स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- ग्रामीण विकास संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: डॉ. पी. वेणुगोपाल) ने 19 जुलाई, 2018 को ‘पंचायतों के कामकाज में सुधार’ पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन में पंचायती राज व्यवस्था को मान्यता दी गई है ताकि ग्रामीण विकास में जन भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। पंचायतों के कामकाज के संबंध में कमिटी के मुख्य निष्कर्षों और सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- शक्तियों का हस्तांतरण: संविधान में पंचायत और स्थानीय स्वशासन राज्य सूची के अंतर्गत आने वाले विषय हैं और परिणामस्वरूप पंचायतों को शक्ति और अधिकारों का हस्तांतरण राज्यों के विवेकाधिकार पर छोड़ा गया है। पंचायती राज मंत्रालय ने पंचायतों के प्रभावी कामकाज के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए हैं। हालांकि कमिटी ने कहा कि पंचायतों की अनिवार्य बैठकें आयोजित नहीं की जातीं और उनमें उपस्थितियां, खासकर महिला प्रतिनिधियों की उपस्थितियां बहुत कम रहती हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि ग्राम सभा की बैठकों में पंचायत सदस्यों, खासकर महिला सदस्यों की भागीदारी के लिए राज्य सरकारों को कोरम तय करना चाहिए।
- इसके अतिरिक्त कुछ राज्यों में ईंधन और चारा, गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत, बिजली वितरण सहित ग्रामीण बिजलीकरण, गैर औपचारिक शिक्षा, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सहित लघु स्तर के उद्योग, तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा जैसे विषय पंचायतों को हस्तांतरित नहीं किए गए हैं। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय राज्यों से इन विषयों को हस्तांतरित करने के लिए कहे जिससे इन क्षेत्रों में राज्यों को अधिक शक्तियां प्राप्त हो सकें। राज्य सरकारों को पंचायतों को धन राशि और कार्यों का हस्तांतरण करना चाहिए और सपोर्ट स्टाफ देना चाहिए ताकि पंचायतें प्रभावी तरीके से आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय की योजनाएं बना सकें।
- पंचायतों की फंडिंग: पंचायतों द्वारा योजनाओं के कार्यान्वयन में वित्त आयोग के अनुदान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन अनुदानों को बुनियादी सेवाओं जैसे पानी की आपूर्ति, सैनिटेशन, सीवरेज और ठोस कचरा प्रबंधन की डिलिवरी में मदद करने और उस व्यवस्था को मजबूती देने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त इन अनुदानों को ऐसी बुनियादी सेवाएं प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है जो कानूनों द्वारा पंचायतों को प्रदत्त कार्यों के अंतर्गत शामिल हैं। कमिटी ने कहा कि कुछ राज्य सरकारों ने पंचायतों को समय पर फंड्स जारी नहीं किए। परिणामस्वरूप उन्हें पंचायतों को ब्याज देना पड़ा और जिन पंचायतों के एकाउंट्स ऑडिट नहीं किए गए थे, उन्हें अनुदान जारी नहीं किए गए।
- कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को वित्त आयोग के अनुदानों के जारी होने और उनके व्यय की निगरानी करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उन्हें जारी करने में कोई विलंब न हो। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन अनुदानों को उचित और प्रभावी तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। पंचायतों को भी नियमित रूप से ऑडिट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जिससे वित्त आयोग के अनुदानों में विलंब न हो।
- क्षमता निर्माण: 2012-13 से 2015-16 के दौरान राजीव गांधी पंचायत सशक्तीकरण अभियान चलाया गया था जिससे अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर, मैनपावर ट्रेनिंग और पंचायतों को शक्तियों के हस्तांतरण के लिए जनसमर्थन जुटाने जैसे मुद्दों पर कार्य किया जा सके। 14 वें वित्त आयोग के अंतर्गत फंड्स के अधिक हस्तांतरण के कारण 2015-16 से इस योजना के राज्य घटक को केंद्रीय सहयोग से डीलिंक कर दिया गया। कमिटी ने सुझाव दिया कि क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण के जरिए पंचायतों को मजबूती देने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को अधिक प्रोत्साहन देना चाहिए। इससे वे बेहतर विकास योजनाएं बन सकेंगी, साथ ही नागरिकों की जरूरतों की तरफ अधिक ध्यान दे सकेंगी।
- सपोर्ट स्टाफ: कमिटी ने गौर किया कि पंचायतों में सपोर्ट स्टाफ और कर्मचारियों, जैसे सेक्रेटरी, जूनियर इंजीनियर्स, कंप्यूटर ऑपरेटर्स और डेटा इंट्री ऑपरेटर्स की जबरदस्त कमी है। इससे पंचायतों के कामकाज और उनके द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाओं पर असर पड़ता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि मंत्रालय को सपोर्ट और तकनीकी कर्मचारियों की भर्ती और नियुक्ति के लिए गंभीर प्रयास करने चाहिए ताकि पंचायतों का कामकाज आसानी से हो सके।
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