स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री सुशील कुमार मोदी) ने 8 अगस्त, 2022 को “गार्जियनशिप और एडॉप्शन कानूनों की समीक्षा” पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य निष्कर्ष और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- एडॉप्शन पर एक कानून: वर्तमान में एडॉप्शन को दो कानूनों द्वारा रेगुलेट किया जाता है- हिंदू एडॉप्शन और भरण-पोषण एक्ट, 1956 (हामा) जो हिंदुओं पर लागू होता है और किशोर न्याय एक्ट, 2015 (जेजे एक्ट)। कमिटी ने कहा कि इन दो कानूनों के बीच कुछ विसंगतियां हैं, जैसे एडॉप्शन के लिए अधिकतम आयु की सीमा और एडॉप्शन की टाइमलाइन्स और शर्तें। कमिटी ने सुझाव दिया कि एडॉप्शन पर एक कानून लाया जाए जो सभी धर्मों के सभी लोगों पर समान रूप से लागू हो। कानून संस्थागत बच्चों और परिवार के साथ रहने वाले बच्चों के लिए अलग से एडॉप्शन की प्रक्रिया निर्धारित कर सकता है और एलजीबीटीक्यू समुदाय को भी कवर कर सकता है।
- गार्जियनशिप पर एक कानून: वर्तमान में गार्जियनशिप को गार्जियन्स और वार्ड्स एक्ट, 1890 और हिंदू अल्पसंख्यक और गार्जियनशिप एक्ट, 1956 (हिंदुओं पर लागू) के जरिए रेगुलेट किया जाता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि गार्जियनशिप को रेगुलेट करने वाला एक कानून बनाया जाए। एक्ट में वरिष्ठ नागरिकों के लिए गार्जियनशिप को आसान बनाने के प्रावधान होने चाहिए। इस एक्ट में निर्णय लेने में किसी के समर्थन का भी प्रावधान किया जाना चाहिए। ऐसी व्यवस्था में व्यक्ति अपने भरोसेमंद सलाहकारों, जैसे मित्रों, परिवार या पेशेवर व्यक्ति को समर्थक के रूप में नियुक्त करता है।
- जेजे एक्ट का कार्यान्वयन: 2021 में संशोधनों के बाद जेजे एक्ट जिला मेजिस्ट्रेट (डीएम) (एडीशनल डीएम सहित) को एडॉप्शन के आदेश जारी करने के लिए अधिकृत करता है। डीएम द्वारा जारी आदेश से पीड़ित व्यक्ति डिविजिनल कमीश्नर से अपील कर सकता है। कमिटी ने कहा कि जजों के पास यह तय करने की क्षमता होती है कि एडॉप्शन बच्चे के हित में है या नहीं। यह उचित नहीं है कि न्यायिक निकाय के स्थान पर एडॉप्शन का आदेश प्रशासनिक प्राधिकारी द्वारा जारी किया जाए। उसने सुझाव दिया कि चूंकि नई व्यवस्था की गई है, इसलिए डीएम, एडीशनल डीएम और डिविजिनल कमीश्नर को पर्याप्त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को एक वर्ष बाद इस नई प्रणाली के कामकाज की समीक्षा करनी चाहिए और कमिटी को एक रिपोर्ट देनी चाहिए।
- एडॉप्शन डेटा: कमिटी ने गौर किया कि सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) जेजे एक्ट के तहत होने वाले एडॉप्शंस से संबंधित डेटा रखती है। हालांकि हामा के तहत बच्चे को एडॉप्ट करने वाले माता-पिता को कारा में एडॉप्शन डीड को रजिस्टर करने की जरूरत नहीं होती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि हामा के तहत एडॉप्शन डीड्स को कारा में अनिवार्य रूप से रजिस्टर किया जाए।
- बाल देखभाल संस्थान: 2018-19 और 2020-21 के बीच स्पेशलाइज्ड एडॉप्शन एजेंसियों में 762 बच्चों की मृत्यु हुई। कमिटी ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को बच्चों की मृत्यु के कारणों की जांच करने और सभी सीसीआई में थर्ड पार्टी स्टडी करने का सुझाव दिया। जेजे एक्ट के तहत सीसीआई का राज्य सरकारों के साथ रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। 2018 के एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ था कि 29% सीसीआई रजिस्टर नहीं हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को जेजे एक्ट/नियमों में संशोधन करना चाहिए ताकि डीएम को अपने क्षेत्राधिकार में काम करने वाले उन सीसीआईज़ को बंद करने का अधिकार मिल सके, जो रजिस्टर्ड नहीं हैं।
- एक मंत्रालय: वर्तमान में एडॉप्शन से संबंधित मामलों पर दो मंत्रालयों, विधि एवं न्याय मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कार्रवाई की जाती है। कमिटी ने सुझाव दिया कि बेहतर निगरानी और कार्यान्वयन के लिए एडॉप्शन कानून को एक मंत्रालय के तहत लाया जाना चाहिए।
- एडॉप्शन एजेंसियों में बच्चे: कमिटी ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान एडॉप्शन एजेंसियों में लाए जाने वाले बच्चों की संख्या कम हुई है। यह बच्चों की तस्करी या फलते-फूलते अवैध एडॉप्शन मार्केट की तरफ इशारा करता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि निगरानी बढ़ाई जाए, खासकर उन सीसीआईज़ और एडॉप्शन एजेंसियों/अस्पतालों की, जो रजिस्टर्ड नहीं हैं और जिनका ट्रैफिकिंग का पिछला रिकॉर्ड है।
- हिंदू अल्पसंख्यक और गार्जियनशिप एक्ट, 1956: एक्ट के तहत हिंदू नाबालिक लड़के या नाबालिग अविवाहिक लड़की के मामले में, पिता ही नेचुरल गार्जियन (प्राकृतिक अभिभावक) होता है और “उसके बाद” माता होती है। इसके अतिरिक्त इसमें यह भी कहा गया है कि एडॉप्टेड बेटे (नाबालिग) की प्राकृतिक गार्जियनशिप एडॉप्टिव पिता और “उसके बाद” माता को मिलती है। कमिटी ने कहा कि एक्ट में संयुक्त गार्जियनशिप का प्रावधान नहीं है और यह माता को गार्जियन तभी मानता है, जब पिता की मृत्यु हो जाती है या वह अनफिट होता है। चूंकि एक्ट पिता को वरीयता देता है, इसलिए यह समानता के अधिकार और भेदभाव के विरुद्ध अधिकार का उल्लंघन करता है। कमिटी ने माता और पिता के साथ समान व्यवहार करने के लिए एक्ट में संशोधन का सुझाव दिया।
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