी पौधरोपण में बढ़ोतरी हुई जिससे कृषि उत्पादकता और प्रति परिवार आय पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
बीमा एवं पेंशन
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भारत में बीमा की पैठ (बीमा पेनेट्रेशन) (जीडीपी के अनुपात में बीमा प्रीमियम) 2000 में 2.7% से बढ़कर 2021 में 4.2% हो गया। सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में जीवन बीमा की पैठ 2021 में 3.2% थी। हालांकि भारत में बेचे जाने वाले अधिकांश जीवन-बीमा उत्पाद बचत-लिंक्ड है और उनमें सुरक्षा घटक बहुत छोटा है। इसलिए प्राथमिक कमाऊ सदस्य की समय से पहले मृत्यु होने की स्थिति में परिवारों को जबरदस्त वित्तीय अभाव का सामना करना पड़ता है। सरकारी योजनाओं और वित्तीय समावेशन के कदमों के कारण सभी सेगमेंट्स में बीमा को अपनाने और पैठ बनाने में मदद मिली है। बीमा कंपनियों के लिए एफडीआई सीमा में वृद्धि और बीमा बाजार के डिजिटलीकरण से विकास को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
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जून 2015 में केंद्र सरकार ने वंचित समूहों और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए अटल पेंशन योजना (एपीवाई) की शुरुआत की। राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) और एपीवाई की शुरुआत के बाद से भारत के पेंशन क्षेत्र का विस्तार हुआ है। कुल जनसंख्या के हिस्से के रूप में एनपीएस और एपीवाई के तहत जनसंख्या का कवरेज 2016-17 में 1.2% से बढ़कर 2021-22 में 3.7% हो गया। सर्वेक्षण में कहा गया है कि भविष्य में प्रति व्यक्ति आय बढ़ने की उम्मीद के साथ, भारत के पेंशन क्षेत्र में विकास की महत्वपूर्ण गुंजाइश है।
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