स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
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जल संसाधन संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: श्री परबतभाई सवाभाई पटेल) ने 6 फरवरी, 2024 को "दिल्ली तक ऊपरी यमुना नदी सफाई परियोजनाओं और दिल्ली में नदी तल प्रबंधन की समीक्षा" पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमिटी के मुख्य सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
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भूजल निकासी: कमिटी ने कहा कि यमुना में उत्पादन कुओं से निकलने वाले पानी की आपूर्ति सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए की जाती है। दिल्ली जल बोर्ड ने यमुना के बाढ़ क्षेत्र में 130 उत्पादन कुएं स्थापित किए हैं, जिनसे 196 मेगालीटर प्रतिदिन (एमएलडी) पानी निकलता है। अभी भी अतिरिक्त 190 एमएलडी पानी की निकासी की गुंजाइश है। गैर-मानसूनी मौसम के दौरान यह मांग बढ़ जाती है और बोरवेल द्वारा भूजल पंप करने से नदी का मार्ग सूखने लगता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि कृषि क्षेत्र सूक्ष्म और ड्रिप सिंचाई तकनीकों को अपनाए, और जल बजटिंग और वाटरशेड प्रबंधन का अभ्यास करे।
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रेत खनन: कमिटी ने कहा कि पिछले वर्ष हरियाणा में रेत खनन के 3,792 मामले दर्ज किए गए। अत्यधिक रेत खनन से नदी के तल में परिवर्तन होता है, जिससे नदी के मार्ग प्रभावित होते हैं और तट का क्षरण होता है। कमिटी ने जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग को निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) अवैध रेत खनन को रोकने के लिए यमुना बेसिन राज्यों के साथ समन्वय करें, और (ii) अतिक्रमण, मलबा डंपिंग और रेत खनन पर राज्यों से संबंधित जानकारी इकट्ठा करने के लिए एक पोर्टल बनाएं।
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नदी तल प्रदूषण: कमिटी ने कहा कि 2018 में यमुना में मलबे की डंपिंग का एक मामला था लेकिन 2021 में मामलों की संख्या बढ़कर 610 हो गई। यमुना से तलछट के नमूनों में उच्च स्तर पर सीसा, तांबा और जस्ता जैसी धातुएं मिलीं, जो स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) विभाग मलबे के डंपिंग के संबंध में नियम बनाए, (ii) नदी के तल से मलबे और भारी धातुओं को हटाने के लिए नियंत्रित ड्रेजिंग का पता लगाया जाए, और (iii) भारी धातु से प्रदूषित तलछट के उचित निपटान के लिए व्यवस्था तैयार की जाए।
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दिल्ली में 28 औद्योगिक क्लस्टर अपना अपशिष्ट जल यमुना और उसकी सहायक नदियों में प्रवाहित करते हैं। इनमें से केवल 17 क्लस्टर सामान्य प्रवाह उपचार संयंत्रों (सीईटीपी) से जुड़े हुए हैं, और इन सीईटीपी की क्षमता उपयोग केवल 32% है। कमिटी ने सुझाव दिया कि राज्य: (i) सभी अनाधिकृत उद्योगों का मूल्यांकन और रेगुलेशन करें, और (ii) सीईटीपी की उपयोग क्षमता बढ़ाएं और सभी औद्योगिक क्लस्टर्स को इसके साथ जोड़ें।
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जल गुणवत्ता: कमिटी ने कहा कि 2021 और 2023 के बीच, मॉनिटर किए गए 33 स्थानों में से, 23 स्थानों में पानी की गुणवत्ता बाहरी स्नान के लिए प्राथमिक जल गुणवत्ता मानदंड (पीडब्ल्यूक्यूसी) के अनुरूप नहीं है। घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर, जो जीवित रहने के लिए 5 मिलीग्राम/लीटर से अधिक निर्धारित है, दिल्ली में लगभग न के बराबर पाया गया।
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सीवेज प्रदूषण: कमिटी ने कहा कि नदियों में कुल प्रदूषण का 80%, नगर पालिकाओं से अनुपचारित सीवेज के कारण होता है, और वहां फेन के तौर पर जमा हो जाता है। यमुना नदी वाले राज्यों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) अपनी अपेक्षित उपयोगिता क्षमता से कम काम कर रहे हैं। उत्तराखंड में उपयोगिता क्षमता 57% और उत्तर प्रदेश में 78% है। नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत, दिल्ली में 11 स्वीकृत एसटीपी क्षमता उत्पादन परियोजनाओं में से केवल छह और उत्तर प्रदेश में 20 में से छह परियोजनाएं पूरी हुई हैं।
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कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) राज्य नालों में अनुपचारित सीवेज का बहना रोकें, (ii) राज्य सभी घरों और अनाधिकृत कॉलोनियों में सीवरेज नेटवर्क प्रदान करें, (iii) एसटीपी क्षमता बढ़ाई जाए, और क्षमता उत्पादन और उपयोग के बीच के अंतर को दूर किया जाए, और (iii) नमामि गंगे के तहत एक स्वच्छ यमुना कोष स्थापित किया जाएगा।
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उर्वरक और ठोस कचरा प्रदूषण: कमिटी ने कहा कि उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से यमुना तट की मिट्टी प्रदूषित हो सकती है। विशेष रूप से दिल्ली में ठोस अपशिष्ट उत्पादन और प्रसंस्करण क्षमता के बीच बड़ा अंतर है। कमिटी ने निम्नलिखित सुझाव दिए: (i) यमुना के निकट जैविक खेती को बढ़ावा देने के तरीके तलाशे जाएं, (ii) नालों पर स्क्रीन लगाए जाएं, और (iii) दाह संस्कार स्थलों को नदी के किनारों से दूर किया जाए।
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