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पीडीएफ

केंद्रीय जल आयोग और केंद्रीय भूजल बोर्ड का पुनर्गठन

रिपोर्ट का सारांश

  • केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) और केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) के पुनर्गठन पर बनी एक्सपर्ट कमिटी (चेयर: डॉ. मिहिर शाह) ने जुलाई 2016 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। सीडब्ल्यूसी राज्यों के सहयोग से जल संसाधनों के संरक्षण और उपयोग से जुड़ी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी है। सीजीडब्ल्यूबी भूजल संसाधनों के विश्लेषण और उनके सतत प्रबंधन के लिए नीतियों के कार्यान्वयन का काम करती है।
     
  • कमिटी ने सुझाव दिया कि सीडब्ल्यूसी और सीजीडब्ल्यूबी को पुनर्गठित किया जाना चाहिए और एक नए राष्ट्रीय जल आयोग (एनडब्ल्यूसी) में एकीकृत किया जाना चाहिए। इसका कारण कमिटी ने यह बताया कि भूजल और सतही जल के सामूहिक प्रबंधन के लिए एक एकीकृत इकाई होने से मदद मिलेगी। एनडब्ल्यूसी देश में जल नीति, आंकड़ों और अभिशासन के लिए उत्तरदायी होगा। कमिटी ने सुझाव दिया कि जल संसाधन मंत्रालय के अनुबद्ध कार्यालय के रूप में इस आयोग को पूर्ण स्वायत्तता से कार्य करना चाहिए।
     
  • एनडब्ल्यूसी के मुख्य कार्य निम्नलिखित होंगे: (i) राज्यों को सिंचाई परियोजनाओं को रिफॉर्म मोड में लागू करने के लिए प्रोत्साहित करना, (ii) राष्ट्रीय एक्विफर (जलभर) मानचित्रण और भूजल प्रबंधन कार्यक्रम का नेतृत्व करना, (iii) नदियों के कायाकल्प के लिए स्थान विशिष्ट कार्यक्रम विकसित करना, इत्यादि। कमिटी ने प्रस्तावित किया कि एनडब्ल्यूसी के आठ प्रभाग होने चाहिए। ये निम्नलिखित हैं:
     
  • सिंचाई सुधार प्रभाग : यह प्रभाग राज्यों को सिंचाई परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करने और जल प्रबंधन में सुधार करने में सहयोग करेगा।
     
  • नदी कायाकल्प प्रभाग : यह प्रभाग नदियों के कायाकल्प के लिए क्षेत्र विशिष्ट कार्यक्रमों को विभिन्न स्तरों पर लागू करने में सहभागी संस्थानों की मदद करेगा।
     
  • जलभर मानचित्रण (एक्विफर मैपिंग) और सहभागी भूजल प्रबंधन प्रभाग : यह प्रभाग देश में जलभर प्रणालियों के मानचित्रण और प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय जलभर प्रबंधन कार्यक्रम का नेतृत्व करेगा। प्रभाग कार्यक्रम के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए राज्य भूजल विभागों, अनुसंधान संस्थानों इत्यादि से संबंध स्थापित करेगा। यह राष्ट्रीय स्तर पर भूजल संसाधनों का विश्लेषण और आकलन भी करेगा।
     
  • जल सुरक्षा प्रभाग : यह प्रभाग जल सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए नीतियां और कार्यक्रम तैयार करेगा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं : (i) जीवन के लिए जल के अधिकार को सुनिश्चित करना, और (ii) बाढ़ और सूखे के प्रभाव से कृषि अर्थव्यवस्था का संरक्षण करना।
     
  • शहरी और औद्योगिक जल प्रभाग : यह प्रभाग शहरी और औद्योगिक अपशिष्ट जल (वेस्ट वॉटर) की रीसाइकिलिंग और पुनः प्रयोग के लिए मूल्य संवर्धित और उपयुक्त तकनीक विकसित करेगा। यह शहरी क्षेत्रों में जलभरों का मानचित्रण करेगा और शहरों में सतत भूजल प्रबंधन के लिए रणनीतियों को विकसित करेगा।
     
  • जल गुणवत्ता प्रभाग : यह प्रभाग जल स्रोतों और जलभरों में प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कार्यक्रमों को विकसित और कार्यान्वित करेगा।
     
  • जल आंकड़ा प्रबंधन और पारदर्शिता प्रभाग : यह प्रभाग सार्वजनिक उपयोग के जल से संबंधित आंकड़ों के प्रबंधन की पारदर्शी और सुगम्य प्रणाली को विकसित करेगा एवं उसका रखरखाव करेगा।
     
  • ज्ञान प्रबंधन और क्षमता निर्माण प्रभाग : यह प्रभाग जल पेशेवरों में जल और भूमि प्रबंधन से संबंधित क्षमता निर्माण के लिए संस्थानों के गठन के लिए उत्तरदायी होगा।

कमिटी के अन्य सुझाव निम्नलिखित हैं :

  • सिंचाई प्रबंधन हस्तांतरण (आईएमटी) : राज्यों को केवल सिंचाई संरचनाओं जैसे मुख्य प्रणालियों से लेकर सहायक नहरों के विकास में शामिल होना चाहिए। तृतीयक और उससे निचले स्तर की नहरों की सिंचाई संरचनाओं का उत्तरदायित्व जल उपयोग से संबंधित किसान संगठनों का होना चाहिए। आईएमटी के माध्यम से सभी किसानों की समान रूप से जल संसाधनों तक पहुंच होगी और जल के उपयोग में 20% की बचत होगी।
     
  • सहभागी भूजल प्रबंधन : भूजल को सामान्य पूल संसाधन के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए और उसकी निरंतर अनियंत्रित निकासी को बंद किया जाना चाहिए। इसके साथ ही सुधारात्मक उपाय अपनाए जाने चाहिए जैसे ड्रिलिंग की अपेक्षित गहराई और कुंओं के बीच दूरी तय करना, ऐसी फसलें लगाना, जिनके लिए जल संसाधन के अत्यधिक दोहन की जरूरत न हो।
     
  • नदियों का कायाकल्प : सीडब्ल्यूसी और सीजीडब्ल्यूबी के कार्यालयों में अब तक देश के नदी क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला है। इसके लिए क्षेत्रीय स्तर पर प्रस्तावित एनडब्ल्यूसी के कार्यालय स्थापित किए जाने चाहिए। इन कार्यालयों को नदी क्षेत्रों के प्रबंधन के लिए सतही और भूजल अंतर्विषयी विशेषज्ञता सुनिश्चित करनी चाहिए।

 

अस्वीकरणः प्रस्तुत रिपोर्ट आपके समक्ष सूचना प्रदान करने के लिए प्रस्तुत की गई है। पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च “पीआरएस”) की स्वीकृति के साथ इस रिपोर्ट का पूर्ण रूपेण या आंशिक रूप से गैर व्यावसायिक उद्देश्य के लिए पुनःप्रयोग या पुनर्वितरण किया जा सकता है। रिपोर्ट में प्रस्तुत विचार के लिए अंततः लेखक या लेखिका उत्तरदायी हैं। यद्यपि पीआरएस विश्वसनीय और व्यापक सूचना का प्रयोग करने का हर संभव प्रयास करता है किंतु पीआरएस दावा नहीं करता कि प्रस्तुत रिपोर्ट की सामग्री सही या पूर्ण है। पीआरएस एक स्वतंत्र, अलाभकारी समूह है। रिपोर्ट को इसे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के उद्देश्यों अथवा विचारों से निरपेक्ष होकर तैयार किया गया है। यह सारांश मूल रूप से अंग्रेजी में तैयार किया गया था। हिंदी रूपांतरण में किसी भी प्रकार की अस्पष्टता की स्थिति में अंग्रेजी के मूल सारांश से इसकी पुष्टि की जा सकती है।

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