स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- शिक्षा, महिला, बाल, युवा एवं खेल संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. विनय पी. सहस्रबुद्धे) ने 4 जुलाई, 2022 को “डीम्ड/निजी विश्वविद्यालयों/अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षा मानकों, एक्रेडिटेशन की प्रक्रिया, अनुसंधान, परीक्षा सुधारों और शैक्षणिक परिवेश की समीक्षा” विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई): राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी), 2020 में उच्च शिक्षा के लिए मुख्य रेगुलेटर के रूप में एचईसीआई के गठन का प्रावधान है। कमिटी ने कहा कि एचईसीआई के प्रावधान वाला बिल अभी ड्राफ्टिंग के चरण में है। उसने सुझाव दिया कि एचईसीआई का निर्माण करते समय, इसके क्षेत्राधिकार, स्वतंत्रता और हितधारकों के हितों की सुरक्षा को निर्दिष्ट करने से संबंधित पहलुओं पर विचार किया जाना चाहिए। उच्च शिक्षा के लिए कई समानांतर रेगुलेटरी अथॉरिटीज़ के बजाय, नियमों/रेगुलेशंस/एक्ट के कार्यान्वयन में अंतिम फैसला देने वाले रेगुलटेरी निकायों का सहज पदानुक्रम (हेरारकी) बनाया जाना चाहिए।
- ‘डीम्ड यूनिवर्सिटी’ की परिभाषा में बदलाव: कमिटी ने कहा कि ‘डीम्ड यूनिवर्सिटी’ टर्म विदेशों में भ्रम पैदा करता है क्योंकि कई देशों में ऐसा कोई कॉन्सेप्ट नहीं है। उसने केंद्र सरकार को सुझाव दिया कि वह यूजीसी एक्ट, 1956 में संशोधन करके डीम्ड यूनिवर्सिटी के स्थान पर ‘यूनिवर्सिटी’ शब्द का इस्तेमाल की अनुमति देने पर विचार करे। एक्ट के अंतर्गत केंद्रीय एक्ट, प्रांतीय एक्ट या राज्य एक्ट द्वारा स्थापित या निगमित विश्वविद्यालय के अलावा कोई भी संस्थान 'यूनिवर्सिटी' शब्द का प्रयोग नहीं कर सकता है।
- राज्य विश्वविद्यालयों में परीक्षा: कमिटी ने कहा कि राज्य विश्वविद्यालयों को परीक्षाएं संचालित करने में समस्याएं होती हैं। इन समस्याओं में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) प्रश्न पत्र लीक होना, (ii) नकल के बेकाबू मामले, और (iii) विद्यार्थियों और परीक्षकों की मिलीभगता। उसने सुझाव दिया कि एक्रेडिटेशन देते समय, संस्थान की परीक्षा प्रबंधन क्षमता पर विचार किया जाना चाहिए। परीक्षा की प्रक्रिया के डिजिटलीकरण को अपनाने को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- सोशल साइंस और तकनीकी शिक्षा: कमिटी ने सुझाव दिया कि तकनीकी संस्थानों में ह्यूमैनिटीज़ के कोर्स शुरू करने का प्रयोग किया जाए और इस बात का आकलन किया जाए कि संस्थान के शैक्षणिक परिवेश पर उसका क्या असर होता है। इसके अतिरिक्त सोशल साइंस/ह्यूमैनिटीज़/आर्ट मॉड्यूल्स को तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
- अनुसंधान: कमिटी ने सुझाव दिया कि परिभाषित मानदंड और मात्रात्मक मानक के साथ सामाजिक और भौतिक विज्ञान के लिए एक राष्ट्रीय अनुसंधान नीति तैयार की जाए। विभिन्न क्षेत्रों में चिन्हित राष्ट्रीय विकास की जरूरतों को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कमिटी ने कहा कि अच्छे अनुसंधान कौशल वाली फैकेल्टी को आकर्षित करने और उसे बरकरार रखने की ईमानदार कोशिश की जानी चाहिए। उसने फैकेल्टी के प्रबंधन की मौजूदा व्यवस्था की समीक्षा का सुझाव दिया और अनुसंधान योगदानों एवं प्रकाशनों के जरिए प्रदर्शन के मूल्यांकन के आधार पर पुरस्कार प्रणाली विकसित करने का सुझाव दिया।
- फैकेल्टी: कमिटी ने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में पर्याप्त और क्वालिफाइड फैकेल्टी की कमी है। अनेक युवा विद्यार्थी शिक्षण का पेशा नहीं चुनते क्योंकि भर्ती प्रक्रिया लंबी है और इसमें कई प्रक्रियागत औपचारिकताएं हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि उच्च शिक्षा विभाग भर्ती प्रक्रिया को छोटा करने पर विचार करे।
- कोचिंग क्लासेज़ और कॉलेजों की मिलीभगत: कमिटी ने कई कॉलेजों की इस प्रवृत्ति पर गौर किया कि वे अपने विद्यार्थियों की तैयारी के लिए कोचिंग क्लासेज़ से सांठ-गांठ कर लेते हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि केंद्र सरकार को राज्यों के साथ मिलकर ऐसे संस्थानों की मान्यता रद्द करनी चाहिए।
- उच्च शिक्षा को एक्रेडिटेशन: कमिटी ने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों से फीडबैक के जरिए राष्ट्रीय प्रमाणन बोर्ड और राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रमाणन परिषद की समस्याओं की समीक्षा करने की जरूरत है। इससे गुणवत्तापूर्ण प्रमाणन के मानदंड के तौर पर इन निकायों में सुधार संभव होगा। उसने सुझाव दिया कि प्रमाणन की फ्रीक्वेंसी और अवधि के नियमों को स्पष्ट किया जाए। इससे सुनिश्चित होगा कि संस्थान लापरवाही नहीं बरत रहे और समीक्षा के बिना वर्षों तक एक जैसे स्कोर लेकर चल रहे हैं।
- दक्ष कार्यबल की कमी: कमिटी ने सुझाव दिया कि उच्च शिक्षा विभाग/विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और विश्वविद्यालय सामूहिक रूप से शैक्षणिक समुदाय और उद्योग के बीच भागीदारी की समीक्षा करें। इस भागीदारी से दक्ष कार्यबल की कमी को दूर करने में मदद मिलेगी। उद्योग और उच्च शिक्षण संस्थानों के बीच सहयोग से विद्यार्थियों को उद्यमिता कौशल विकसित करने और अनुभव प्रदान करने में मदद मिलेगी।
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