स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- मानव संसाधन विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. सत्यनारायण जटिया) ने 10 दिसंबर, 2019 को खेलो इंडिया योजना पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस योजना का उद्देश्य भारत में खेल की संस्कृति को पुनर्जीवित करना और खेल क्षेत्र में उत्कृष्टता को बढ़ावा देना है। कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- प्रशासन: खेलो इंडिया योजना को प्रभारी मंत्री की अध्यक्षता में जनरल काउंसिल द्वारा लागू किया जाता है। काउंसिल योजना के लिए नीति निर्धारक निकाय के रूप में कार्य करती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि योजना के कार्यान्वयन पर नजर रखने के लिए किसी प्रख्यात खिलाड़ी या खेल प्रशासक को जनरल काउंसिल के चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर के तौर पर नियुक्त किया जाना चाहिए। कमिटी ने कहा कि ऐसे व्यक्ति एथलीट्स की समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं और एथलीट्स और प्रशासन के बीच इंटरफेस के रूप में कार्य कर सकते हैं।
- फंड्स का उपयोग: कमिटी ने गौर किया कि 2018-19 और 2019-20 के दौरान खेलो इंडिया योजना का वास्तविक व्यय क्रमशः 324 करोड़ रुपए और 308 करोड़ रुपए था। हालांकि अनुमानित आबंटन क्रमशः 520 करोड़ रुपए और 500 करोड़ रुपए था। खेल विभाग ने योजना के कार्यान्वयन की बाधाओं में अपर्याप्त फंड्स, मानव संसाधन और खेल संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर्स को शामिल किया था। कमिटी ने कहा कि इन बाधाओं को दूर करने के लिए बजट में बढ़ोतरी करने की जरूरत है।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि विभाग को पहले आबंटित धनराशि का इस्तेमाल करना चाहिए और फिर अन्य संसाधन जुटाने चाहिए। अन्य संसाधनों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं: (i) निजी और कॉरपोरेट क्षेत्र से फंड्स, (ii) खेल संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी, और (iii) सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के सदस्यों के साथ योजना की कन्वर्जिंग। इस योजना के जरिए सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों में विकासपरक कार्य कर पाते हैं।
- टैलंट आइडेंटिफिकेशन: कमिटी ने कहा कि टैलंट आइडेंटिफिकेशन की प्रक्रिया जटिल और लंबी है। टैलंट आइडेंटिफिकेशन की शुरुआत अखिल भारतीय स्तर पर टैलंट स्काउट्स (प्रख्यात कोच और खिलाड़ी) द्वारा बच्चों के ट्रायल से शुरू होती है। इन प्रतियोगिताओं में एक बार खिलाड़ी के शॉर्टलिस्ट होने पर उन्हें एसेसमेंट कैंप में बुलाया जाता है। यहां खिलाड़ियों की अंतिम सूची तैयार की जाती है। फिर इन खिलाड़ियों को प्रशिक्षण के लिए खेल अकादमियों में भेजा जाता है। कमिटी ने कहा कि खिलाड़ियों का बार-बार टेस्ट लेने से सिलेक्शन की प्रक्रिया में पक्षपात और क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिल सकता है। उसने सुझाव दिया कि सिंगल विंडो सिलेक्शन प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
- कोच की कमी: कमिटी ने कहा कि विभिन्न कैडर्स में कोचेज़ के 1,524 पद हैं। इस समय इनमें से 980 पद भरे हुए हैं, जबकि 544 कोचेज़ की कमी है। उसने सुझाव दिया कि कोचेज़ के रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरा जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने में मदद के लिए विभाग को निजी खेल अकादमियां चलाने वाले कोचेज़ से सहयोग करना चाहिए।
- खेल के इंफ्रास्ट्रक्चर: कमिटी ने कहा कि स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में खेल इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी है। वर्तमान में खेल के इंफ्रास्ट्रक्चर की कमियों को दूर करने के लिए विभाग दो तरीके अपनाता है: (i) चुनींदा विश्वविद्यालयों में स्पोर्ट्स सेंटर बनाना, और (ii) इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए राज्यों को अनुदान देना। कमिटी ने गौर किया कि केवल 13 राज्यों को अनुदान दिए गए हैं। उसने कहा कि कुछ राज्यों, जैसे बिहार, झारखंड और ओड़िशा को कोई अनुदान नहीं मिला। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को इन राज्यों और आदिवासी क्षेत्रों में खेल संबंधी इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना चाहिए जहां खेल प्रतिभाएं मौजूद हो सकती हैं ताकि सभी राज्यों में एक समान खेल इंफ्रास्ट्रक्चर सुनिश्चित हो।
- खेल इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाने के लिए कमिटी ने सुझाव दिया कि कम से कम चार विषयों में अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल सुविधाओं वाले निजी आवासीय स्कूल चिन्हित किए जाने चाहिए। देश के प्रत्येक जिले में ऐसे स्कूल खेल क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त केंद्रों के रूप में विकसित किए जाने चाहिए।
- शिक्षा: खेलो इंडिया योजना अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों जैसे ओलंपिक्स के लिए खिलाड़ियों को चिन्हित और प्रशिक्षित करती है। कमिटी ने कहा कि 2018-19 में प्रशिक्षण के लिए चुने गए 1,518 खिलाड़ियों में से केवल 625 ने एक्रेडेटेड अकादमियों में दाखिला लिया और 893 ने ड्रॉप किया। कमिटी ने कहा कि ड्रॉप-आउट्स का मुख्य कारण यह था कि अकादमियों में एकीकृत शिक्षा का अभाव था। उसने सुझाव दिया कि अकादमियों के पास शिक्षण और छात्रावास संबंधी सुविधाएं होनी चाहिए ताकि प्रशिक्षु अपनी बुनियादी शिक्षा पूरी कर सकें। इसके अतिरिक्त मौजूदा स्कूलों, कॉलेजों और छात्रावास वाली अकादमियों में ट्रेनिंग स्पेस को चिन्हित किया जाना चाहिए। इन्हें खेलो इंडिया योजना के साथ संबद्ध किया जा सकता है और खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करने के लिए सर्टिफाइड कोच दिए जा सकते हैं।
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