स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- ऊर्जा संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: राजीव रंजन सिंह) ने 5 अगस्त, 2021 को ‘ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों द्वारा बिजली परियोजनाओं के कार्यान्वयन/पूरा करने में विलंब’ विषय पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी ने निम्नलिखित मुद्दों पर गौर किया: (i) 13 में से 12 हाईड्रो प्रॉजेक्ट्स, (ii) 34 में से 30 थर्मल प्रॉजेक्ट्स, (iii) 42 में से 18 ट्रांसमिशन प्रॉजेक्ट्स, और (iv) 26 में से एक रीन्यूएबल प्रॉजेक्ट्स के कार्यान्वयन में देरी हुई थी। इस देरी से समय के साथ-साथ लागत भी बढ़ गई। उदाहरण के लिए 12 हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स के कार्यान्वयन में देरी से 100 वर्षों से ज्यादा का कुल समय बढ़ गया और लागत 31,530 करोड़ रुपए बढ़ गई। इसी तरह 30 थर्मल प्रॉजेक्ट्स में देरी के कारण 148 वर्षों का कुल समय बढ़ गया और लागत में 41,100 करोड़ रुपए की वृद्धि हो गई। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- कॉन्ट्रैक्ट संबंधी विवाद: कमिटी ने गौर किया कि भूमि अधिग्रहण और कॉन्ट्रैक्ट संबंधी विवादों के कारण मुख्यतया बिजली परियोजनाओं में देरी होती है। कमिटी ने कहा कि यह समस्या इसलिए उठती है क्योंकि परियोजनाओं का लागत अनुमान और लागत प्रबंधन खराब है और धनराशि भी पर्याप्त नहीं है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि कॉन्ट्रैक्ट देने के चरण में प्रॉजेक्ट डेवलपर और कॉन्ट्रैक्टर को पूरा ध्यान देना चाहिए और कॉन्ट्रैक्ट के नियम एवं शर्तों पर सावधानी से विचार-विमर्श करना चाहिए। डॉक्यूमेंट्स में कॉन्ट्रैक्ट के हर स्तर पर कड़े नियम और सजा के साथ उपयुक्त उपायों का जिक्र होना चाहिए। थर्मल पावर प्रॉजेक्ट्स को ऋण देने के लिए बैंकों को प्राथमिकता के आधार पर ऋण की उप क्षेत्रीय सीमा को तय करना चाहिए।
- हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स की समस्याएं: कमिटी ने कहा कि हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स के कार्यान्वयन में देरी की मुख्य वजहों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) भूमि अधिग्रहण में रुकावटें, (ii) पर्यावरण और वन संबंधी मुद्दे, (iii) पुनर्वास और पुनःस्थापन संबंधी मुद्दे, (iv) स्थानीय कानून और व्यवस्था, और (v) धनराशि की कमी। कमिटी ने गौर किया कि ऐसी समस्याएं बड़ी निर्माण परियोजनाओं में खड़ी होती हैं। इन समस्याओं को कॉन्ट्रैक्ट के कड़े दिशानिर्देशों और पर्याप्त नीतिगत एवं रेगुलेटरी सहयोग के जरिए दूर किया जा सकता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स के लिए वित्तीय नीतियों की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि निम्न ब्याज दरों पर दीर्घकालीन ऋण दिए जा सकें। इसके अतिरिक्त लागत और समय की बढ़त को कम करने के लिए सिंगल विंडो क्लीयरेंस व्यवस्था को अपनाया जाना चाहिए।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में सड़कों और पुलों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर के अपर्याप्त होने के कारण निर्माण की अवधि लंबी हो जाती है और इसी के साथ परियोजना की लागत भी बढ़ जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि संबंधित अथॉरिटीज़ (जैसे सीमा सड़क संगठन) को प्रॉजेक्ट्स को समय पर पूरा करने के लिए पर्याप्त सहयोग दिया जाना चाहिए। हाइड्रो पावर प्रॉजेक्ट्स के लिए सड़कों, पुलों और दूसरे इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास हेतु राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष का इस्तेमाल किया जा सकता है। राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष एक ऐसा कॉरपस फंड है जिसे स्वच्छ ऊर्जा टेक्नोलॉजी में अनुसंधान और नए प्रॉजेक्ट्स की फंडिंग के लिए बनाया गया है।
- बिजली परियोजनाओं की समीक्षा और निगरानी तंत्र: कमिटी ने कहा कि नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) परियोजनाओं की समीक्षा के लिए तीन स्तरीय परियोजना प्रबंधन प्रणाली पर निर्भर करता है। इस प्रणाली में एनटीपीसी के इंजीनियरिंग प्रबंधन, कॉन्ट्रैक्ट प्रबंधन और निर्माण प्रबंधन नियंत्रण केंद्र एकीकृत किए गए हैं। केंद्रीय बिजली अथॉरिटी और ऊर्जा मंत्रालय बिजली परियोजनाओं की आवर्ती समीक्षा भी करते हैं। कमिटी ने कहा कि उचित निगरानी तंत्र की कमी से परियोजनाओं में विलंब होता है और समय एवं लागत बढ़ जाते हैं।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि नियमित समीक्षा बैठकों के अतिरिक्त सभी प्रॉजेक्ट साइट्स पर सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) आधारित परियोजना प्रबंधन, निगरानी और फॉलोअप प्रणाली शुरू की जानी चाहिए। सभी स्टेकहोल्डर्स (जैसे सप्लायर्स, प्रॉजेक्ट डेवलपर्स और कॉन्ट्रैक्टर्स) से इस प्रणाली की ऑनलाइन कनेक्टिविटी होनी चाहिए।
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