स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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शिक्षा, महिला, बाल, युवा एवं खेल से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री दिग्विजय सिंह) ने 20 अगस्त, 2025 को ‘निजी शिक्षण संस्थानों सहित शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जातियों (एससी)/अनुसूचित जनजातियों (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के लिए आरक्षण के विशेष प्रावधान के संबंध में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(5) के कार्यान्वयन’ पर अपनी रिपोर्ट पेश की। कमिटी के प्रमुख निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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निजी उच्च शिक्षा में आरक्षण पर कानून: कमिटी ने कहा कि निजी उच्च शिक्षण संस्थानों (एचईआई) में ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों के विद्यार्थियों की संख्या काफी कम है। कमिटी ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण संसाधनों और फैकेल्टी से लैस न होने वाले सरकारी संस्थानों में विद्यार्थियों का दाखिला गैर आनुपातिक है। कमिटी ने कहा कि निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण नीतियों के कार्यान्वयन के संबंध में कोई कानून नहीं है। कमिटी ने संविधान के अनुच्छेद 15(5) के तहत आरक्षण के प्रावधानों को एक केंद्रीय कानून के माध्यम से लागू करने का सुझाव दिया।
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निजी उच्च शिक्षा संस्थानों को प्रतिपूर्ति: शिक्षा का अधिकार एक्ट, 2009 के तहत, निजी स्कूलों में 25% सीटें वंचित समूहों और कमज़ोर वर्गों के बच्चों के लिए आरक्षित हैं। सरकार इन बच्चों पर निजी स्कूलों द्वारा किए गए खर्च की प्रतिपूर्ति करती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि निजी उच्च शिक्षा संस्थानों पर भी ऐसी ही प्रतिपूर्ति के प्रावधान लागू किए जाएं।
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सीट बढ़ाने के लिए सहयोग: कमिटी ने कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता किए बिना और सामान्य श्रेणी की सीटों को कम किए बिना आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। इसलिए आरक्षण बढ़ाने के लिए सीटें बढ़ानी होंगी, बुनियादी ढांचा तैयार करना होगा और फैकेल्टी की नियुक्ति करनी होगी। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) निजी उच्च शिक्षा संस्थानों को पर्याप्त धनराशि प्रदान करना, (ii) सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से संसाधनों की पूर्ति करना, और (iii) उन्हें कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करना।
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विद्यार्थियों को सहायता: कमिटी ने कहा कि कमजोर बुनियादी शिक्षा और कम वित्तपोषित स्कूलों के कारण हाशिए पर पड़े समूहों के विद्यार्थियों को अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता है। कमिटी ने यह भी कहा कि निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षित श्रेणियों के विद्यार्थियों की ड्रॉपआउट दर अधिक है। कमिटी ने निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में ऐसे मॉडल प्रोग्राम विकसित करने का सुझाव दिया जिनमें ब्रिज कोर्स और प्रवेश परीक्षाओं के लिए निःशुल्क कोचिंग शामिल हो। उच्च शिक्षा विभाग छात्रवृत्ति भी प्रदान कर सकता है।
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भेदभाव-विरोधी उपाय: कमिटी ने कहा कि निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में जाति-आधारित भेदभाव की घटनाएं अक्सर सामने आती रही हैं। कमिटी ने निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में भेदभाव-विरोधी नीतियों को सख्ती से लागू करने और शिकायत निवारण तंत्र बनाने का सुझाव दिया।
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जागरूकता बढ़ाना: कमिटी ने कहा कि हाशिए पर पड़े वर्गों के विद्यार्थी आरक्षण के लाभों से अनजान हैं। कुछ निजी विश्वविद्यालयों ने हाशिए पर पड़े समुदायों के विद्यार्थियों के प्रवेश में सहायता के लिए स्कूलों और संगठनों के साथ साझेदारी की है। कमिटी ने सुझाव दिया कि निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में इन वर्गों को उपलब्ध अवसरों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए विभाग को गैर-सरकारी संगठनों और सामुदायिक नेताओं के साथ सहयोग करना चाहिए।
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जातिगत आंकड़े: कमिटी ने कहा कि निजी और सरकारी उच्च शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थी की संख्या के संयोजन पर एक विश्वसनीय और अपडेटेड डेटाबेस नहीं है। उसने यह भी कहा कि वर्तमान में, प्रवेश प्रक्रिया के दौरान जाति की घोषणा वैकल्पिक है। उसने सुझाव दिया कि निजी उच्च शिक्षा संस्थानों को सभी आवेदकों के साथ-साथ प्रवेश प्राप्त विद्यार्थियों की जाति वर्ग के आंकड़े एकत्र करने चाहिए। आवेदकों और विद्यार्थियों को यह घोषित करने का अवसर दिया जाना चाहिए कि उनकी कोई जातिगत पहचान नहीं है।
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