स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- अन्य पिछड़ा वर्गों के कल्याण से संबंधित स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: गणेश सिंह) ने ‘केंद्र शासित प्रदेशों, पीएसयूज़ इत्यादि सहित भारत सरकार के अंतर्गत आने वाली सेवाओं एवं पदों में अन्य पिछड़ा वर्गों के रोजगार में क्रीमी लेयर का औचित्य’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। ‘क्रीमी लेयर’ में अति पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के सामाजिक और आर्थिक रूप से तरक्की कर चुके सदस्य शामिल किए जाते हैं। वर्तमान में पर्सनल ट्रेनिंग विभाग (डीओपीटी) द्वारा जारी ऑफिस मेमोरेंडम (2017 में संशोधित) में वह मानदंड दिया गया है जिसके आधार पर अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के सरकारी कर्मचारियों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता और उन्हें क्रीमी लेयर में शामिल किया जाता है। अपनी रिपोर्ट में कमिटी ने सरकारी पदों पर ओबीसी आरक्षण से संबंधित विभिन्न मुद्दों की समीक्षा की। मुख्य निष्कर्ष और सुझाव निम्नलिखित हैं:
- क्लास I सेवाएं और आरक्षण न मिलने का नियम: डीओपीटी ऑफिस मेमोरेंडम (ओएम) की श्रेणी II ए में कहा गया है कि जिन बच्चों के माता-पिता में से कोई एक अखिल भारतीय केंद्रीय एवं राज्य सेवाओं का क्लास I अधिकारी है, उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। श्रेणी II बी(बी) इस नियम को विस्तार देती है और कहती है कि यह नियम उन बच्चों पर भी लागू होगा जिनके पिता अखिल भारतीय केंद्रीय एवं राज्य सेवाओं के क्लास II अधिकारी हैं और 40 वर्ष की उम्र से पहले या 40 वर्ष की उम्र में क्लास I अधिकारी बन जाते हैं। कमिटी ने इस स्पष्टीकरण की मांग की कि क्या यह नियम तब भी लागू होगा, जब क्लास II का अधिकारी 40 वर्ष की उम्र के बाद क्लास I का अधिकारी बनता है। इसके बाद डीओपीटी ने कहा कि विर्निदिष्ट आयु सीमा सिर्फ उन्हीं मामलों में लागू होगी जब किसी व्यक्ति को क्लास II से क्लास I में पदोन्नत किया जाता है और यह प्रावधान सीधी भर्तियों पर लागू नहीं होगा।
- कमिटी ने कहा कि क्लास I अधिकारी के बच्चों को आरक्षण न देने का यह तर्क है कि उन्होंने गरीबी या दूसरी आर्थिक परेशानियों का सामना नहीं किया होगा। हालांकि जिन ओबीसी उम्मीदवारों को तमाम सुविधाएं प्राप्त न हुई हों, अगर उनके माता-पिता 40 वर्ष की उम्र के बाद क्लास I अधिकारी बनते हैं, तो ऐसे उम्मीदवारों को इस पदोन्नति का कोई फायदा नहीं होगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि आरक्षण न मिलने का नियम उन बच्चों पर लागू नहीं होना चाहिए, जिनके माता-पिता 40 वर्ष की उम्र के बाद क्लास I अधिकारी बने हों (यानी उन्हें आरक्षण दिया जाए)।
- क्लास III और क्लास IV सेवाओं पर आरक्षण न मिलने का नियम: 2017 में वित्तीय सेवा विभाग ने यह कहा था कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों, वित्तीय संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों के क्लर्क और चपरासियों को क्लास III कर्मचारियों के बराबर माना जाएगा। सामाजिक न्याय मंत्रालय के प्रतिनिधियों ने कमिटी को जानकारी दी थी कि 40 वर्ष का होने पर या उसके बाद की उम्र में जूनियर मैनेजमेंट पोस्ट पर पहुंचने वाले क्लर्क या चपरासी के बच्चे क्रीमी लेयर में शामिल हो जाएंगे और उन्हें आरक्षण नहीं मिलेगा।
- कमिटी ने कहा कि यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के फैसले और डीओपीटी ऑफिस मेमोरेंडम के खिलाफ है जोकि इन कर्मचारियों को क्रीमी लेयर से बाहर रखने का प्रयास करता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि सभी क्लास III कर्मचारियों को क्रीमी लेयर से बाहर रखा जाए।
- पदों की समानता स्थापित करना: डीओपीटी ऑफिस मेमोरेंडम की अनुसूची की श्रेणी IIसी के अनुसार, सरकारी कर्मचारियों को आरक्षण से बाहर करने का मानदंड सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बैंकों, बीमा संगठनों, विश्वविद्यालयों और निजी क्षेत्र में समान पदों के कर्मचारियों पर भी लागू होगा। कमिटी ने कहा कि अब तक समाज कल्याण मंत्रालय ने इन संस्थानों में समान पदों को चिन्हित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं। इस निष्क्रियता ने ओबीसी उम्मीदवारों को न्यायिक दखल के लिए प्रेरित किया। कमिटी ने सुझाव दिया कि उपयुक्त मंत्रालयों और विभागों के साथ समन्वय करते हुए स्वायत्त संगठनों में समान पदों को चिन्हित करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।
- आय/संपत्ति का मानदंड: आय/संपत्ति के मानदंड को यह निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है कि किसी ओबीसी व्यक्ति को क्रीमी लेयर में शामिल किया जाए या उससे बाहर रखा जाए। डीओपीटी ने 2017 के अपने संशोधित ऑफिस मेमोरेंडम में कहा था कि सालाना 8 लाख रुपए या उससे अधिक की आय वाले व्यक्तियों के बच्चों को आरक्षण नहीं दिया जाएगा। कमिटी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार वेतन या कृषि से प्राप्त आय को क्रीमी लेयर के मानदंड के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कमिटी ने कहा कि डीओपीटी की श्रेणी IIसी के अंतर्गत आने वाले व्यक्तियों (समान पदों वाले कर्मचारी) को आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। इस प्रकार कमिटी ने कहा कि आय/संपत्ति के मानदंड को लागू करते समय वेतन और कृषि की बजाय अन्य स्रोतों से प्राप्त होने वाली आय को ही ध्यान में रखा जाना चाहिए।
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