रिपोर्ट का सारांश
- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने 29 जनवरी, 2021 को आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 को पटल पर रखा। सर्वेक्षण की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
- मार्च 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 को महामारी घोषित किया और वायरस की रोकथाम के लिए भारत में देशव्यापी लॉकडाउन किया गया। सर्वेक्षण में कहा गया है कि जल्द लॉकडाउन करने से महामारी को पीक पर पहुंचने में ज्यादा समय लगा और पीक का जोखिम कम हुआ। इससे मृत्यु दर कम हुई और आर्थिक गतिविधियों में तेज (वी-आकार वाली) रिकवरी देखने को मिली।
अर्थव्यवस्था की स्थिति
- सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी): सर्वेक्षण में 2021-22 में नॉमिनल जीडीपी वृद्धि 15.4% और रियल जीडीपी वृद्धि 11% रहने का अनुमान लगाया गया है। 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9% और दूसरी तिमाही में 7.5% की गिरावट हुई। कुल मिलाकर 2019-20 के दौरान जीडीपी में 4.2% की वृद्धि के विपरीत 2020-21 के दौरान जीडीपी में 7.7% की गिरावट का अनुमान है।
- मुद्रास्फीति: 2020-21 (अप्रैल-दिसंबर) में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति 6.6% थी। मुख्य रूप से खाद्य स्फीति के कारण मुद्रास्फीति 2019-20 में 6.7% से बढ़कर 2020-21 (अप्रैल-दिसंबर) में 9.1% हो गई।
- मौजूदा खाता अधिशेष: 2020-21 की पहली छमाही में मौजूदा खाता अधिशेष जीडीपी का 3.1% था। सर्वेक्षण में उम्मीद जताई गई है कि 2020-21 के अंत तक मौजूदा खाता अधिशेष जीडीपी का कम से कम 2% होगा। अगर यह लक्ष्य हासिल कर लिया गया तो यह मौजूदा खाता घाटा के 17 वर्ष के रुझान को तोड़ देगा। माल आयात में कमी और यात्रा सेवाओं पर निम्न व्यय के कारण यह अधिशेष हुआ है, चूंकि मौजूदा भुगतान में गिरावट (30.8%), प्राप्तियों में हुई गिरावट (15.1%) से अधिक है।
- राजकोषीय घाटा: नवंबर 2020 तक राजकोषीय घाटा बजट अनुमान का 135.1% था। इसकी तुलना में अप्रैल से नवंबर 2019 के बीच राजकोषीय घाटा बजट अनुमान का 114.8% था। सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोविड-19 के कारण उत्पन्न रुकावटों के कारण देश ने आर्थिक मुश्किलों का सामना किया।
कृषि और संबद्ध गतिविधियां
- 2020-21 में कृषि की वृद्धि दर 3.4% अनुमानित है। जहां सकल मूल्य संवर्धन (जीवीए) में कृषि क्षेत्र का योगदान 2014-15 और 2019-20 के बीच 18.3% से गिरकर 17.8% हो गया, वहीं 2020-21 में इसमें 19.9% की वृद्धि का अनुमान है। चूंकि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर गैर कृषि क्षेत्रों की तुलना में कृषि क्षेत्र को कम रुकावटों का सामना करना पड़ा।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा एक्ट, 2013 के अंतर्गत केंद्र सरकार सबसिडीयुक्त दरों पर (जिसे केंद्रीय निर्गम मूल्य (सीआईपी) कहा जाता है) चावल और गेहूं मुहैय्या कराती है। सीआईपी और बाजार भाव के बीच का फर्क ही खाद्य सबसिडी की मात्रा होता है। जबकि एक्ट के लागू होने के बाद से गेहूं और चावल की सीआईपी में संशोधन नहीं हुए, गेहूं की आर्थिक लागत 2013-14 में 1,908.32 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़कर 2020-21 में 2,683.84 रुपए प्रति क्विंटल हो गई (41% की वृद्धि)। इसके अतिरिक्त चावल की आर्थिक लागत 2013-14 में 2,615.51 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़कर 2020-21 में 3,723.76 रुपए प्रति क्विंटल हो गई (42% की वृद्धि)। सर्वेक्षण में कहा गया है कि खाद्य सबसिडी पर बढ़ते व्यय को कम करने के लिए सीआईपी में संशोधन किया जाए।
उद्योग और इंफ्रास्ट्रक्चर
- औद्योगिक क्षेत्र में 2020-21 के दौरान 9.6% की गिरावट का अनुमान है। क्षेत्र के भीतर सबसे अधिक गिरावट निर्माण (12.6%) और खनन (12.4%) में होने का अनुमान है। जीवीए में औद्योगिक क्षेत्र के योगदान में 2011-12 में 32.5% के मुकाबले 2020-21 में 25.8% की गिरावट हुई है।
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) वृद्धि में अप्रैल-नवंबर 2019 के दौरान 0.3% की बढ़ोतरी हुई थी लेकिन 2020 में इसी अवधि के दौरान इसमें 15.5% की गिरावट हुई। आईआईपी औद्योगिक प्रदर्शन का मापक होता है जिसमें मैन्यूफैक्चरिंग को 78%, खनन को 14% और बिजली को 8% वेटेज दिया जाता है। आईआईपी के 407 आइटम्स में से जिन आइटम्स में वृद्धि देखी गई, उनकी संख्या अप्रैल 2020 में जहां 28 थी, वहीं नवंबर 2020 में उनकी संख्या बढ़कर 171 हो गई। यह तीव्र आर्थिक बहाली का संकेत है।
- पांच वर्षों (2020-2025) के लिए 111 लाख करोड़ रुपए के निवेश की योजना के साथ नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन को शुरू किया गया। इस प्रॉजेक्ट का लक्ष्य वृद्धि, प्रतिस्पर्धा और रोजगार को बढ़ाना है। राज्य सरकारें, केंद्र सरकार और निजी क्षेत्र इस प्रॉजेक्ट में क्रमशः 40%, 39%, और 21% का निवेश करेंगे। सबसे अधिक धनराशि निम्नलिखित क्षेत्रों को दी जाएगी: (i) ऊर्जा क्षेत्र (24%), (ii) सड़कें (18%), (iii) शहरी इंफ्रास्ट्रक्चर (17%), और (iv) रेलवे (12%)।
सेवा क्षेत्र
- 2019-20 में सेवा क्षेत्र में 5.5% की वृद्धि देखी गई थी लेकिन 2020-21 के दौरान इस क्षेत्र में 8.8% के संकुचन का अनुमान है (सबसे अधिक संकुचन व्यापार और हॉस्पिटैलिटी क्षेत्र में होने की उम्मीद है (21.4%))। सॉफ्टवेयर वह अकेला उपक्षेत्र है जिसमें अप्रैल-सितंबर 2020 के दौरान सकारात्मक वृद्धि (3.6%) हुई।
- जहां महामारी के कारण व्यापार में विश्वव्यापी मंदी आई, भारतीय सेवा क्षेत्र का निर्यात लचीला बना रहा। 2020-21 की पहली छमाही में शुद्ध सेवा निर्यात प्राप्तियां 41.67 बिलियन USD रहीं जोकि 2019-20 की पहली छमाही में सेवा निर्यात प्राप्तियों (40.47 बिलियन USD) से 3% अधिक है।
स्वास्थ्य
- सर्वेक्षण में कहा गया कि आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (एबी-पीएम-जय) ने स्वास्थ्य बीमा कवरेज को बढ़ाया है। जिन राज्यों ने एबी-पीएम-जय को लागू किया, वहां 2015-16 से 2019-20 के दौरान स्वास्थ्य बीमाकृत परिवारों का अनुपात 54% बढ़ गया, और जिन राज्यों ने इस योजना को लागू नहीं किया, वहां इस अनुपात में 10% की गिरावट हुई। इस अवधि के दौरान योजना को लागू करने वाले राज्यों में शिशु मृत्यु दर में 20% की गिरावट हुई, और योजना को लागू न करने वाले राज्यों में शिशु मृत्यु दर में 12% की गिरावट हुई।
- इसके अतिरिक्त सर्वेक्षण में कहा गया है कि जरूरी वस्तुओं (जैसे आवास, पानी, सैनिटेशन, बिजली और खाना पकाने के लिए ईंधन) की बेहतर सुविधा से स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार होता है।
- भारत में कुल स्वास्थ्य व्यय में आउट ऑफ पॉकेट (वहन न करने लायक) खर्च का स्तर काफी अधिक है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय को जीडीपी के 1% से बढ़ाकर 2.5-3% करने पर आउट ऑफ पॉकेट व्यय 65% से घटकर 30% हो सकता है।
- सर्वेक्षण में कहा गया है कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सूचनाओं की विषमताओं को कम करने से निम्न बीमा प्रीमियम हासिल करने में मदद मिलेगी और लोगों को लाभ होगा। इसमें सुझाव दिया गया है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में एक रेगुलेटर लाया जाए ताकि सूचना की विषमताओं के कारण मार्केट के नुकसान को कम किया जा सके (खास तौर से निजी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में)।
बैंकिंग क्षेत्र
- आर्थिक संकट के दौरान रेगुलेटरी फोरबियरेंस को अपनाने से वित्तीय क्षेत्र के तनाव को कम करने में मदद मिल सकती है। रेगुलेटरी फोरबियरेंस में बैंकों को एसेट्स के वर्गीकरण में बदलाव किए बिना कुछ लोन्स को रीस्ट्रक्चर करने की अनुमति देने जैसे उपाय शामिल हैं। सर्वेक्षण में सुझाव दिया गया है कि ऐसे उपायों को समय रहते वापस लिया जाना चाहिए। यह कहा गया कि रेगुलेटरी फॉरबियरेंस को 2008 में विश्वव्यापी वित्तीय संकट के बाद सात वर्षों के लिए अपनाया गया था। इससे नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स में बढ़ोतरी हुई और इन उपायों को वापस लेने के बाद क्रेडिट ग्रोथ में कमी आई। सर्वेक्षण में कहा गया कि रेगुलेटरी फोरबियरेंस को वापस लेते समय बैंकों के एसेट्स की क्वालिटी और कैपिटलाइजेशन की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि ऋण में वृद्धि सुनिश्चित हो।
क्रेडिट रेटिंग
- सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत की क्रेडिट रेटिंग जीडीपी वृद्धि, मुद्रास्फीति, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में सरकारी ऋण, इत्यादि के लिहाज से देश के मूल तत्वों को नहीं दर्शाती। इसमें कहा गया है कि भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की रेटिंग्स के साथ पक्षपात किया जाता है। क्रेडिट रेटिंग्स डीफॉल्ट की संभावना को प्रदर्शित करती हैं, यह कि उधारकर्ता ऋण चुकाने का इच्छुक और उसके लायक है। भारत का संप्रभु डीफॉल्ट (भुगतान करने की इच्छा का प्रदर्शन) का कोई इतिहास नहीं है, और विदेशी मुद्रा भंडार देश के कुल बाहरी ऋण से अधिक है (जो भुगतान करने की क्षमता का प्रदर्शन करता है)। निचले स्तर की संप्रभु क्रेडिट रेटिंग का विदेशी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
इनोवेशन
- 2020 में ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत की रैंकिंग 48 है जिसके चलते वह मध्य एवं दक्षिण एशियाई देशों में पहले और निम्न मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्थाओं में तीसरे स्थान पर है। हालांकि भारत का अनुसंधान और विकास पर सकल घरेलू व्यय (जीईआरडी) बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में सबसे कम है। भारत जीईआरडी पर जीडीपी का 0.7% खर्च करता है और चीन 2% से अधिक और युनाइडेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका 2.5% से अधिक।
- वर्तमान में कुल जीईआरडी पर सरकारी क्षेत्र का योगदान 56% है जोकि मुख्य 10 अर्थव्यवस्थाओं (जैसे चीन, युनाइटेड किंगडम और जापान) में सरकारी क्षेत्र के योगदान (20%) से अधिक है। जीईआरडी में कारोबारी क्षेत्र का योगदान 37% है जोकि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में इस क्षेत्र के योगदान (68%) से काफी कम है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि विशेषकर निजी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास सुविधाओं को बढ़ाकर जीईआरडी को जीडीपी के 2% से अधिक किया जाना चाहिए।
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