स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट का सारांश
- रसायन और उर्वरक संबंधी स्टैंडिंग कमिटी (चेयर: कनिमोझी करुणानिधि) ने मार्च 2021 में प्रधानमंत्री भारतीय जनौषधि परियोजना (पीएमबीजेपी) के कार्यान्वयन पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। पीएमबीजेपी का लक्ष्य सस्ती दरों पर सभी को अच्छी जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराना है। इस योजना के अंतर्गत देश भर में प्रधानमंत्री भारतीय जनौषधि केंद्र नामक डेडिकेटेड आउटलेट्स खोले गए हैं जहां आम लोगों को जेनेरिक दवाएं बेची जाती हैं।
- योजना का कवरेज: कमिटी ने कहा कि योजना का कवरेज अपर्याप्त है। हालांकि 2014-20 के दौरान पीएमबीजेपी आउटलेट्स की संख्या 80 से 6,520 हो गई है, लेकिन अधिकतर राज्यों में आउटलेट्स की संख्या काफी कम है। सिर्फ पांच राज्यों (गुजरात, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश) में 600 से अधिक पीएमबीजेपी आउटलेट्स हैं। वर्तमान में योजना के अंतर्गत 732 जिलों को कवर किया गया है, जबकि 2020-21 में लक्ष्य 739 का था। कमिटी ने योजना के कार्यान्वयन की स्थिति का राज्यवार विश्लेषण करने का सुझाव दिया। उसने सुझाव दिया कि फार्मास्यूटिकल्स विभाग को जिला स्तरीय कवरेज की जगह ब्लॉक स्तर के कवरेज पर ध्यान देना चाहिए। इसके अतिरिक्त कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि ग्रामीण क्षेत्रों, सुदूर क्षेत्रों, स्लम्स और निम्न आय वर्ग के लोगों को सेवाएं प्रदान करने पर विशेष ध्यान दिया जाए।
- ब्यूरो ऑफ फार्मा पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग ऑफ इंडिया (बीपीपीआई): बीपीपीआई योजना का कार्यान्वयन करने वाली नोडल एजेंसी है। बीपीपीआई के कामकाज का प्रबंधन 10 सदस्यीय गवर्निंग काउंसिल करती है। काउंसिल में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) फार्मास्यूटिकल्स विभाग का सचिव (चेयरपर्सन), (ii) सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ फार्मा कंपनियों (जैसे हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड और इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड) के मैनेजिंग डायरेक्टर्स और (iii) फार्मा उद्योग के क्षेत्र को दो एक्सपर्ट्स। कमिटी ने कहा कि काउंसिल के 10 में से सिर्फ दो सदस्य फार्मास्यूटिकल क्षेत्र के एक्सपर्ट हैं। उसने सुझाव दिया कि काउंसिल में फार्मास्यूटिकल एक्सपर्ट्स की संख्या को बढ़ाया जाए। इस संबंध में सरकार एक्सपर्ट उद्योग के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त गवर्निंग काउंसिल में प्रतिष्ठित मेडिकल एडमिनिस्ट्रेटर्स को नामित करने पर भी विचार कर सकती है।
- इसके अतिरिक्त कमिटी ने कहा कि अभी बीपीपीआई वित्तीय स्तर पर आत्मनिर्भर नहीं है। उसने सुझाव दिया कि जब तक बीपीपीआई वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर न हो, तब तक केंद्र सरकार को योजना के प्रशासनिक खर्च (जैसे वेतन) और अतिरिक्त खर्च (जैसे पीएमबीजेपी को इनसेंटिव्स देने की लागत) को पूरा करने के लिए बीपीपीआई को अनुदान देना चाहिए।
- सप्लाई चेन: कमिटी ने कहा कि बीपीपीआई को दवाएं सप्लाई करने वाली 90% कंपनियां एमएसएमई क्षेत्र की हैं जो कच्चे माल की कीमतों में उतार-चढ़ाव को बर्दाश्त नहीं कर पातीं। इसके कारण बीपीपीआई को समय पर दवाओं की खरीद करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कमिटी ने यह भी कहा कि बीपीपीआई ऐसी नई खरीद नीति तैयार कर रही है जो दवाओं की सप्लाई को आसान बनाएगी। उसने सुझाव दिया कि इस खरीद नीति को ऐसे तैयार किया जाना चाहिए कि एमएसएमई के अलावा बड़े मैन्यूफैक्चरर्स से भी खरीद की जाए।
- कमिटी ने कहा कि बीपीपीआई का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पीएमबीजेपी केंद्रों से परचेज ऑर्डर मिलने के 48 घंटे के अंदर दवाओं का डिस्पैच हो जाए। डिस्पैच के 10 दिनों के भीतर पैकेज डिलिवर होता है। कमिटी ने सुझाव दिया कि दवाओं के डिस्पैच का समय एक दिन किया जाए और भारत भर में (सुदूर क्षेत्रों सहित) दवाओं की डिलिवरी डिस्पैच की तारीख से दो दिनों के भीतर हो जाए। कमिटी ने यह सुझाव भी दिया कि हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय राज्य, और पश्चिम बंगाल तथा पूर्वोत्तर राज्यों में वितरकों की पर्याप्त संख्या होनी चाहिए ताकि सुदूर क्षेत्रों में समय पर दवाओं की सप्लाई सुनिश्चित हो।
- दवाओं की क्वालिटी: कमिटी ने कहा कि 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के दौरान बीपीपीआई की खरीदी हुई क्रमशः 0.54%, 0.37% और 0.46% दवाएं खराब क्वालिटी (नॉन स्टैंडर्ड क्वालिटी) की थीं। नॉन स्टैंडर्ड क्वालिटी की दवाओं का अर्थ ऐसी दवाएं होता है जो भारतीय फार्माकोपिया स्टैंडर्ड्स पर खरी नहीं उतरतीं। इन स्टैंडर्ड्स के विनिर्देशों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) बॉन्डिंग एजेंट की क्वालिटी, (ii) कलरिंग एजेंट की क्वालिटी, और (iii) घुलने का समय। कमिटी ने कहा कि फार्मास्यूटिकल्स विभाग को दवाओं की क्वालिटी की आवर्ती समीक्षा करनी चाहिए। उसने नॉन स्टैंडर्ड दवाओं को सप्लाई करने वाले सप्लायर्स पर प्रतिबंध को दो वर्ष से बढ़ाकर कम से कम पांच वर्ष करने का सुझाव दिया।
- दवाओं की बास्केट: दवाओं की बास्केट का अर्थ है, पीएमबीजेपी योजना के अंतर्गत प्रस्तुत उत्पादों की रेंज (दवाएं और मेडिकल उपकरण)। मौजूदा प्रॉडक्ट बास्केट में 1,250 दवाएं और 204 सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स आते हैं। कमिटी ने कहा कि फार्मास्यूटिकल्स विभाग 31 मार्च, 2024 तक दवाओं की संख्या बढ़ाकर 2,000 और सर्जिकल इंस्ट्रूमेंट्स की 300 करना चाहता है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि सभी अनिवार्य दवाएं इसमें शामिल हों जिसके दायरे में थेराप्यूटिक ग्रुप्स जैसे एंटी-डायबिटिक्स, कार्डोवैस्कुलर ड्रग्स, एंटी कैंसर और एनेलजेसिक्स आ जाएं। कमिटी ने योजना के अंतर्गत दवाओं की मौजूदा बास्केट का अध्ययन करने तथा उन पर सुझाव देने के लिए एक्सपर्ट कमिटी के गठन का सुझाव दिया (इस कमिटी में प्रतिष्ठित मेडिकल प्रैक्टीशनर्स शामिल हों)।
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